________________ शस्त्रास्त्र, धातु, आभूषण, भवन, वस्त्र, ग्राम, नगर, राजा, त्यौहार, उत्सव, . नट, यान, उद्यान, प्रसाधन आदि का वर्णन भी मिलता है। प्रज्ञापना : इसके रचयिता श्यामाचार्य माने जाते हैं। जो सुधर्मा स्वामी / की 23वीं पीढ़ी में हुए और भगवान महावीर निर्वाण के 376 वर्ष बाद मौजूद थे। इसमें प्रश्नोत्तर शैली में तत्व-निरूपण के साथ-साथ धर्म, दर्शन, इतिहास और भूगोल के तथ्य भी उल्लेखित हैं। कार्य और शिल्पार्य की चर्चा इस आगम में है। इसमें 1 अध्ययन, 36 पद, 44 उद्देशक, 614 गद्य-सूत्र, 195 पद्य-सूत्र तथा कुल 7787 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध' पाठ है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति : यह आगम गणितानुयोग प्रधान है। इसमें प्राचीन भूगोल का वर्णन है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव तथा उनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत, जिनके नाम से हमारे देश का नाम भारत हुआ, का वर्णन भी इस आगम में मिलता है। इसमें 1 अध्ययन, 7 वक्षस्कार, 178 गद्य-सूत्र, 52 पद्य-सूत्र तथा कुल 4146 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध पाठ है।" 6.-7. चन्द्रप्रज्ञप्ति व सूर्यप्रज्ञप्ति : दोनों उपांग गणितानुयोगमय है। प्रत्येक में 1 अध्ययन, 20 प्राभृत, 31 प्राभृत-प्रभृत तथा 2200 श्लोक परिमाण उपलब्ध पाठ है, जिसमें 108 गद्य-सूत्र और 103 पद्य-गाथाएँ हैं। दोनों के अध्ययन, प्राभृत, पाठ, सूत्र और गाथा परिमाण बराबर है। आचार्य भद्रबाहु द्वारा सूर्यप्रज्ञप्ति पर लिखी नियुक्ति वर्तमान में अनुपलब्ध है। प्राचीन गणित और ज्योतिर्विज्ञान की दृष्टि से ये ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं। विद्वानों की दषष्ट में इन ग्रन्थों का वैज्ञानिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। 8.-12. निरयावलिया, कप्पिया, कप्पवडंसिया, पुफिया, पुष्फचूलिया और वहिदसा: इन पाँचों उपांगों में 1 श्रुतस्कन्ध, 52 अध्ययन और पाँच वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग एक-एक उपांग का प्रतिनिधित्व करता है। उपलब्ध मूल पाठ 1100 श्लोक प्रमाण है। ये आगम कथानुयोग प्रधान है। बाईसवें, तेबीसवें और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमी, पार्श्वनाथ और महावीर के समय की विभिन्न घटनाओं का रोचक वर्णन है। जिससे