________________ परिणाम हैं। जिसमें 272 गद्य-सूत्र हैं। व्रत, नियम और संयम पूर्वक जीवन जीने के लिए यह ग्रन्थ आदर्श आचार-संहिता प्रस्तुत करता है। इसमें आर्थिक नीतिशास्त्र का सुन्दर निरूपण है। 8. अन्तकृतदशा : यह अंग तप और आत्म-साधना के वर्णन से ओतप्रोत है। इसमें 1 श्रुतस्कन्ध, 8 वर्ग, 90 अध्ययन, 8 उद्देशन काल, 8 समुद्देशन काल और परिमित वाचनाएँ हैं। वर्तमान में यह 900 श्लोक परिमाण है। 22वें तीर्थंकर भगवान अरिष्टनेमी और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के समय के 90 तपस्वी साधकों का इसमें वर्णन है। वासुदेव श्रीकृष्ण के जीवन-प्रसंगों के उल्लेख इस आगम में प्राप्त होते हैं। वर्तमान में यह आगम जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी परम्परा में पर्युषण-काल में पढ़ा-सुना जाता है। . . ___. अनुत्तरोपपातिक दशा : इसमें ऐसे साधकों का वर्णन है, जिन्होंने कालधर्म प्राप्ति के बाद अनुत्तर विमानों में जन्म लिया तथा पुनः मनुष्य जन्म लेकर आत्म-कल्याण करेंगे। वर्तमान में उपलब्ध यह आगम स्थानांग और समवायांग की वाचना से अलग है। यह आगम तीन वर्गों में विभक्त है। प्रथम, द्वितीय और तष्तीय वर्ग में क्रमश: 10, 13 और 10 अध्ययन हैं। कुल 33 अध्ययनों में 33 महान साधकों का वर्णन है। 33 में-से 23 राजकुमार राजा श्रेणिक के पुत्र है। इसमें भगवान महावीर कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी उल्लेख हुआ है। ___ 10. प्रश्नव्याकरण : नन्दीचूर्णि: एवं समवायांगवृत्ति के अनुसार इस सूत्र में 9216000 पद थे। धवला में यह संख्या 9316000 बताई गई है। परन्तु वर्तमान में उपलब्ध श्लोक संख्या लगभग 1256 है। इसके अलावा वर्तमान में उपलब्ध अध्ययन स्थानांग में बताए गए अध्ययनों से बिल्कुल अलग हैं। यह दो श्रुत-स्कन्धों और दस अध्ययनों में वर्गीकृत है। ___11. विपाक सूत्र : इस ग्यारहवें अंग में कथाओं और उदाहरणों द्वारा अच्छे कर्मों का अच्छा फल और बुरे कर्मो का बुरा फल बताया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध दुखविपाक और द्वितीय श्रुतस्कन्ध सुखविपाक है। कुल 20 अध्ययन और 20 उद्देशक हैं। 1216 अनुष्टुप श्लोक प्रमाण इसका उपलब्ध पाठ है। इसके पात्र ऐतिहासिक, प्रागैतिहासिक और पौराणिक हैं। यह ग्रन्थ हिंसा, चोरी, मांसाहार, मदिरापान, कुव्यसन और अनाचार के दुष्परिणाम तथा संयम, दान आदि के सुपरिणाम बतलाता है।