Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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स्वामीजी के जीवनसूत्र
महास्थविर मुनिराज श्रीहजारीमलजी म० को उनके जीवनकाल में और आजतक जनमानस एकांत श्रद्धा, स्नेह, भक्ति और आदर की दृष्टि से देखता रहा, मानता रहा तथा मान रहा है, उसका कारण यह है कि उनका जीवन, कुछ जीवन की उदात्त और दिव्य प्रेरणाओं से प्रेरित था. उनमें से कतिपय प्रेरणाएं निम्न प्रकार हैं(१) विश्वशान्ति (२) विश्ववात्सल्य (३) मातृजाति का उचित सम्मान (४) छोटों के प्रति स्नेह (५) गुणी जनों के प्रति आदर (६) धर्म के प्रति जागरूकता (७) अखंड ब्रह्मचर्य में एकांत निष्ठा (८) हितमित व परिमित मधुर संभाषण (९) निष्काम एवं निःस्पृह वृत्ति (१०) संयम और तपश्चर्या में परायणता. ये वे जीवन-सूत्र हैं जिन पर उन्हें अपूर्व आस्था थी. 'इन सूत्रों के अनुसार मेरी दिनचर्या निर्बाध व्यतीत हो—ऐसा वे अहर्निश चिन्तन किया करते थे. इन सूत्रों की व्याख्यामय उनका जीवन था. सूत्रों की सीमा में आनेवाली सीमित रेखा के अतिरिक्त भी उनके जीवन में कुछ ऐसे विलक्षण सत्य देखे जाते थे, जो उच्चकोटि के सन्तों में विरल ही पाए जाते हैं.
एक: उनकी दीन-बन्धुता !
वैसे मिलने भेंटने बोलने के प्रसंग कभी भी किसी के भी हों वे नहीं टालते थे. उन्होंने अपने जीवन में गरीब और अमीर के साथ कभी भेद-व्यवहार नहीं किया तथापि वे दीन, असहाय, निराश और धनहीन से अधिक सम्बन्ध रखते थे. इस के पीछे उनका यह विश्वास बोलता रहता था-'निराशा में घिरा व्यक्ति सन्त के सम्पर्क में आकर, सन्त के जीवन से, साधना से, उपदेश से-आशा और उत्साह का प्रकाश प्राप्त कर सकता है. कर्तव्य की निष्ठा की पवित्र ज्योति जगा सकता है. इसलिये सन्त पुरुषों का संग आवश्यक है.' स्वयं जिस विचार-पथ पर चलते थे उसी पर बढ़ने का वे अन्य सम्पर्कस्थ व्यक्ति को बड़ी दृढ़तापूर्वक उपदेश करते थे. 'पत्थर के भगवान् की पूजा कर तुम यह सोचते हो कि वे हमारी आत्मा का पाप शान्त कर देंगे. यह कभी नहीं हो सकता. अपने क्रूर कर्मों का यदि वस्तुतः प्रायश्चित्त करना चाहते हो तो पहले झोंपड़ी में रहनेवाले दरिद्रनारायण को प्रसन्न कर लो, तभी सौ हाथोंवाला आत्मस्वरूप भगवान् तुम्हें सत्य-पथ पर बढ़ने की सत्प्रेरणा प्रदान कर सकता है.'
दो: प्राणिमात्र के प्रति स्नेह !
मनुष्य, अपने ही खुद की सोचे. अपने ही आराम-विश्राम को महत्त्व दे, आस-पास के मनुष्य और दूसरे प्राणी किस प्रकार
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