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५०/चरणानुयोग : प्रस्तावना गुप्ति
गई है। अन्त में अयोग्य को दीक्षा देने पर गुरु चौमासी प्राय___ तीन गुप्तियों का स्वरूप एवं भेदों का कथन करके यह भी श्चित्त का विधान किया है। बताया गया है कि सम्पूर्ण अशुभ प्रवृत्तियों से निवृत्त होना ही संयमी जीवन गुप्ति है। समाधि युक्त साधु के लक्षण बताते हुए उसे हाथ पांव इस प्रकरण में संयम का स्वरूप, उसका महत्व एवं सामा. शादि से संयत एवं गुप्त होना कहा गया है।
यिक आदि पाँच चारित्र, छह प्रकार की कल्पस्थिति का वर्णन उसराध्ययन २३ के अनुसार मन के निग्रह को कठिन कह करके संथम के भेदों प्रभेदों के कथन के बाद सतरह प्रकार के कर उसे नियन्त्रित करने के उपाय भी कहे गये हैं। दस चित- संयम का कथन किया गया है। समाधि स्थानों का विस्तृत वर्णन करके दस प्रकार की समाधि संयमी के लक्षणों का वर्णन करके अणगार के अनेक गुणों और असमाधि का वर्णन किया है । अन्त में मन मृप्ति का परि. का आदर्शों का और शिक्षित जीवन का दिग्दर्शन भी प्रस्तुत णाम कहकर बचन गुप्ति वा प्ररूपण करते हुए उसके चार प्रकार किया गया है। जिसमें आचारांग, सूधगडांग, दशवकालिक एवं फल बताया गया है।
उत्सराध्ययन के अध्ययनों को समाविष्ट किया गया है। ___ कायगुप्ति के वर्णन में उसके कार, महत्त्व एवं स बता थारमार्थी अनात्मार्थी के साभालाभ की चर्चा करते हुए कर पांचों इन्द्रियों के निग्रह का अलग-अलग फल बताया जणगार के सत्तावीरा गुणों का स्पष्टीकरण करके निर्ग्रन्थों के गया है।
अनेक प्रशस्त लक्षण कहे गये हैं। उसके बाद संयमी की अनेक अपमत मुनि के अध्यवसायों का दिग्दर्शन करके उपयोग- उपमाओं का संग्रह किया गया है। शून्य एवं चंचल आसन वाले को पापी थमण कहा गया है। साधक के अपने ही हायमान एवं वद्धमान परिणामों से श्रीमा
संयम सुखद और दुःस्त्रद प्रतीत होता है। इसे दुम्न पाया और आत्म कल्याण के कर्तव्यों में द्रव्य एवं भात्र से संगम स्वी- सुख शय्या के नाम से निर्दिष्ट किया है। कार करना भी साधक का एक प्रमुख कर्तव्य है। संयम, दीक्षा, तदनन्तर संश्रम के प्रेरणात्मक उपदेग्री विषय, विनय, विवेक, प्रव्रज्या, अणगार धर्म, जादि एकार्थक पारद हैं। इसे स्वीकार संयम की शुद्ध आराधना का स्वरूप, पूजा-प्रशंसा की चाहना करने वाला संयमी, दीक्षित, साधु, मुनि, अणगार या भिक्ष. का निषेध, परोपह विजेता होने की प्रेरणा, एवं सदा जागृत आदि कहा जाता है।
रहने का सूचन आदि संयमोन्मति के अनेक महत्वपूर्ण विषयों - यद्यपि महावत समिति गुप्ति के वर्णन से चारित्राचार का का संकलन किया गया है। प्रतिदिन करने योग्य साधुओं के तीन वर्णन सम्पन्न हो जाता है फिर भी आगमों में स्थित अनेक मनोरथ भी बताये गये हैं। प्रकीर्णक विषयों को इस विशिष्ट वर्गीकरण में विभाजित करने संयम पोपक बत्तीस योग संग्रह का और अहिंसा आदि पर अनेक विषय महावत समिति एवं गुप्ति के प्रकरण के बाद अठारह प्रमुख आचरण के स्थानों का विस्तार से वर्णन है एवं भी अवशेष रह जाते है । उसे अष्ट प्रवचन माता के वर्णन रूप ललम्बन्धी अनेक अपवाद एवं प्रायश्चित्त भी साथ में कहे हैं। प्रथम भाग के अनन्तर द्वितीय भाग में (१) दीक्षा, (२) संयमी अन्त में संयम धर्म आराधना का फल बताते हुए सुश्रमणों जीवन, (३) समाचारी, (४) प्रतिकमण, (५) गृहस्थ धर्म, की संसार से मुक्ति एवं कुधमणों की दुर्गति का कथन किया है (६) आराधक विराधकः, (७) अनाचार, (८) संघव्यवस्था आदि एवं मद्यसेवी की अवघ्नति एवं दुर्दशा भी कही गई है। में वर्गीकरण किया गया है।
समाचारी दीक्षा प्रकरण में सर्व प्रथम यह कहा गया है कि जिसके इस प्रकरण में भिक्ष की दस प्रकार की समाचारी, दिवस धर्मान्तराय कर्म का क्षयोपशम हुआ है वही किसी से धर्म सुन- एवं रात्रि के प्रहरों से सम्बन्धित दिनचर्या का विधान किया है, कर या बिना सुने ही संयम ग्रहण करता है।
जिसमें स्वाध्याय, यावृत्य, प्रतिलेखन, भिक्षाचर्या, प्रतिक्रमण, तदनन्तर दीक्षित होने वाले के वैराग्य की विभिन्न अवस्थाओं निद्रा, ध्यान आदि आवश्यक कर्तव्यों की विचारणा हुई है। का, वय का, निश्रा का, उपकरणों का वर्णन करके नपुंसक और इसके साथ ही पोरिसी परिमाण का विज्ञान, तिथिक्षय, असमर्थ को दीक्षा देने का निषेध किया गया है।
प्रतिलेखन विधि एवं उसके दोषों का कयन भी है। . ठाणांग सूत्र से उधूत चौभंगियों द्वारा विविध प्रकार की वर्षावास समाचारी का विस्तृत वर्णन है इसमें क्षेत्र की प्रव्रज्याओं का वर्णन करते हुए दस प्रकार के मुंडन कहे गये हैं। सीमा बताकर अनेक आपवादिक कारणों से पातुर्मास में विहार
छेदोपस्थापनीय चारित्र (बड़ी दीक्षा) देने की सम्पूर्ण विधि, करने की चर्चा करके अकारण विहार करने का प्रायश्चित्त कहा उसके काल मान की पर्चा एवं उसके योग्यायोग्य की चर्मा की गया है। फिर भिक्षाचर्वा सम्बन्धी वर्णन करते हुए आठ प्रकार