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५६७-६०३
सरदी और गरमी सहन करने का विधान
तपाचार
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सीतातप सहण विहाणो--
सरदो और गरमी सहन करने का विधान५६७. मासिय पं भिक्खु-पडिम पडिवनस्स अणगारस्स कप्पति ५१७. एक माम की भिक्षु-प्रतिमाधारी अनगार को-"यहाँ
छायाओ 'सीयं ति" नो उहं एसए, उपहाओ "उहं ति" शीत अधिक है" ऐसा सोचकर छाया से धूप में तथा "यहाँ गर्मी नो छायं एरए।
अधिक है" ऐसा मांचकर धूप से छाया में जाना नहीं कल्पता है । जं सत्य जया सिया तं तत्थ अहियासए ।
किन्तु जव जहाँ जैसा हो वहाँ वैसे ही सहन करना चाहिए ।
---दमा. द. ७, मु. २४ पडिमाणं सम्मआराहणं
भिक्षु प्रतिमाओं का सम्यग् आराधन५६८. एवं खलु एसा मासिया भिषन-पडिमा अहासुत्तं, अहाकप्पं, ५६८. इस प्रकार यह एक मास की भिक्षु प्रतिमा-सूत्र कल्प
अहामार्ग, महातच, सम्म कारण, फासिसा, पालित्ता, और मार्ग के अनुसार यथालथ्य सम्यक् प्रकार काया से स्पर्श सोहिता, तोरित्ता, किट्टरता, आरालित्ता, आणाए अणुपा- कर, पालन कर, शोधन कर. पूर्ण कर, कीर्तन कर और आराधन लिता भवद ।
-दमा. दे. ७. सु. २५ बर जिनाजा के अनुसार पालन बी जाती है। दो मासिया भिक्खुपडिमा -
द्वि मासिकी भिक्षु प्रतिमा५६६. दो-मासिय मिक्स-पडिम पत्रिवनस्स अणगारस्रा-जाव-आणाए ५६६. दो गसिकी भिक्ष प्रतिमा प्रतिपन अणगार के-यावतअणुपालिसा भवई।
यह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की जाती है । नवरं दो वत्तियो भोयणस्स पडिगाहितए दो पाणगस । विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन दो दत्तियो आहार की और
-सा. द. ७, मु. २६ दो दत्तियाँ पानी की ग्रहण करना वल्पता है। तिमासिया भिक्खु पडिमा---
मासिकी भिक्ष-प्रतिमा६००.ति-मासिय मिक्खु-पडिम परिवनस्स अणमारस्स--जाव- ६००. तीन माम की भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अपनार के-यावतआगाए अणुपालिता भवद।
वह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की जाती है । नवरं तओ दत्तिओ भोयणस्स परिगाहेतए तओ पाणगस्स । विशेष वह है कि उसे प्रतिदिन तीन दत्तियाँ भोजन की और
-दसा. द. ७, सु २७ तीन दनियाँ पानी की ग्रहण करना कल्पता है । चउमासिया भिक्खु पडिमा
चातुर्मासिको भिक्षु-प्रतिमा६.१. चउ मासियं भिक्षुपडिम पडिबन्नस्स अणगारस्स-जाव- ६०१. चार मास की भिक्षु-अनिमा प्रतिपन्न अणगार के-पावतआणाए अशुपालित्ता मवह ।
वह प्रतिमा जिनाजानुसार पालन की जाती है। वरं चत्तारि बत्तिओ भोयणस्स पडियाहेत्तए चप्तारि विशेष यह है कि उरो प्रतिदिन चार दत्तियां आहार की पाणगस्स ।
-दसा. द. ७, सु. २६ और चार दत्तियां पानी की ग्रहण करमा कल्पता है। पंचमासिया भिक्खुपडिमा
पंचमासिकी भिक्षु-प्रतिमा६०२. पंच मासिय मिक्खु-पडिम पडिवनरस अणगारस्स जाध- ६०२. पाँच मास की भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अणगार के-यावतआणाए अणपालिसा भवइ ।
वह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की जाती है। णवरं पंच दत्तिओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए पंच पाणगस्स। विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन भोजन की पांच दत्तियां
-दसा. ६. ७, सु. २६ और पानी को पांच दत्तियां ग्रहण करना कल्पता है। छः मासिया भिक्खुपडिमा
षण्मासिकी भिक्षु प्रतिमा६०३, छ, मासिय भिक्खु-पडिम परिवनस्स अणगारस्स-जाव- ६०३. छ: मास की भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अणमार के--पावत्आणाए अणुपालिसा भवइ ।
वह प्रतिमा जिनाशानुसार पालन की जाती है।
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ठाण. अ. ३, उ. ३, सु. १८८ ठाणं. अ. ५, उ. २, सु. ४२४