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सूत्र ६११
आहार लेने का सात प्रातमाएं
तपाचार
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पालसि वा, पिटरगसि बा, सरगसि वा, परगसि वा, थाली मैं, तपेली में, सूप में, छबड़ी में तथा बहुमुल्य पात्र बरगंसि वा। अह पुणेवं जाणेज्जा-असंसर्ट्स हत्थे संस? मत्ते, संस? उस समय साधु यह जाने कि--गृहस्थ का हाथ अलिप्त है वा हत्थे, असंस? मते । से य पडिग्गहधारी सिया, पाणि- किन्तु बर्तन लिप्त है अथवा हाथ लिप्त है, बतन अलिप्त है, तव पडिग्गहए वा, से पुथ्यामेव आलोएज्जा.
वह पात्रधारी या कर-पात्री साधु पहले ही उसे कहे"उसो । ति वा भगिणि ! ति बा, एतेण तुमं असंस?ण "हे आयुष्मन् गृहस्थ ! या आयुष्मती बह्न ! तुम इस हत्येण, संस?ण मत्तेण, संस?ण वा हत्येण, असंसद्वैग असंसृष्ट हाथ और संसृष्ट वर्तन से अश्वा संसृष्ट हाथ और मत्तेण अस्सि खलु पजिग्गहंसि बा, पाणिसि वा णिहटु असंसष्ट वर्तन से लेकर इस पात्र में या हाथ में झुकाकर दो।" ओवित्तु बलयाहि । तहप्पगारं भोयगजात सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से उस प्रकार के भोजन की स्वयं याचना करे अथवा गहस्थ दे ज्जा । कासुपं-जाव-पडिगाहेजा । तस्या पिउँसणा । तो उसे प्रासुक जानकर-यावत्-ग्रहण कर ले। यह तीसरी
पिडेषणा है। ४. अहावरा घउत्था पिडेसणा-से भिक्खू वा-जाव-समाणे (४) इसके बाद चौथी पिंडेषणा इस प्रकार है-वह भिक्ष सज्ज पुर्ण जाणेज्जा-पिहयं षा, बहरयं वा, भुज्जियं बा, –यावत् - प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्थ के यहाँ अग्नि मथु बा, नाउलं वा, घाउलपलं वा,
से सिके हुए या पूर्ण किये हुए अवित्त गेहूं आदि के सिट्टे, ज्वार,
जी आदि के सिट्टे तथा चावल या उसके टुकड़े हैं। अस्सि खलु पडिगनियंसि अप्पे पच्छकम्मे अप्पे पज्जवजाते। जिनके ग्रहण करने पर पात्र के लेप नहीं लगता है और न
ही तुष आदि परठने पड़ते है। तहप्पगार पिहुयं वा-जाय चाउलपलं वा सयं वा णं इस प्रकार के धान्य के सिट्टे-यावत्-भग्न शालि आदि जाएग्जा परो या से वेज्जा फासुयं-जाब-पडिगाहेज्जा। अचित्त पदार्थ की साधु स्वयं याचना कर ले अथवा गृहस्थ दे तो
प्रासुक जानकर- यावत् । ग्रहण कर ले । चउत्था पिडेसणा।
यह चौथी पिढेषणा है। ५. अहावरा पंचमा पिडेसणा-से भिक्खू वा-जाव-समाणे (५) इसके बाद पांचवी पिंडेषणा इस प्रकार है-वह भिक्ष, जगहियमेव भोयणजातं जाणेज्जा । तं महा
-पावत्-प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्य के यहां अपने
खाने के लिए किसी बर्तन में भोजन ले रखा है। जैसे किसरावसि बा, डिडिमंसि वा, कोसगंसि वा।
सकोरे में, कांसे के बर्तन में या मिट्टी के किसी बर्तन में। अह पुणेवं जाणेज्जा-बहपरिवावणे पाणीसु वयलेवे। फिर यह भी जान जाये कि उसके हाथ कच्चे पानी से लिप्त
नहीं है पूर्ण सूख गये हैं। सहप्पगारं असणं वा, खाइम बा, साइम वा, सर्व वा उस प्रकार के अशन, खाद्य, स्वाट आहार की साधु स्वयं जाएज्जा परो वा से वेजा, फाप्तुर्य-जाव-पडिगाहेज्जा। यायना कर ले या गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक जानकर -यावत्पंचमा पिंडेसणा।
ग्रहण कर ले । यह पांचवी पिंडषणा है। ६. अहाबरा छटा पिंडेसणा-से भिक्खर वा-जाव-समाणे (६) इसके बाद छठी पिढेषणा इस प्रकार है-वह भिक्षु पग्गहियमेव भोयगजातं जाणेज्जा जं च सयदाए पग्गहितं, यावत्-प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्थ ने अपने लिए च पराए पम्प हितं,
या दुसरे के लिए बर्तन आदि में या हाथ में भोजन ग्रहण
किया है। तं पायपरियावणं तं पाणिपरियावष्णं असणं वा, खाइम ऐसा वह गृहस्य के पात्र में या हाथ में रहा हुआ अशन, वा, साइमं वा सयं वा गं जाएज्जा परी पा से देजा वाद्य, स्वाद्य साधु स्वयं याचना कर ले या गृहस्थ दे तो उसे फामुयं-जाव-पडिगाहेम्जा । छट्ठा पिडेसणा ।
प्रासुक जानकर-यावत् -ग्रहण कर ले। यह छट्ठी पिंडेषणा है।