________________
२९०]
घरमानुयोग-२
पानी लेने की सात प्रतिमाएं
सूत्र ६११-६१२
७. अहावरा सत्तमा पिजेसणा-से भिक्खू वा-जाव-समाणे (७) इसके बाद सातवीं पिडेषणा इस प्रकार है-वह भिक्ष उमिलत-घम्मिय भोपणजाय जाणेज्जा,
- पावत्-प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्य के फेंकने योग्य
आहार है। जचण्णे यहवे बुपय-चउपय-समण-माहण-अतिहि-किवण- जिसे अन्य बहुत से द्विपद-चतुष्पद-श्रमण-ब्राह्मण, अतिथि, वणीमगा णावकर्षति ।
दरिद्रो, और भिखारी लोग नहीं चाहते, तहप्पगारं उशित-धम्मियं भोपणजायं सयं बाई जाएज्जा, ऐसे फेंकने योग्य भोजन की स्वयं याचना करे अथवा वह परो वा से जा फासुयं-जाव-पडिगाहेजा 1 सप्समा गृहस्थ दे तो उसे प्रासुफ जानकर-यावत - ग्रहण कर ले। यह
पिरसणा। -आ. सु २, अ.१, उ. ११, सु. ४०६ सातवीं पिंडे षणा है। सत्त-पाणेसण पडिमाओ
पानी लेने की सात प्रतिमायें६१२, हुस्याई आयतणाई उपातिकम्म अह भिक्ख जाणेज्जा- ६१२. पूर्वोक्त (पाणषणा बणित) दोनों को छोडता हा भिक्ष सत्त पाणेसणाओ1---
ये सात पाणषणाएँ (पानी की प्रतिमा) जानें१. तत्प खलु इमा पढमा पासणा-असंस? हत्ये, (१) इनमें से प्रथम पाणषणा यह है कि-असंसृष्ट हाथ असंस? मत्ते।
और असंसृष्ट पात्र। तहप्पगारेणं असं सट्ठीण हत्येण वा, असंस?ण मत्तएणं वा यदि दाता का हाथ और बर्तन किसी वस्तु से अलिप्त हो पाणगजायं सयं वा गं जाएजाजा, परो वा से वंजा, फासुय तो उससे पानी की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे -जाव-पडिगाहेजा पढमा पार्णसणा।
प्रासुक जानकर-पावत्-ग्रहण कर ले । यह प्रथम पाणैषणा है। २. महावरा घोच्चा पाणेसणा-संसद्ध हत्ये, संस? मते। (२) इसके बाद दूसरी पाणषणा यह है-संसृष्ट हाथ और
संसृष्ट पात्र । तहप्पणारेण असंस?ण हत्येण वा असंस?ण मत्तएण था, यदि दाता का हाथ और वर्नन अचित्त वस्तु से लिप्त है पाणगजायं सयं वा णं जाएज्जा, परोया से बेज्जा, फासुर्य तो उससे पानी की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे जाव-पडिगाहेज्जा । वोच्चा पासणा ।
प्रासुक जानकार-यावत्-ग्रहण कर ले । यह द्वितीय पाणषणा है । ३. अहावरा तच्चा पाणेसणा-इह खतु पाईगं वा-नाव- (३) इसके दाद तीसरी पाणषणा यह है-इस क्षेत्र में पूर्व उदीण चा संतेगतिया सहा भवंति गाहावती था-जाव- --यावत्-उत्तर दिशा में कई श्रद्धालु व्यक्ति रहते हैं, जैसे कि कम्मकरी वा।
वे गृहपति-यावत्-मौकरानियाँ। तेसिंधण अषणतरेसु विरूव स्येसु भायणजायेसु जवणिक्षित- उनके यहाँ अनेक प्रकार के बर्तनों में पहले से पानी रखा पुरवे सिया, तं जहा
हुआ है, जैसे--- थालसि वा, पिटरगतिवा, सरगलि था, परगंसि वा, वरगंसि थाली में, तपेली में, सूप में, छबड़ी में, बहुमूल्य पात्र में । वा। अह पुगेवं जाणेज्जा-असंस? हत्य-संस? मत्ते, संस? वा उस समय साधु यह जाने कि-गृहस्थ का हाथ अलिप्त है हत्ये असंस? मत्ते । से पपडिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गा किन्तु बर्तन लिप्त है अथवा हाथ लिप्त है और बर्तन अलिप्त हए वा, से पुख्खामेव मालोएज्जा।
है, तब वह पाबधारी या कर-पात्री साधु पहले ही उसे कहे''आउसो ! ति वा, भगिणी ! ति था एतेण तुर्म असंस?ण "हे आयुष्मन् गृहस्थ ! या गृहस्वामिनी ! तुम इस असंसृष्ट हत्थेणं, संस?ण मसण, संस?ण था हत्थेण, असंस?ण हाथ और संसृष्ट बर्तन से अथवा ससृष्ट हाथ और असं सृष्ट मत्तेण, अरिस खसु पडिग्गहंसि वा पाणिसि वा णिहट्ट बर्तन से लेकर इस पात्र में या हाथ में पानी दो, इस प्रकार के ओवित्त वलयाहि । तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा पं पानी की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो उसे प्रास्क जाएग्जा, परो वा से बेज्जा, फासुयं-जाव-पडिगाहेज्जा । जानकर-यावत्-ग्रहण कर ले। तच्चा पाणसणा।
यह तीसरी पार्णषणा है।
१. ठाणं. अ. ७, सु. ५४५