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धरणानुयोग २
मासिक और दो मासिक प्रायश्वित की प्रस्थापिता आरोपमा वृद्धि
मासि परिहारद्वारा पविए भगारे अंतरा मानि परिहारार्थ पडिसेविता आलोएज्जा- अहावरा पक्खिया आरोषणा आदिमानसा सहे सकारण अहीण
परि ते परं अामासा
अट्टमास परिहाराणं पटुविए अपमारे अंतरा मासि परिहारट्ठाण परिसेवित्ता आलोएज्जा महावरा परिया आरोषणा आविभज्यावसाणे सभट्ठे महेडं सकारण अहीण मइरितं तेण परं चत्तारिमासा ।
अ- पंच मासि परिहारद्वाणं पट्टषिए अणगारे अंतरा मानिये परिहारट्टान परिसेविता मानो पलिया प्रारोषणा आमावास सकारणं अयोगमारितं तेग पर पंचमासा |
महावरा सहे
घाउमा सिथं परिहाराणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासिय चार मास प्रायश्चित्त दहन परिहाराणं पडिविता आला महावरा पाहून काल के प्रारम्भ में प्रायश्चित्त आक्या दिवसास सहे कारण अही जन हेतु या कारण से वायिक मइरितं तेण परं अढपंचमासा करके आलोचना करे तो उसे न आरोपण का प्रायश्चित्त आता है। चार मास की प्रस्थापना होती है।
पंथ मासि परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासि परिहारानं पहिलेका मानबहावरा परिचया आरोवणा आविसावसाने समद्धं सहेडं सकारणं अहीण मइरितं तेण परं अछट्टा मासा |
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६४२. यो पास परिहाराभिगगारे अंतरा मासिवं परिहारार्थ पडिसेविता आएका महावरा परिजया
सूत्र ६४१-६४२
तीन म स प्रायश्चित वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त बहन काज के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन देतुमा कारण से मासिक प्रायश्वित योग्य दोष सेवन करके करे तो कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चिस जाता है। जिसे संयुक्त करने से साढ़े तीन मास की प्रस्थापना होती है ।
साढ़े तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त बहुत काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित आता है। जिसे संयुक्त करने से चार की स्थापना होती है ।
करने वाला अणगार यदि नध्य में या अन्त में प्रयोप्रायश्चित योग्य दोष सेवन कम न अधिक एक पक्ष की जिसे संयुक्त करने से साढ़े
पाँच मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायविसवहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्वित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। जिसे संयुक्त करने से साढ़े पाँच मास की प्रस्थापना होती है ।
भट्टमाथि परिहाराणं पट्ठबिए अपगारे अंतरा साढ़े पाँच मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणवार यदि मासि परिहाराणं विविता आलीमा अहावरा प्रायश्चित बहुत काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयो पक्या आरोपा आदि सब सहेज सकारनं जन हेतु कारण माविक प्रायश्वित योग्य दोष सेवन करने अहीम तेन परं सम्मा आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा " नि. उ. २०, सु. ३८-४६ का प्रायविचत आता है। जिसे संयुक्त करने से छह मास की प्रस्थापना होती है। मासिस्तोमा मियरस य पट्टविया आरोवणा बुद्धि मासिक और दो मासिक प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता
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आरोपमा वृद्धि
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साढ़े चार मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयो जन हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का आता है जिसे संयुक्त करने से पाँच मास की प्रस्थापना होती है।
६४२. प्रश्न करने वाला अगवार यदि आव विनता के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन