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सूत्र ७०२-७०६
धर्मकया का फल
सपाचार
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धम्मकहा फलं
धर्मकथा का फल७०२. प.-धम्मकहाए णं भन्ते जीवे कि जणयह?
७०२. प्रा -- भन्ते ! धर्मकथा से जीव क्या प्राप्त करता है ? उ.-धम्मकहाए पं निज्जरं जणयह । धम्मकहाए गं पव- उ०-धर्मकथा से वह कर्मों की निर्जरा करता है। धर्म
५पं पाया पक्षांनी आगमिस्स भद्द- कथा से वह प्रवचन की प्रभावना : रता है। प्रवचन की प्रभाताए कम्मं निबन्धह।
बना करने वाला जीव भविष्य में कल्याणकारी फ्ल देने वाले
- उत्त. अ. २६, सु. २५ कर्मों का अर्जन करता है। इस्थि परिसाए रयणीए धम्मकहाकरण पायच्छित्त सुत्तं - स्त्री परिषद में रात्रि धर्मकथा करने का प्रायश्चित्त
७०३. जे भिक्स्यू राओवा, विधाले वा, इस्थिमज्नगएइस्थि संसते ७०३. जो भिक्ष रात्रि में मा संध्याकाल में (१) स्त्री परिषद इस्थि-परिवुझे अपरिमाणाए कह कहेछ, कहेंत वा साइज में, (२) स्त्रीयुक्त परिषद में, (३) स्त्रियों से घिरा हुआ अपरि
मित कथा कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे पालना चाउम्मामियं परिहारट्टाणं अणुग्घाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुवातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
--नि. उ, ८, सु. १० आता है ।
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ध्यान-५
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णिसिद्ध प्राणा-पिहित माणा
निषिद्ध ध्यान और विहित ध्यान७०४, अट्टाहाणि वज्जित्ता, झाएजा सुसमाहिए।
७०४. सुसमाहित मुनि अत और रौद्र ध्यान को छोड़ कर धर्म धम्मसुक्काइंशाणाई, साणं तं तु बुहायए ॥1
और शुक्ल ध्यान का चिन्तन करे। इसे ही तत्यश पुरुष ध्यान
-उत्त, अ. ३०, गा.३५ कहते है । माण भैया -
ध्यान के भेद७०५. १०-से कि त साणे?
७०५, प्र--ध्यान क्या है, उसके कितने भेद है ? उ.--माणे चाउविहे पन्नत्ते, तं जहा
ज०-ध्यान (एकाग्र चिन्तन) के चार भेद हैं, यथा१. अट्टे गाणे,
(१) आर्त ध्यान-रागादि भावना से अनुप्रेरित ध्यान, २. रोदे मागे,
(२) रौद्र यान---हिसादि भावना से अनुरंजित ध्यान, ३ घम्मे माणे,
(३) धर्म ध्यान-धर्म भावना से अनुप्राणित ध्यान, ४. सुपके भरणे।
(४) शुक्ल ध्यान' – शुभ-अशुम से अतीत आत्मोन्मुख शुद्ध -वि. स. २५, उ. ७, सु. २३७ ध्यान । अदृझाण भेया
आतध्यान के भेद-- ७०६. अडे माणे चविहे पाणसे, सं जहा
७०६. आर्त ध्यान चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. अमणुण्णसंपयोगसंपत ते, तस्स बिप्पयोग सतिसमक्षागते (१) अमनोश वस्तु की प्राप्ति होने पर उसके वियोग की पावि भवति,
चिन्ता करना।
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१ २
उत्त. अ. ३४, गा.३१ (क) सम. सम, ४, सु. १
(ख) ठाणं. म. ४, उ. १, सु. २४७