Book Title: Charananuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 453
________________ ३६०] चरणानुयोग-२ तप से प्राप्त चारण लब्धि का वर्णन सूत्र ७२४-७२५ एवामेव गोयमा ! समणाणं निगाथाणं अहाबायराई इसी प्रकार हे गौतम ! थमण निर्ग्रन्थों के स्थूल फर्म शिथिल, कम्मा सिदिलीकयाई निद्रियाइकयाई विप्परिणामि प्रभावहीन और विपरिणाम को प्राप्त शीघ्र ही ध्वस्त होते हैं। याई खिप्पामेव परिविडत्याई भवति । जावइयं ताइयं इसलिए सामान्य वेदना का वेदन करते हुए भी श्रमण निर्ग्रन्थ पि ते वेदणं वेदेमाणा महानिज्जरा महापज्जवसाणा महानिर्जरा एवं महापर्यवसान को प्राप्त होते हैं । मवति । ४.५० से जहा वा केइ पुरिसे सुषकतणहत्वगं जायतेयंसि (४) प्र. हे गौतम ! जिस प्रकार कोई पुरुष शुष्क तृण पक्लिवेज्जा से भूणं गोयमा ! से सुषके तणहत्थए हाथ में लेकर अग्नि में डाले, डालते ही वे शुष्क तृण शीघ्र ही जायतेयंसि पक्विते समाते शिप्पामेव श्समा दिन बह? जर जारी है? उ.-हंता मसमसाविस्जद। उ.-हो भन्ते ! जल जाते हैं। एवामेव गोयमा ! समणाणं निम्गंयाणं अहाबापराई इसी प्रकार हे गौतम ! भ्रमण निन्यों के स्थूलकर्म शिथिल कम्माई सिढिलोकयाई-जाव-महापज्जवसाणा भवति। होते हैं यावत्-वे महापर्यवसान को प्राप्त होते हैं। ५. प०-से महानामए के पुरिसे तत्तंसि अयकस्लसि उदग- (५) प्र.-जिस प्रकार कोई पुरुष तप्त तवे पर पानी का बिंदु पक्लिवेज्जा से नूर्ण गोयमा ! से उबगबिंदु तत्तंसि बिन्दु डाले, डालते ही वह उदक विन्दु तप्त तवे पर शीघ्र ही अयकवल्लसि पक्तितं समाणे खिम्पामेव विवंसं ध्वस्त हो जाता है ? आगच्छद? -हंता विद्धसं आगच्छद। उ०-हाँ भन्ते ! वह बिन्दु शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंयाणं अहावाबरा इसी प्रकार हे गौतम ! श्रमण निग्रंन्मों के स्थूलकर्म शिथिल कम्माई सिढिलोकयाई-जाव-महापज्जवसाणा भवंति। होते हैं-यावत्-महापर्यवसान को प्राप्त होते हैं। से तेणढणं गोयमा! एवं युवाइ-जावइयं मन्नगिला- हे गौतम ! इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि अन्नग्लायक यए समणे निर्माथे कम्म निजरेइ एवश्यं कम्मं नरएम श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों का क्षय करता है उतने कमों का क्षय नेरया-जाब-वास-कोडाकोडीए वा नो खवयंति। नैरयिक जीव नरक में यावत्-कोटा कोटी वर्ष में भी नहीं -वि. स. १६, उ.४, सु २-७ करते। लयेणपत्त चारण लद्धिस्स वण्णओ तप से प्राप्त चारण लब्धि का वर्णन७२५. प.-कतिबिहा गं भंते ! चारणा पण्णता? ७२५. प्र.-भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उ०-गोधमा ! दुखिहा धारणा पण्णता, तं जहा.--- उ०-- गौतम ! चारण दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. विज्जाचारणा य, २. जंघाचारणा य । (१) विद्याचारण और (२) जपाचारण । ५०. से केपट्ठणं भंते ! एवं बुच्चद-विज्जाचारणे-विजा- प्र- भगवन् । विद्याचारण मुनि को "विद्याचारण" क्यों चारणे? कहते हैं ? -गोयसा ! तस्स गं छठ्छद्रेणं अणिक्सित्तेण तवो उ-गौतम ! निरन्तर बेले देले के तपश्चरणपूर्वक पूर्वकम्मेणं विजाए लदि सममाणस्स विज्जाधारणलड़ी श्रुतरूप विद्या द्वारा उत्तरगुणलब्धि अर्थात् तपोलब्धि को प्राप्त नाम लसी समुप्पज्जद। मुनि को विद्याचारणलब्धि नाम की लब्धि उत्पन्न होती है। से तेण?ण गोयमा 1 एवं बुच्चइ विज्जाचारणे- इस कारण से गौतम ! वे विद्याचारण कहलाते हैं। विज्जाचारगे। प०-विज्जाधारणस्स गं मंते ! कह सोहर गती, कहं सीहे प्र-भगवन! विद्याचारण की शीघ्र गति कैसी होती गतिविसए पण्णते? है? और उसका गति विषय कितना शीघ्र होता है ? ३०-गोयमा ! अयण जंबुद्दीवे दोवे-जाव-किरिबिसेसाहिए उ०-गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, जो सर्वद्वीपों में परिवरलेवेणं । देवे गं महिहोए-जाव-महेसक्खे-जाव- (आभ्यन्तर है)-पावत् - जिसकी परिधि (तीन लाख सोलह 'इगामेव-इणामेव ति कट्ट' केबलकप्पं जंबुद्दीव दीवं हजार दो सौ सत्ताईस पोजन से) कुछ विशेषाधिक है, उस . .

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