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घरणानुयोग-२
हाय का 31
सूत्र ७६५-७६६
अगुस्सुमो उरालेस, जयमागो परिव्यए ।
भिक्षु सुन्दर पदार्थों के प्रति उत्सुक न होता हुआ संयम में चरियाए अप्पमसो, पुट्ठो तस्थाहियासए॥
पतनापूर्वक प्रवृत्ति करे । संयम चर्या में अप्रमत्त होकर रहे तथा - सूम. सु. १, अ. ६, मा. ३० परीषहों और उपसगों के होने पर उन्हें सहन करे । ऐसे भो कसिणा फासा, फरसा पुरहियासया ।
हे वत्स ! ये पूर्वोक्त सारे परीषह कठोर और दुःसह है हत्यी वा सरसवीता, कीवाऽवसगता गिह ।। इनसे विवश होकर पौरुषहीन भिक्षु वैसे ही घर लौट आता है,
-सुय. सु. १, अ. ३, उ. १, गा. १७ जैसे संग्राम में बाणों से बींधा ही हाथी। परीसहजयफलं
परीषहजय का फल७६६. खुह पियासं दुस्सेज, सीउपहं अरई मयं ।
७६६. क्षुधा, प्यास, दुःभय्या, शीत, उष्ण, अरति और भय को महियासे अबहिओ, देहे दुक्तं महाफलं ।।
मुनि अदीन भाव से सहन करे। क्योंकि शारीरिक कष्टों को -दस. अ. ८, गा. २७ सहन करना मोक्ष महाफल का हेतु है।
उपसर्ग-जय-२
अगविहा जवसांगा
अनेक प्रकार के उपसर्ग--- ७६७. घडविहा उपसागा पण्णता, तं जहा---
७६७. उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१.दिव्या,
(१) देव के द्वारा किया जाने वाला उपसर्ग। २. माणुसा,
(२) मनुष्यों के द्वारा किया जाने वाला उपसर्ग। ३. तिरिक्खजोणिया,
(३) तियंचयोनि के जीवा के द्वारा किया जाने वाला
उपसर्ग । ४. आयसंयमिज्जा।
(४) स्वयं अपने वारा होने वाला उपसर्ग। - ठाण. अ ४, उ. ४, सु. ३६१(१) दिव्वा उक्सग्गा
देवकृत उपसर्ग७५८. विश्वा उदसम्गा घविहा पक्षणता, तं जहा -
७६५. दिश्य उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. हासा,
(१) कुतूहल-वश किया गया उपसर्ग। २. पोसा,
(२) पूर्वभव के देर से किया गया उपसर्ग। ३. बीमंसा,
(३) परीक्षा लेने के लिए किया गया उपसर्ग । ४. पुरोवेभाया।
(४) हास्य प्रदेषादि अनेक मिले-जुले कारणों से किया --ठाणं. म. ४, उ. ४, सु. ३६१(२) गमा उपसर्ग । माणुसा उवसग्गा--
मानवकृत उपसर्ग७६६. माणुसा उबसग्गा पश्चिहा पणता, तंजहा
७६६. मानुष उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१.हासा,
११) हास्य से किया गया उपसर्ग । २. पओसा,
(२) द्वेष से किया गया उपसर्ग । ३. वोमंसा,
(३) परीक्षार्थ किया गया उपसर्ग । ४.कुसील पडिसेवणय।।
(४) कुशील सेवन के लिए किया गया उपसर्ग। -ठाणं. म, ४, उ. ४,सु. ३६१(३)