Book Title: Charananuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 452
________________ सत्र ७२४ तपस्वियों और नरपिकों के कर्म निर्जशको तुलना तपाचार [३५९ उ.-नो तिण? सम81 उ-हे गौतम ! वह अर्थ समर्थ नहीं है। ५०–जावइयं णं भंते ! अट्ठमसिए समणे निग्गंधे कम्म प्र०. भन्ते ! अष्टम भक्त (तीन उपत्रास) करने वाला श्रमण निजरेइ, एवह कम्मं नरएसु नेरइया वास-सय- निर्ग्रन्थ जितने का का क्षय करता है क्या उतने ही कर्मों का सहस्सेण या, बास-सय-सहस्सेहिं वा, वासफोडीए वा नैरयिक जीव नरक में एक लाख वर्ष, अनेक लाख वर्ष या एक खवयोन्त ? करोड़ वर्ष में क्षय करता है? उ.-नो तिगढ़ सम?। उ० --हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प०--जावइयं णं भंते ! इसमत्तिए समणे निर्गथे फम्म ५०-भन्ते ! दशम भक्त (चार उपवास करने वाला श्रमण निजजरेइ, एबदय कम्म नरएसु नेरहया वास-कोडीए निर्ग्रन्थ जितने कर्मों का क्षय करता है क्या उतने ही कर्मों का वा वास कोडोहिं घा, बास-कोडाकोसीए वा खवयंति? सय नैरयिक जीव नरक में एक करोड़ वर्ष, अनेक करोड़ वर्ष या कोटा-कोटी वर्ष में क्षय करता है? उ०-नो तिण? सम?।। उ.-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।। ५० सेकेणणं भंते । एवं बुच्चइ - जावह अनगिला- प्र.-भन्ते ! यह किस कारण से कहते हैं कि अन्नग्लायक पए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेइ एवइयं कम्मं श्रमण नियंस जितने कर्मों का क्षय करता है उसने ही कर्मों को नरएसु नेरइया वासेणं वा, वासेहिं वा, वास-सएणं नैरयिक जीव नरक में एक दर्प, अनेक वर्ष या मो वर्ष में भी वा, नो स्वचयन्ति-जाव-वास कोडाकोडीए वा नो क्षय नहीं कर सकता-यावत्-कोटा कोटी वर्ष पर्यन्त क्षय सवयन्ति? नहीं कर सकता? - गोयमा ! से जहानामए केह-पुरिसे जुले, जराजज्ज- उ-हे गौतम ! जिस प्रकार कोई वृद्ध, जरा जर्ज रित रिपदेहे, सिढिरनतयावलि तरम-संपणिवगत्ते, पविरल- शरीर वाला, शिथिल स्वचा से सलवटें युक्त शरीर वाला, कतिपरिसडिय-वंत सेतो, उहाभिए, ताहाभिहए, आउरे, पय गिरे हुए दांतों वाला, गरमी से न्याकुल, तृपा से पीड़ित, असिए, विधासिए, दुम्बन, किलत, एग मह पोसंब. दुःखी, बुभुक्षित-तृषित, दुर्वल और मानसिक क्लेश वाला पुरुष मंडियं मुक्क जडिलं गठिल्लं चिषक वाइडं अपत्तियं हो और वह एक बड़ी कोणत्र नाम के वृक्ष को सूखी हुई, वक्र मुंण परसुणा अवक्कमेज्जा, तए पं से महंताई अन्थियों वाली चिकनी और निराधार रही हुई लकड़ी पर एक महंताई सद्दाई करेइ, नो महताई महंताई दसाई मोटे कुल्हाडे द्वारा प्रहार करे तो वह पुरुष बहुत जोर-जोर से अवद्दालेह । शब्द करता है किन्तु अनेक टुकड़े नहीं कर सकता। एवामेव गोपमा ! मेरइयाणं पाबाई कम्माई गाठी- इसी प्रकार हे गौतम ! नैरयिकों के अपने कर्म गाढ बंधे कयाई सिक्कणी-कथाई सिलिट्टी-कयाई खिसोभूताई हुए चिकने किये हुए निधत्त हुए एवं निकाचित किए हुए होते हैं भवंति, संपगा पिय ते वेदणं वेदेसाणा नो महा- इसलिए वे सम्प्रगाढ़ वेदना को भोगते हुए भी महानिर्जरा वाले निज्जरा जो महापज्जवसाणा प्रति । तथा महापर्यवसान वाले नहीं होते हैं। २. से जहाना भए केह-पुरिसे अहिकरणिं आचठमाणे (२) जिस प्रकार कोई एक पूरुष जोरदार शब्दों के साय, महया महया सद्देणं, महया-महया घोसेणं, महया महापोष के साथ एरण पर धन की चोट मारता है, बहुत जोरमहया परंपराधाएणं, नो संचाएइ तोसे अहिंगरपिए जोर से आवात करता है किन्तु एरण के स्थूल पुद्गलों को तोड़ने के अहाबायरे पोग्गले परिसाहित्तए, में समर्थ नहीं होता है। एवामेव गोयमा ! मेरयाणं पावाई कम्माई गाढी- इसी प्रकार हे गौतम ! रयिकों के अपने पापकर्म गाढ़ कियाई-जाव-नो महापज्जवसाणाई भवंति । बंधे हुए होते हैं - यावत्-वे महापर्यवसान वाले नहीं होते। ३. से जहानामए फेद-पुरिसे तरुण बलवं-जाव-मेहाबी (३) जिस प्रकार कोई तरुण पुरुष बलवान यावत्निससिप्पोबगए एवं महं सामलिगडिय उल्लं, अज- मेधावी और निपुण शिल्पकार एक बहुत बड़े शाल्मली वृक्ष की हिल, अगठिल्लं, अधिक्कणं, अवाइड, सपत्तियं गिली, अजटिल, अगठिल, (गांठ रहित) चिकनाई से रहित सीधी तिक्षेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए पं से पुरिसे नो और आधार सहित लकड़ी पर तीक्ष्ण परशु से प्रहार करता हुआ महंताई महंताई सद्दाई करेष्ठ महंताई महंताई दलाई वह पुरुप बहुत जोर-जोर से शब्द नहीं करता है किन्तु अनेक अवद्दालेइ। टुकड़े कर देता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571