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चरणानुयोग- २
१. संसारविसग्गे,
२. सिरिय संसारविसम्मे
३. मणुय संसार विओसग्गे,
४. देव संसारणिओसम्पे,
से सं संसारविसगे । किम्मवियो
२०
० कम्मविलोम अपि जहा
१. गाणावरणियम्म
२. बरिसणावरणिकम्मविभोगे,
३. मणिकमविओसम्य
२. वायसम्मवियो
४. मोहम्म्मवियोगे
६. नामकम्म विओगे,
७. गोय कम्मविओोसणे,
?
सेकसि
से तं भावविओसग्गे ।'
८. अंतरायामविजये।
काउसग फलं७२० प०
1
१ उष. सु. ३०
उसग्गं भन्ते । जोने कि भगवा ?
कायोत्सर्ग का फल
वि. स. २५, उ. ७, सु. २५० -२५५
(१) गैर-संसार नरक गति बंधने के
७११-७२०
का त्याग |
(२) तिर तिच दति बंधने के कारणों
का त्याग ।
(३) मनुज-संसारव्युत्सर्ग-मनुष्य गति बंधने के कारणों
का त्याग ।
(४) देवसंसार-सदेव पति बंधने कारों का ध्यान यह संसार व्युत्क्ष का वर्णन है।
प्र० - कर्म व्युत्सर्ग क्या है वह कितने प्रकार का है ?
उ०- कर्म व्युत्सगं आठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है
(१) ज्ञानावरणीय
आवरक कर्म पुगलों के बंधने के कारणों का त्याग )
(२) दर्शनावरणीय प्रम (आरमा के दर्शन (सामान्य ज्ञानगुण) के आवरक कर्म पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग ।) (३) वेदनीय कर्म ब्युत्सगं ---- (साता असाता दुःखरूप वेदना के हेतुभूत पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग । सुख दुःखात्मक अनुकूल-प्रतिकूल वेदन में आत्म को तद्-अभिन्न मानने का उत्सर्जन )
-
ज्ञान के
कायोत्सर्ग का फल ७२०० प्राप्त करता है ?
(४) मोहनीय कर्म (आय के स्वप्रतीति-स्वानुभूति स्वभाव रामरूप गुण के नरक कर्म पुदुमलों के बंधने के कारणों का त्याग )
(५) आयुष्य कर्म स्वर्ग (किसी भव में पर्याय में रोक रखने वाले आयुष्यकर्म केसों के बंधने के कारणों का त्याग )
(६) नाम-कर्म-रस- (आत्मा के अर्तत्व गुण के वारक कर्म पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग ।)
(७) गोत्र-कर्म - व्युत्सर्ग --- (आत्मा के अगुरुलघुत्व (न भारीपन न इलापन) रूप गुण के आवरक कर्मों के बंधने के कारणों का त्याग ।)
(4) अन्तराय -कर्म- व्युत्सर्ग- ( आत्मा के शक्ति रूप गुण के आवरक (अवरोध) कर्म पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग ) यह कर्म व्युत्सगं है ।
इस प्रकार भाव व्युत्म का विवेचन है।
को (म्या की मुद्रा) से जीव क्या