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सूत्र ७१०-७१४
धर्मभ्यान के लक्षण
तपाचार
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२. अवायविजये,
(२) अपायविषय · राग-द्वेष, कषाय, मिथ्यात्व, अविरति
आदि मानवों का चिन्तन करना। ३. विवागविमये,
6) विपाकविषय-शानावरणीव भादि कर्मों से उत्पन्न
आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं का चिन्तन करना। ४. संठाणविजये।
(४) संस्थानविचय-कध्वं अधोसोक, द्वीप समुद्र आदि के -वि. स. २५, उ. ७, सु. २४२ विषय में चिन्तन करना। धम्मशाण लक्खणा
धर्मध्यान के लक्षण७११. धम्मस्स जसाणस्स चत्तारि लक्षणा पन्नता, तं महा- ७११. धर्मध्यान के चार सक्षण कहे गये हैं। यथा१. आणाई
(१) आज्ञारुषि-वीतराग की आज्ञा में रुचि होना, २. निसरगहई
१२) निसर्ग कचि-किसी के उपदेश के बिना स्वभाव से ही
जिनभाषित तत्वों पर श्रद्धा होना। ३. मुत्तराई,
(३) सूत्र चि-आगमों के अध्ययन व श्रवण में रुचि
होना। ४. ओगावरुई।
(४) अवगाह रुचि-(उपदेश रुचि) धर्मोपदेश श्रवण में -वि. स. २५, उ. ७, सु. २४३ उत्पन्न रुचि होना । धम्माणस्स आलंबणा
धर्मध्यान के आलम्बन७१२. धम्मस्स णं माणस्स चत्तारि आलंवगा पन्नता, तंगहा- ७१२. धर्मध्यान के चार अवलम्बन कहे गये हैं, यथा-- १. वायणा,
(१) वाचना, २. पडिपुच्छणा',
(२) पृच्छना, ३. परियट्टणा,
(३) परिवर्तना, ४. धम्मकहा। -वि. स. २५, ३. ७, सु. २४४ (४) धर्म कथा । धम्मशाणस्स अणुप्पेहाओ
धर्मध्यान की अनुप्रेक्षाएँ७१३. धम्मस्स गंशाणस घसारि अजुप्पेहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा- ७१३. धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ कही गयी हैं । यया१. एगत्ताणुप्पेहा,
(१) एकत्वानुप्रेक्षा आत्मा के एकत्व भाव का चिन्तन
करना। २. अणियामुप्पेहा,
(२) अनित्यानुप्रेक्षा-शरीर, जीवन आदि की अनित्यता
का चिन्तन करना। ३. असरणाणुप्पेहा,
(३) अशरणानुप्रेक्षा-आत्मा की अशरणदशा का चिन्तन
करना। ४. संसाराणुप्पेहा । -वि. स. २५, उ. ७, सु. २४५ (४) संसारानुप्रेक्षा-संसार परिभ्रमण का चिन्तन करना। सुक्कज्माण भेया
शुक्लध्यान के भेद७१४. सुरके शाणे चविहे उप्पडोयारे पन्नते, तं जहा- ७१४. शुक्लष्यान के चार प्रकार और चतुष्प्रत्यावतार बहे है,
यथा१. पुहत्तवियक सवियारी,
(१) पृथक्त्व-वितर्क-सविचारी--एक ट्रम्य विषयक अनेक पर्यायों का पृथक् पृथक् चिन्तन करना।
१ उव. सु. ३० में चौथा लक्षण "उवएसुरुई है" २ उव. सु. ३०, दूसरा आलम्बन (पूच्छणा) है।