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सत्र ६६६-६७०
पारिहारिक और अपारिहारिकों के परस्पर आहार सम्बन्धी व्यवहार सपाचार [३३५ Animmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrammmmmmmmmmmmmmmmmm..
जो पं थेरेहिं अविष्णे, अभिनिसेज्ज वा अभिनिसीहियं वा यदि स्थविर की आज्ञा के बिना वे एक साथ रहें या त्रै एइ, से संतरा छए था परिहारे वा।।
तो उन्हें उस मर्यादा उल्लंघन का दीक्षा छेद या परिहार तप
- वव. उ.१, सु. १६ प्रायश्चित्त बाता है। पारिहारिय-अपारिहारियाणं अण्णमष्णं आहार ववहार- पारिहारिक और अपारिहारिकों के परस्पर आहार
सम्बन्धी व्यवहार६१७०. बहवे पारिहारिया बहवे अपरिहारिया इच्छेन्जा एगपो ६७०, अनेक पारिहारिक और अनेक अपारिहारिक भिक्षु यदि
एगमासं वा, तुमासं वा, तिमासं षा, चाउमासं वा, पक्षमासं एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ: मास पर्यन्त एक साथ रहना घा वत्पए। ते अन्नमन संभुति, अन्नमन्नं नो संगति। चाहे तो पारिहारिक भिक्षु पारिहारिक भिक्षु के साथ और मासंते, तमो-पच्छा सम्वे वि एगयओ सति । अपारिहारिक भिक्षु अपारिहारिक भिक्षु के साथ बैठकर आहार
कर सकते हैं और पारिहारिक भिक्षु भपारिहारिक भिक्षु के साथ बैठकर आहार नहीं कर सकते हैं, किन्तु छ: मास तप के और एक माम पारणे का बीतने पर वे सभी (पारिहारी और अपारि
हारी) भिक्षु एक साथ बैठकर आहार कर सकते हैं। परिहार-कप्पष्ट्रियस्त भिक्षुस्स नो कप्पा असणं वा-जाय अपरिहारिक भिक्षु को पारिहारिक भिक्षु के लिए अशन साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउ वा।
-यावत् - स्वादिम आहार देना या निमन्त्रण करके देना नहीं
कल्पता है। थेरा य ण वएग्जा-'इम ता अज्जो ! तुम एएस देहि या यदि स्थविर कहे कि- "हे आर्य! तुम इन पारिहारिक अणुपदेहि वा,"
भिक्षुओं को यह आहार दो या निमन्त्रण कर के दो।" एवं से कप्पा यावा, अणुपदावा ।
ऐसा कहने पर उसे आहार देना या निमग्नग करके देना
कल्पता है। कम्पइ से लेवं अणुजाणावेत्तए,
परिहार कल्पस्थित भिक्षु यदि लेप (घृतादि विकृति) लेना
चाहे तो स्थविर की आज्ञा से उसे लेना कल्पना है । "अणुनाणह भंते 1 लेवाए"
"हे भगवन ! मुझे घृतादि विकृति लेने की आज्ञा प्रदान
एवं से कप्पह सेवं समासेवित्तए ।
इस प्रकार स्थविर से आज्ञा लेने के बाद उसे घृतादि विकृति
का सेवन करना कल्पता है । परिहार-कल्पष्टुिए भिक्खू सएवं पडिग्गहेणं यहिया अपणो परिहारकल्प में स्थित भिक्षु अपने पात्रों को ग्रहण कर वेशवाजयाए गच्छज्जा, येराव णं वएज्जा ।
अपने लिए आहार लेने जावे, उसे जाते हुए देखकर स्थविर
कहे कि"पडिग्गाहेहि अन्जो ! अहं पिभोक्खामि वा पाहामि वा," हे आर्य ! मेरे योग्य आहार पानी भी लेते थाना में भी
खाऊँगा घिऊंगा।" एवं से कप्पइ पडिग्माहेत्तए ।
ऐसा कहने पर उसे स्थविर के लिए आहार लाना
कल्पता है। तस्य नो कप्पह अपरिहारिएणं परिहारियस्स पडिमा हंसि अपरिहारिक स्थविर को पारिहारिक भिक्षु के पात्र में असणं वा-जाव साइमं या भोत्तए वा पायए वा।
अशन--यावत--स्वाद्य खाना पीना नहीं कल्पता है। कप्पद से सयंसि वा, पडिम्गहंसि, समंसि वा पलासगंसि, किन्तु उसे अपने ही पात्र में, पलासक में, जलपात्र में, दोनों सयंसि वा कमण्डलगसि, सयंसि वा खुम्भमंसि वा, सयंसि हाय में या एक हाथ में ले ले कर खाना-पीना कल्पता है। वा पाणिसि उट्ठ-उद्धट्ट भोसए वा पायए वा। एस कप्पो अपरिहारियस्स परिहारियाओ।
ग्रह पारिहारिक भिक्षु का पारिहारिक भिक्षु की अपेक्षा से आचार कहा गया है।