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सुन ६८४-६८
अन्यतीथिकादि के साथ स्वाध्याय भूमि गमन प्रायश्चित्त सूत्र
तपाचार
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से तारिसे दुक्खसहे जिइंगिए.
जो पूर्वोक्त गुणों से युक्त है, दुःखों को सहन करने वाला है, सुयेग जुत्ते अममे आँफंघण । जितेन्द्रिय है, श्रुतमान है, ममत्व-रहित और अकिंचन है, वह विरायई कम्मघणम्मि अवगए.
कम समूह के दूर होने पर उसी प्रकार शोभित होता है जिस कसिणऽभपुडायगमे व चंदिमे ॥ प्रकार सम्पूर्ण अभ्रपटल से रहित चन्द्रमा ।
-दस. ब. ८, गा. ६१-६३ सज्झायभूमिसु अण्ण उस्थियाइ सद्धिगमण पायच्छित्त यन्यतीर्थिकादि के साथ स्वाध्याय भूमि गमन प्रायश्चित्त
सूत्र६८५. जे भिक्खू अण्णउत्थिएव वा गारस्थिएण या परिहारियो वा ६८५. ओ भिक्ष अन्यतीथिक या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक
अपरिहारिएण सशि पहिया बियारभूमि वा विहारभूमि साधु अपारिहारिक के साथ (उपाथय से) बाहर की स्वाध्यायवा निक्खमह वा, पविसइ बा, निक्समतं वा, पविसतं वा भूमि में या मल विसर्जन भूमि में प्रवेश करता है या निष्क्रमण साइज
करता है, प्रवेश कराता है या निष्क्रमण कराता है, प्रवेश करने
वाले का या निष्क्रमण करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जद मासियं परिहारट्टाणं उग्घाइयं । उसे मासिक उदधातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. २. सु. ४१ दुगन्छिय कुलेसु सज्झाय उद्देशण पायच्छित सुतं- निन्दित कूल में स्वाध्याय देने का प्रायश्चित्त सूत्र६६६. जे भिक्खू सुरछियकुलेसु ससायं उद्दिसह उद्दिसत वा ६८६. जो भिक्ष घृणित कुलों में स्वाध्याय का उद्देश (मूल पाठ साहज्जा।
वाचन करना) करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। तं सेवमाणे आवस्जद चाउम्भासिय परिहारद्वाणं उघाइयं । उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १६, सु. ३० आता है। सुत्त वायणाहेउणो
सूत्र-वाचना के हेतु६८७. पंचहि गणेहि सुत्त बाएज्जा, तं नहा --
६८७. पांच कारणों से सूर्य की याचना देनी चाहिए । जैसे१. संगहट्टयाए.
(१) शिष्यों को श्रुत-सम्पन्न बनाने के लिए। २. उवम्गहट्टयाए,
(२) शिष्य वर्ग पर अनुग्रह पूर्वक उपकार करने के लिए। ३. गिजरठ्याए,
(३) कमों की निर्जरा के लिए। ४ सुत्ते वा मे पन्जययाते भविस्सइ।
(४) वाचना देने से मेरा श्रुत परिपुष्ट होगा, इस कारण से । ५. सुत्तस्स वर अवोमिछत्ति-णयट्टयाए।
(५) श्रुत के पठन-पाठन को परम्परा अविच्छिन्न रखने के -ठाणं. अ. ५, उ. ३, सु. ४६७ लिए। सुयवायणिज्जा
सूत्र बाचना के योग्य-- ६८८. चत्तारि यायणिज्जा पण्णत्ता. तं जहा
६५८. चार वाचना देने के योग्य होते हैं, यथा१. विणीए,
(१) बिनीत--सूवार्थदाता के प्रति बन्दनादि विनयभाव
करने वाला। २. अबिगतिपडिबद्ध,
(२) विकृति अप्रतिबद्ध-धृतादि विकृतियों में आसक्त न
रहने वाला। ३. विओसवियपाडे,
(३) व्यवमित प्राभृत-उपशान्त कलह वाला। ४. अमाई। - ठाणं, अ. ४, उ. ३, सु. ४६७ (४) श्रमायावी । १ (क) तओ कम्यंति पाएताए, तं जहा
(१) विणीए, (२) नो विगइ पडिक्ले, (३) विओसबियपाहुडे। -कप्प. उ. ४, सु. ११ (ख) ठाणं. अ. ३, उ.४, सु. २०४