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सूत्र ६१७-६१८
खड़े रहकर कायोत्सर्ग करने को चार प्रतिमाएँ
तपाचार
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चत्तारि ठाण-काउस्सग पडिमा
खड़े रहकर कायोत्सर्ग करने की चार प्रतिमाएं६१७. इसचेयाई आयतणाई उचातिकम्म अह भिक्खू इच्छेज्जा- ६१७. पूर्वोक्त स्थान सम्बन्धी दोषों को छोड़कर भिक्षु इन चार चहि पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए।
प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा से कायोत्सर्ग करने की
इच्छा करे१. तरिथमा पठमा पडिमा - "अचित्तं खलु उवसज्जिस्तामि, १. उनमें से प्रथम प्रतिमा यह है-"मैं अचित्त मर्यादित अवलंबिम्सामि, काएण विष्परिकम्मिस्सामि, सवियारं ठाणं स्थान में रहेंगा, दीवार आदि का सहारा लूंगा, हाथ-पैर आदि ठाइस्सामि ति।" पहमा पडिमा ।
का संबोधन-प्रसारण करूंगा तथा वहीं पर थोड़ा-सा विचरण
करूंगा," यह प्रथम प्रतिमा है। २. अहावरा बोच्दा पउिमा . "अचित्तं खलु उपसज्जिस्सामि, २. इसके बाद दूसरी प्रतिमा यह है-"मैं अचित्त मर्यादित अवलंबिसामि काएण विपरिकन्मिस्सामि, णो सक्यिारं स्थान में रहूंगा, दीवार आदि का सहारा लूंगा, हाथ-पैर आदि ठाणं ठाइस्सामिति ।" दोच्चा पडिमा ।
का संकोचन प्रसारण करूगा, किन्तु थोड़ा-सा भी विवरण नहीं करूगा," यह दूसरी प्रतिमा है।
३. इसके बाद तृतीय प्रतिमा यह है-"मैं अचित्त मर्यादित अवलंबिस्सामि णो काएण विधरि कम्मिस्सामि, णो सवियार स्थान में रहूँगा, दीवार आदि का सहारा लूंगा, किन्तु हाथ-पर ठाइस्सामि त्ति ।" तच्चा पडिमा ।
आदि का संकोनन-प्रसारण नहीं करूंगा तथा भ्रमण भी नहीं
करूंगा." यह तीसरी प्रतिमा है। ४. अहावरा चउत्था पडिमा- ''अचित्तं खलु उचसज्जि. ४. इसके बाद चतुधं प्रतिमा यह है-'मैं अचित्त स्थान में सामि, णो अवलंचिस्सामि, णो कारण विप्परिकम्निस्सामि, स्थित रहूँगा । उस समय न तो दीवार आदि का सहारा लुंगा, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, बोसटुकाए वोसटुकेस-ममु- न हाथ-पैर आदि का संकोचन-प्रसारण करूँगा और न ही भ्रमण रोम हे संनिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति ।" चउत्था करूंगा, अपितु शरीर का ममध्य तथा केश, दाढी, मछ, रोम पडिमा।
और नख आदि के परिकम का त्याग कर सम्यक् प्रवार से काया का निरोध कर इस स्थान में कायोत्सर्ग करके स्थित रहूँगा,"
यह चौथी प्रतिमा है। इच्चेयासि चउण्हं पडिपाणं अण्णतरं पटिम पडिबज्जमाणे इन चारों प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण -जाव-अण्णोण्ण-समाहोए एवं च गई विहरति ।
करने वाला साधु-यावत् - सभी अपनी-अपनी समाधि के - आ. सु. २, अ.क, उ. १, सु. ६३५-६३६ अनुसार विचरण करते हैं। सत्त अवग्गह पडिमाओ--
अवग्रह लेने की सात प्रतिमाएं - ६१८. इच्चेयाई आयतणाई उपातिकम्म अह भिक्ख जाणेज्जा ६१८. पूर्वोक्त अवग्रह सम्बन्धी दोषों का परित्याग करके भिक्षु इमाहि सप्तहि पडिमाहि उग्यहं ओगिम्हित्सए
इन सात प्रतिमाओं के अनुसार अवग्रह ग्रहण करे१. जत्य स्खलु इमा पदमा पडिमा--से आगंतारेसु वा-जाब- १. इनमें से पहली प्रतिमा यह है कि वह साधु पथिकपरियावसहेसु वा अणवीइ उग्गहं जाएज्जा-जाव तेग पर शाला–यावत् परियाजकों के आश्रम में सम्यक विचार करके विहरिस्सामो । पढमा पडिमा ।
अवग्रह की याचना करे-यावत्- उसके बाद हम विहार कर
देंगे, यह प्रथम प्रतिमा है। २. अहावरा दोच्चा पडिमा- जस्स गं भिक्खस्स एवं२. इसके बाद दूसरी प्रतिमा यह है कि जिस भिक्षु का भवति "अहं च खलु अण्णेसि भिक्खूणं अढाए जग्गहं इस प्रकार का अभिग्रह होता है कि "मैं अन्य भिक्षुओं के लिए ओगिहिस्सासि, अण्णेसि भिक्षूर्ण उगहिते उगहे उथ- अवग्रह की याचना करूंगा और अन्य भिक्षुओं के द्वारा पाचित ल्लिस्सामि।" दोच्चा पडिमा ।
अवग्रह में निवास करू गा।" यह द्वितीय प्रतिमा है ।
१ २
ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३३१ ठाणं. अ.७, सु. ५४५ ।