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सूत्र ६२५-६२७
दत्ति प्रमाण निरूपण
तपाचार
[३०५
तेरसमीए से कप्पद चजहस रत्तीओ भोयणस्स पढिगाहेलए, तेरस के दिन भोजन और पानी की चौदह-चौदह दत्तियाँ पउद्दस पाणस्स-जाव-एयाए एसणाए एसमाणे लभेजा ग्रहण करना कल्पता है यावत्-इस प्रकार के अभिग्रह से एषणा भाहारेजा, एयाए एसणाए एसमार्ग पो लभेजा गो आहा- करते हुए आहार प्राप्त हो तो ग्रहण करे, यदि इस प्रकार के अभिरेजा।
ग्रह से एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तो ग्रहण न करे। चउहसमीए से कप्पइ पन्नरस दत्तोओ मोषणस्स पडिगाहेत्तए, शुक्ल पक्ष की चौदस के दिन भोजन और पानी की पन्द्रहपत्ररस पाणस्स-जाव-एमाए एसणाए एसमाणे सभेज्जा आहा- पन्द्रह दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है-पावत्-इस प्रकार के रेज्जा, एयाए एसगाए एसमाणे णो सभेवजा णो आहा- अभिग्रह से एषणा करते हुए आहार प्राप्त हो तो ग्रहण करे, यदि रेज्जा
इस प्रकार के अभिग्रह से एपणा करते हुए आहार प्राप्त न हो
तो ग्रहण न करे। पुणिमाए से य अम्मत्त₹ भवइ ।
पूर्णिमा के दिन वह उपवास करता है। एमाए पर दाडिमा अहासुतं-जात्र-आणाए इस प्रकार यह वन-मध्य चन्द्र प्रतिमा मूत्रानुसार-पावत्अणपालिया मवई।
-वव. उ. १०, शु. ३-४ जिनाजानुसार पालन की जाती है। दत्तिपरिमाण निरुवर्ण
दत्ति प्रमाण निरूपण-. ६२६. संवादत्तियस्स मिक्लुस्स पडिग्गहयारिस्स गाहावहकुल ६२६. दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करने वाला पात्रधारी पिढवाय पडियाए अणुविदुस्स,
गिन्य गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करे उस समयजावइयं जावइयं केद अन्तो पडिगगहंसि वइत्ता दलएज्जा (१) आहार देने वाला गृहस्थ पात्र में जितनी बार झुकाकर तावहयाओ ताओ दत्तीओ वत्तवं सिया ।
(नमाकर) आहार दे उतनी ही "दत्तियां" कहनी चाहिये। तत्य से केह छब्बएवं वा. बूसएणं वा, बालएणं वा, अन्तो (२) आहार देने वाला गृहस्थ यदि छबड़ी से. वस्त्र से या पडिग्गहंसि उवहत्ता बलएज्जा सध्या विणं सा एगा दत्तो चलनी से बिना रुके पात्र में झुक कर दे वह सब एक दत्ती कहनी यत्तम्ब सिया।
चाहिए । सत्य से वहवे मुंजमाणा सम्वे ते सयं सय पिसाहणिय (३) आहार देने वाले गृहत्य जहां अनेक हों और वे सब अन्तो पडिग्गहसि उवइता दलएज्जा, सव्वा वि गं सा एगर अपना-अपना आहार सम्मिलित कर बिना रुके पात्र में झुकाकर दस्ति वत्तवं सिया।
दें वह सब "एक दत्ती" कहनी चाहिए। संसादत्तियास गं भिक्खुस्स पाणिपडिमाहियस्स गाहावरफुल दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करने वाला कर-पात्रभोजी पिण्डवाय-पडियाए अणुपविटुस्स,
निन्थ गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रवेश करे उस समयजावइयं जावक्ष्य के अन्तो पाणिसि उवइत्ता दलएज्जा, (१) आहार देने वाला गृहस्थ जितनी बार झुकाकर भिक्षु के तावश्याओ ताओ दत्तोओ बत्तव्य सिया।
हाथ में आहार दे उतनी ही "दत्तियों" कहनी चाहिए। तत्प से केव घरबएणं वा, दूसएग वा, वालएण वा अन्तो (२) आहार देने वाला गृहस्थ यदि छबड़ी से, वस्त्र से या पाणिसि उपइत्ता बलएज्ना, सध्या विणं सा एगा वत्ती चलनी से बिना रुके भिक्षु के हाथ में जितनः आहार दे वह सब वत्सव्वं सिया ।
"एक दत्ती" कहनी चाहिए। तत्य से बहवे मुंजमाणा सवे ते सयं सयं पिण्डं 'साहणिय (३) आहार देने वाले गृहस्थ जहाँ अनेक हों और ये सब अम्तो पाणिसि उबहत्ता बलएक्जा सव्वा वि पं एगा रत्ती अपना-अपना आहार सम्मिलित कर बिना रुके भिक्ष के हाथ में बत्तव्य सिया ।
-बब. उ. ६, सु. ४३-४४ झुकाकर दे वह सब "एक दत्ती" कहनी चाहिए। मोयपडिमा विहाणं
मोक-प्रतिमा-विधान - ६२७. दो पडिमाओ पश्णत्ताओ, तं जहा
६२७. दो प्रतिमाएं कही गई हैं, यथा१. ड्डिया वा मोयपडिमा, २. महल्लिया था मोयपडिमा। (१) छोटी प्रस्रवण प्रतिमा, (२) बड़ी प्रनवण प्रतिमा । खुष्टियं मोयपडिम पडिवनस्स अपगारस्स कप्पद पढम- छोटी प्रस्रवण प्रतिमा शरदकाल के प्रारम्भ में अथवा ग्रीष्मपरय-काल समयसि वा चरम-नियाह-काल-समयसि वा, काल के अन्त में ग्राम के बाहर-पावत् - सनिवेश के बाहर, बहिया गामस्स वा-जाव-सनिबेस्स वा वर्गसि वा, वणवुमांसि वन में या वन दुई में, पर्वत पर या पर्वत दुर्ग में अणगार को था, पटवर्यसि वा, एन्वयवुग्गसि वा ।
धारण करना कल्पत्ता है।