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सूत्र ६१२-६१३
प्रतिमा धारण करने वाले का वचन विवेक
तपाचार
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४ अहावरा चउत्था पाणेसणा-से भिक्खू वा-जाव-समाणे से ज्जं पुण पाणगजायं जाणंज्जा । तं जहातिलोदगं वा, तुसोदन वा, जबोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुचियर्ड वा।
(४) इसके बाद चौथी पाणषणा यह है । वह भिश्च-यावतप्रवेश करने पर यह जाने कि
यहां तिल का धोवन, तुष का धोबन, जो का धोवन, चावल आदि का ओसामण, कांजी का पानी या शुद्ध अचित्त शीतल
अस्सि बलु पडिगहियसि अप्पे परुछाकम्से, अप्पे पम्जव- इनमें से किसी प्रकार का पानी ग्रहण करने पर पात्र के अन्न जाए।
आदि बा लेप नही लगता है तथा कुछ भी फेंकना नहीं पड़ता है। तहप्पगारं तिलोदगं वा-जाव-सुवियर्ड वा सयं वा गं ऐसे तिल का धोवन-यावत्-शुद्ध अमित्त शीतल जल की जाएगा, परो वा से वैज्जा, फासुयं-जाव-पडिगाहेज्जा। स्वयं याचना करे या गृहस्थ दे उसे प्रासुक जानकर-यावत - चउत्था पासणा।
ग्रहण कर ले । यह चौथी पाणषणा है। ५. अहावरा पंचभा पाणेरा-- भिक्खू वा-जाव-समाणे (५) इसके बाद पांचवीं पाणषणा यह है-वह भिक्ष उम्गहियमेव पाणगजायं जाणेज्जा । तं जहा
-यावत् - प्रवेश करने पर ग्रह जाने कि · यहाँ किसी बर्तन में
पानी रखा हुआ है, ययासरायसि वा, डिडिमंसि बा, कोसगंसि वा।
__ सकोरे में, कांसे के बर्तन में या मिट्टी के बर्तन में । अह पुणे जाणेज्जा-बढ़एरियावाणे पाणीसु बगलेवे ।
फिर यह भी जान जाए कि पानी देने वाले के हाथ सचित्त
पानी से अलिप्त हो गये हैं, पूर्ण सूख गये हैं। तहप्पगारं पाणगजाय सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से उस प्रकार के पानी की स्वयं याचना करे या यह गृहस्थ दे वेज्जा, फामुयं-जाव-पडिगाहेज्जा । पंचमा पासणा। तो उसे प्रासुक जानकर-यावत्-ग्रहण कर ले। यह पांचवीं
पाणषणा है। ६. अहावरा छट्ठा पासणा-से भिक्खू वा-जाव-समाणे (६) इसके बाद छठी पाणषणा यह है-वह भिक्षु-यावत्पगहियमेव पाणगजायं जागेकजा-जं च सयट्टाए पाहिजं प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्थ में अपने लिए या दूसरे के च परट्टाए परमहितं ।
लिए पानी निकाला है। तं पायपरियावाणं तं पाणिपरियावणं पाणमजायं सयं वा ऐसा वह गृहस्थ को पात्र में व हाथ में रहा हुआ पानी णं जाएज्जा परो वा से वेज्जा, फासुये-जाय-परिगाहेज्जा। साधु स्वयं याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो उसे प्रासुक छट्ठा पाणेसणा।
जानकर यावत्-ग्रहण कर ले । मह छठी पाणैषणा है। ७. अहावरा सत्तमा पासणा-से मिक्ख या-जाव-समाणे (७) इसके बाद सातवी पाणषणा यह है--बह भिक्ष उशित धम्मियं पाणगजायं जाणेज्जा।
-यावत्-प्रवेश करने पर यह जाने किजं चणे बहवे दुपय चउप्पय-समण-माण-अतिहि-किवण- गृहस्थ के फैकगे योग्य पानी है जिसे अन्य बहुत से द्विपदवगोमगा णावकखति ।
चतुरूपद-श्रमण-ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्री और भिखारी लोग नहीं
चाहते, तहप्पगार उन्सितधम्मियं पाणगजायं सयं वा जाएज्जा, ऐसे फेंकने योग्य पानी की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ परो वा से वेज्जा, फासुयं-जाय-पडियाहेज्जा । सत्तमा दे तो उसे प्रासुक जानकर-यावत्-प्रहण कर ले। यह सातवीं
पाणेसणा। -आ. शु. २, अ. १, उ. ११, सु. ४०६ पाणेषणा है। पडिमा धारगस्स वयणं विवेमो
प्रतिमा धारण करने वाले का वचन विवेक६१३. इन्वेयासि सप्ताह पिडेसणाणं, सत्तण्हं पासणाणं अण्णतरं ६१३. इन सात पिडेपणाओं और सात पाणषणाओं में से किसी
पडिम पजिवाजमाणे णो एवं बवेजा-"मिच्छा पडिवण्णा एक प्रतिमा को स्वीकार करने वाला भिक्षु इस प्रकार अवहेलना खलु एते भयंतारो, अहमेमे सम्म पडिवणे"
करता हुआ न कहे कि-"इन साधु भयवन्तों ने असम्यक् प्रतिमाएं स्वीकार की हैं, एक मात्र मैंने ही सम्यक् प्रतिमा स्वीकार की है।"