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सत्र ६०८-६०१
अहोरात्रिको भिक्षु प्रतिमा
तपाचार
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अहोराइया भिवस्य पडिमा--
अहोरात्रिको भिक्षु प्रतिमा६०८. एवं आहेराइयावि ।
६०८. इसी प्रकार अहोरात्रिको प्रतिमा का भी वर्णन है। नवर-छ?णंभत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्म वा-जाव-राय- विशेष यह है कि निर्जल षष्ठ भक्त करके ग्राम---यावत्हाणिस्स या ईसि पम्भार गएणं काएणं दो वि पाए साहट्ट राजधानी के बाहर शरीर को थोड़ा सा झुकाकर दोनों पैरों को बग्घारिय-पाणिस्स ठाणं ठाइसए। सेसं सं चेय-जाव-अणु- संकुचित कर और दोनों भुजाओं को जानु पर्यन्त लम्बी करके पालित्ता भवद।
-दसा. द. ७, सु. ३५ कायोत्सर्ग करना चाहिए। शेष पूर्ववत् यावत्-यह प्रतिमा
जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। एगराइया भिक्खु पडिमा -
एक रात्रिको भिक्षु प्रतिमा६०६. एप-राइयं भिक्स्बु-पतिम परिबलाल अणगारमा जान-अहि- १०६ एर रात्रिकी भिक्षु प्रतिमाघारी अनगार-यावत्यासेज्जा।
___ शारीरिक क्षमता से उन्हें सहन करे । करपद से अट्टमेणं भत्तणं अपाणएणंबहिया गामस्स वा-जाब- उसे निर्जल अष्टम भक्त करके ग्राम यावत्-राजधानी रायहाणिस वा ईसि पामारगएणं काएणं एग पोग्गलट्टिप्ताए के वाहर शरीर को थोड़ा सा आगे की बोर झुकाकर, एक विटाए अणिमिसनयहिं महापणिहि तेहिं गुहि सविविएहि पदार्थ पर दृष्टि स्थिर रखते हुए अनिमेष नेत्रों से और निश्चल गुत्तेहि दो बि पाए साह वाघारियपाणिस्स ठाणं ठाइसए। अंगों से सर्व इन्द्रियों को गुप्त रखते हुए दोनों पैरों को संकुचित
कर एवं दोनों भुजाओं को जानुपर्यन्त लम्बी करके कायोत्सर्ग से
स्थित रहना चाहिये। तस्थ से विश्व-माण रस-तिरिक्खजोणिया उपसम्मा समुप्प- वहाँ यदि देव, मनुष्प या तिथंच गम्बन्धी उपसर्ग हों और ज्जेज्जा ते णं उबसग्गा पयलेज्ज वा पवकेज्ज वा नो से वे उपसर्ग उस अनगार को ध्यान से विचलित करें या पतित कपद पपलित्तए वा परिसए का।
करें तो उसे विचलित होना या पलित होना नहीं कल्पना है। तत्य गं उरचार-पासवणेणं उव्वाहिज्जा, नो से कप्पइ यदि मल मूत्र की बाधा हो जाय तो उसे रोकना नहीं उच्चार-पासवणं उगिम्हित्तए वा णिगिम्हित्तए वा । कप्पइ फल्पता है, किन्तु पूर्व पतिलेखित भूमि पर मल मूत्र त्यागना से पुखपडिलेहियंसि थंडिलं सि-उवचारपासवणं परिदुवित्तए। कल्पता है । पुनः यथाविधि अपने स्थान पर आकर उसे वायोअहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए।
सर्य करना कल्पता है। एगराइयं भिक्खु-पडिम सम्म अणणपालेमाणस अणपारस्स एक रात्रिकी भिक्षु प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन न इमे तो ठागा अहियाए, असुभाए, अक्समाए, अणिसेस्साए, करने पर अनगार के लिए ये तीन स्थान अहितकर, अशुभ, अणणुगामिपत्ताए भवंति तं जहा
असामध्यंकर, अकल्याणकर एवं दुःखद भविष्य वाले होते है। १. उम्मा वा लभेज्जा,
यथा-(१) उन्माद की प्राप्ति, २. बोहकालियं वा रोगायक पाणिज्जा,
(२) चिरकालिक रोग एवं आतंक की प्राप्ति, ३. केलि-पणताओ वा धम्माओ मंसिष्जा ।
(३) कोवली प्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट होगा। एग-राहय भिक्खु-पतिम सम्म अगुपालेमाणस्स अणगारस्स एक रात्रिकी भिवा-प्रतिमा का सम्यक् प्रकार से पालन इमे ती ठाणा हियाए, सुहाए, एमाए, निस्सेसाए, अणुगा- करने वाले अनगार के लिए ये तीन स्थान हितकर, शुभ, सामथ्र्यमियत्ताए भवंति, तं जहा---
कर, कल्याणकर एवं सुखद भविष्य वाले होते हैं। १. मोहिनाणे वा से समुपज्जेज्जा.
यथा-(१) अवधिज्ञान की उत्पत्ति, २. मण-पज्जवनाणे वा से समुपज्जा ,
(२) मनःपर्यवज्ञान की उत्पत्ति, ३. केवल नाग वा से असमुप्पन्नपुटवे समुपज्जेज्जा ।
(३) अनुत्पन्न केवलज्ञान की उत्पत्ति । एवं खलु एगराइयं भिक्खु-पडिम, अहासुतं, अहाकप्पं, इस प्रकार यह एक रात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा यथासूत्र. यथाअहामार्ग, अहातचं, सम्म काएणं फासित्ता, पालिसा, कल्प, यथामागं और यथातथ्य रूप से गम्या प्रकार काया से