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चरणानुयोग -२
मलावरोध का निषेध
सूत्र ५६२-५६६
केवली बूपा--''आयाणमेयं ।"
केवली भगवान ने कहा है-'गह कर्मबन्ध का कारण है।' से सत्य निदायमाणे वा, पयलायमाणे वा हत्येहि भूमि क्योंकि वहाँ पर नींद लेता हुआ या ऊँचता हुआ वह अपने परामुसेजा।
हाथ आदि से सचित्त पृथ्वी का स्पर्श करेगा, जिससे पृथ्वीकाय
के जीवों की हिंसा होगी। अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए ।
___ अतः उसे सावधानी पूर्वक वहाँ स्थिर रहना या कायोत्सर्ग
-दसा. द. ७, सु. २० करना कल्पता है।। मलावरोहण णिसेहो
मलावरोध का निषेध५६३, उच्चार पासवणेणं उबाहिज्जा, मो से कप्पति उगिहित्तए ५६३. मदि बहाँ उसे मल-मूत्र की बाधा हो जाए तो धारण वा णिगिण्हित्तए वा।
करना या रोकना नहीं कल्पता है। किन्तु पूर्व प्रतिलेखित भूमि कम्पत्ति से पुरुषपरिलहिए थडिले उकनार पासवणं बरिट्ठा- पर मल-मूत्र का त्याग करना कल्पता है और पुन: उसी स्थान वित्तए तमेव उषस्सयं आगम्म अहाविमेव ठाणे ठवित्तए। पर आकर सावधानी पूर्वक स्थिर रहना या कायोत्सर्ग करना
-दसा. द ७, सु. २० कल्पता है । ससरक्खेण कायेण भिक्खायरियागमण णिसेहो- सचित्त रजयुक्त शरीर से गोचरी जाने का निषेध-- ५६४. मासियं णं भिक्खपडिम पडिवनस्स अणगारस्स नो ५६४. एव मास की भिक्ष-प्रतिमाधारी अनगार वो सचित्त रज
कप्पति सस रक्खेणं काएणं गाहावइ-कुलं प्रसाए वा पाणाए युक्त वाया से गृहस्थों के घरों में आहार पानी के लिए जाना या निक्लमित्तए वा पविसित्तए वा।
और आना नहीं कल्पता है। अह पुग एवं जाणेज्जा-ससरक्खे सेयत्ताए वा, जल्लत्ताए यदि यह ज्ञात हो जाये कि शरीर पर लगा हुआ सचित्त वा, भल्लताए वा, पंफतार का बरगले, प्यं राक-पति रज--पसीना, सूजा पसीना, मल या पंक के रूप में परिणत हो गाहावड-फुलं मत्ताए वा परणाए वा निक्वमित्तए वा पवि- गया हो तो उसे गृहस्थों के घरों में आहार पानी के लिए जानासित्तए वा।
- दसा. द. ७, सु. २१ आना कल्पता है। हस्थाइ पधोवण णिसेहो
हस्तादि धोने का निषेध५६५. मासियं ण मिक्खु-पउिमं यडिवनस्स अणगारस्स नो कप्पति ५६५. एक मास की भिक्षु-प्रतिमाधारी अनगार को अचित्त
सोओरग-वियांण बा, उसिगोवग-वियडेण वा, हत्याणि या, गोतल या उष्ण जल से हाथ, पैर, दांत, नेत्र मा मुख एक बार पायाणि वा, वंताणि वा, अकछोणि पा, मुहं वा, उच्छो- धोना अथवा बार-बार धोना नहीं कल्पता है। लित्तए पा, पधोइत्तए वा। ननथ सेवालेवेण वा भत्तामासेण वा।
किन्तु किसी प्रकार के लेप युक्त अवयव को और आहार से
-दसा. द. ७, सू. २२ लिप्त हाय आदि को धोकर शुद्ध कर सकता है। खुद्र आसाइ ओवयमाणे भय णिसेहो
दुष्ट अश्वादि का उपद्रव होने पर भयभीत होने का
निषेध-- ५६६. मासिय पंभिक्षु-पडिम पडिवघ्नस्स अणमारस्स नो कम्पति ५६६. एक मास की निक्षु-प्रतिमाधारी अनगार के सामने अश्त्र,
आसस्स वा, हत्यिस वा, गोणस्स वा, महिसस्स दा, हस्ती, वृषभ, महिष, सिंह, व्याध, भजिया, चीता, रीछ, तेंदुआ, सीहरूस बा, वग्धस्स वा, विगस्स वा, वीवियस बा, अच्छस्स अष्टापद, शृंगाल, बिल्ला, लोमड़ा, खरगोश, चिल्लड़क, श्वान, वा, तरच्छरस वा, परासरस्स बा, सीयालरूस वा, विरालस्स जंगली शूकर आदि दुष्ट प्राणी आ जाये तो उनसे भयभीत होकर वा, कोलियरस बा, ससगस्स बा, चित्ताचिल्लयस्स वा, एक पैर भी पीछे हटना नहीं वल्पता है । सुणमस्स या, कोलसुणगस्स या, बुट्ठस्स माययमाणस्स पयमवि पच्चीस कित्तए। अदुगुस्स आवयमाणस्स कप्पा जुगमित्तं पच्चीसकित्तए। यदि कोई दुष्टता रहित पशु स्वाभाविक ही मार्ग में सामने
--दसा. द. ७, सु. २३ आ जाय तो उसे मार्ग देने के लिए युगमात्र अर्थात् कुछ अलग
हटना कल्पता है।