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चरणानुयोग - २
२. गोलिया
४. पतंगवोहिया,
५. संयुक्
६.
पडिमा विष्णस्स बसइ वसण कालो
८६. मासियं णं मिक्-पडिमं पडिवग्रस्त अणगारस्स जत्थ णं केद्र ५८३. एक मास की भिक्षु प्रतिमाघारी अनगार को जहाँ कोई जानता हो तो वहाँ उसे एक रात रहना कल्पता है।
जहाँ कोई नहीं जानता हो तो वहाँ उसे एक या दो रात रहना कल्पता है ।
किन्तु एक या दो रात से अधिक रहना नहीं कल्पता है । यदि एक या दो रात से अधिक रहता है तो वह इस कारण से दीक्षा छेद वा परिहार तप का पात्र होता है। प्रतिमाधारी की कल्पनीय भाषायें
जाणइ कम्पड़ से तत्थ एगराइयं वसिसए ।
जत्य केड न जाणव, कम्पइ से तत्थ एग-रायं वा, बुरायं
१. जायणी,
२. पुच्छी,
२.
नो सेवाओ वा दुरावा वा परं
।
जे तत्थ एग रायाओ वा दु-रायाओ वा परं वसति से संतरा ए वा परिहारे वा । - दसा. द. ७, सु. ७ पडिमा पडिवण्णस्स कप्पणिज्जाओ भासाओ - ५८४. मासि णं भिक्खु-पडिमं परिवन्नस्स अणगारस्स कप्पति चार भागाओ मासिए तं जहा
"
प्रतिमाधारी का वसतिवास काल
४. पुसा वागरणी पुट्ठस्स
।
पडिमा विरणस्स कप्पणीया उवरसवा
१.
२. अविवा
- दसा. द. ७, सु. ६
-
१ ठाणं. अ. ६, सु. ५१४
३
-दसा. द. ७, सु. ८
. अ. ३, उ. ४ सु. १६६
५८५ मामियं णं भिक्खू पष्टिमं पडियशस्स अणगारस्त कप्पड़ तओ ५८५. एक मास की भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार को तीन प्रकार
के उपायों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा
उस्सया पडिलेहितए तं जहा आराम-सिया
(३) बल के मूत्रोत्सर्ग के आकार से भिक्षाचर्या करना । (४) पतंगिये के गमन के आकार से भिक्षाचर्या करता । (५) शंखावर्त के आकार से भिक्षाचर्या करना । (९) जाते या पुनः आते भिक्षाचर्या करना । प्रतिमांधारी का वसतिवास काल-
१०२-२०१
५०४. एक मास की भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार को चार भाषाएँ बोलना कल्पता है । यथा
(१) याचती - आहारादि की याचना करने के लिए । (२) पृच्छती - भार्ग आदि पूछने के लिए ।
(२) अनुमान आशा लेने के लिए।
(४) पृष्ठ व्याकरणी – प्रश्न का उत्तर देने के लिए । प्रतिमाधारी के कल्पनीय उपाश्रय
३. अहे रुक्खमूल - गिर्हसि वा,
एवं तमो उपस्या वयवेत्त, उमाणि
- दसा. द. ७, सु. ९-११ परिमापणस कप्पणीया संधारणा
प्रतिमाधारी के कल्पनीय संस्तारक
५६६. भासयं णं भिक्खु-पडिमं पडिवलस्स अणगाररस कप्पति तओ ५८६. एक मास की भिक्षु प्रतिमाधारी बनगार को तीन प्रकार
के संस्तारकों का प्रतिलेखन करना करता है, यथा
संचारमा पहिलए तं जहा१. लिंबा
२. कटु सिलवा
२. असं वा संधार एवं तब संथारा
देत
(१) उद्यान में बने हुए गृह में,
(२) चारों ओर से चुने हुए गृह में,
(३) वृक्ष के नीचे या नहीं बने हुए गृह में,
इसी प्रकार तीन उपाश्रय की आज्ञा लेना और ठहरना कल्पता है ।
वामित्र प
- दसा. द. ७ सु. १२-१४ करना कल्पता है ।
२
४
(१) पत्थर की शिला,
(२) लकड़ी का पाठ,
(३) पहले से बिछा हुआ संस्तारक
इसी प्रकार तीन संस्तारक की आज्ञा लेना और ग्रहण
ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २३७
. अ. ३, उ, ४, सु. १९६