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बीस असमाधि स्थान
अनाचार
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असमाधि-स्थान-७
वीसं असमाहिठाणा३६६. श्रीसं असमाहिद्वाणा पष्णसा, तं जहा
१. दवदवच्चारौ यावि भवाइ, २. अप्पमज्जियचारी यावि भषह । ३. दुप्पमज्जियबारी यावि मवइ । ४. अतिरिक्त सेग्मासणिए याचि भवह। ५. रातिणिज-परिमासी यावि मवह । ६. रोवधाइए यावि भवद । ७. भूओषपाइए मावि मबइ । ८. जलणे यायि प्रबह । ६.कोहणे यावि मवह । १०. पिट्टिमंसिए मावि भव । ११. अभिक्खणं-अमित्खणं ओहासत्ता भवः । १२. णवाणं अहिगरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाइत्ता भवइ । १३. पोराणाणं अहिगरणाणं खामित्र-विउवियः
उदीरत्ता भव । १४. अकाले सजायकारए यादि भवई । १५. ससररत-पागि-पाए मावि भवद ।
बीस असमाधि स्थान३६८. बीस असमाधि स्थान इस प्रकार कहे हैं । जैसे
(१) अतिशीन पलना। (२) प्रमार्जन करे बिना (अन्धकार में) चलना। (३) उपेक्षा भाव से प्रमार्जन करना। (४) अतिरिक्त शय्या-आसन रखना। (५) रलाधिक के सामने परिभाषण करना। (६) स्थविरों का उपघात करना। (७) पृथ्वी आदि का पात करना। (८) क्रोध भाव में जलना ।। (९) क्रोध करना। (१०) पीठ पीछे निन्दा करना । (११) बार-बार निश्चयात्मक भाषा बोलना। (१२) नवीन अनुत्पन्न कलहों को उत्पन्न करना । (1:क्षमापना हार, सतत पुरले क्लेश को फिर
से उभारना। (१४) अकाल में स्वाध्याय करना । (१५) सचित्तरज से युक्त हाय पांब आदि का प्रमार्जन
न करना। (१६) अनावश्यक बोलना या वाक युद्ध करना (जोर-शोर
से बोलना) (१७) संघ में भेद उत्पन्न करने वाला वचन बोलना । (१८) कलह करना झगड़ा करना । (१९) सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते
रहना। (२०) एषणा समिति से असमित होना अर्थात (अनेषणीय
भक्त-पानादि ग्रहण करना ।)
१६. सहकरे यावि भवइ ।
१७. शंभकरे (मेवकरे) यावि मषद । १८. कलहकरे यावि मवइ । १६. परपमाण-मोई यावि भबइ ।
२०. एसगाए असमाहिए यावि भवा ।
--दसा. द.१, सु. ३-४
मोहनीय स्थान-८
तीस महा-मोहणिज्ज-ठाणाई.
तीस महामोहनीय स्थान३७०, "अज्जो !'' ति सम भगवं महावीरे यहवे निम्गंथा य ३७०. घमण भगवान महावीर ने सभी निग्रंथ-नियंन्थियों को निग्गंधीओ य आमतेत्ता एवं यासी
आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा--
१
सम. सम, २०, सु..