________________
५०२
अन्य गण से आये हुओं को गम में सम्मिलित करने के विधि-निषेध संघ-व्यवस्था
कम्प निरगंभाग वर निरगंथीण वा निग्र्गय अन्तगणाओ आगयं सुपाया समारं वा भिग्नावारं संलिप्पारं ara aiere आलोयावेता परिसमावेशा, निवेता, रहावेत्ताविरावेता, विसोहावेता, अकरणास वेत्तर, अहारिहं पापच्छिलं परिवज्जादेता उबद्वावेतए मा संजिव संलिए वा ततरियं वा दिवा अदि वा उद्दिसिलए वा धारेल या
नो कप्पड़ निषाण वा निभ्यंीण वा निग्गवं अन्तगणाओ आग बुधावारंजा-संकिनिद्वावार तस्स डागस्स बणामी माता जाव अहारिहं पायछि अपडिवज्जावेत्ता उबट्टावेत्तए वा, संभुजिलए वा संवत्तिए वा तस्स इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दितिए वर धारेतए वा ।
कम्पs निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा निष्गंध अन्नगगाओ आग खुयापारं वा जाब- संकि लिट्ठायारं सस्स ठाणस्स आलोयावेता जाव अहारिहं पायच्छितं पडिवावेत्ता उबवेलए वा संभुजिताए वा संवसितए या तस्स इत्तरियं दिसं या अणुविसं या उद्दितिए वा धारेलए वा । - वब. उ. ६, सु. १८-२१ जे निग्या वा निग्गंथोओ य संभोइया सियर, नो करपक निगांधीगं निग्गंथे अगापुच्छिता निशाय अन्तगणाओ मजुवावार-संकिलट्ठायारं तस्य ठाणवस अणाली माता अहार पायवेला पृच्छित वा, वातए था, उबट्टा वेसए वा संभुत्तिए वा संवत्तिए या तीसे इत्तरियं दिसं वां अविसं वा उद्दिसिए वा धारेत कर
जे निम्गंधा व निग्गंयोओ य संभोइया सिया कप्पह निगांधी निरगंधे आपुच्छिता निधि अन्नगणाओ आगयं छुपाया था किविद्वापारं तर टायरस आलोयावेसा जाव-जाब पाय पडावेता पुलिस बाबा उट्ठाए या संभूलिए वा संवति वा सोसेसर दिवा अविवाहित वा धारेलए वा ।
1
जे निषा व निम्गंधीओ य संभोइया सियर, कप्पड़ निम्गंया निग्र्गणीओ बापुच्छि
वा निर्णय
[२४३
खण्डित, शबल, भिन्न और संक्लिष्ट आचार वाली अन्य गण से आई हुई निर्बन्धी को रोक्ति दोष की आलोचना, प्रतिक्रमण निन्दा, हम एवं भद्धि कराने तथा भविष्य में पुनःस्थान सेवन न करने की प्रतिज्ञा के साथ दोषानुरूप प्रायश्वित स्वीकार करा लें तो निर्ग्रन्य-निर्ग्रन्थियों को उसे पुनः चारित्र में उपस्थापित करना, उसके साथ सम्भोगिक व्यवहार करना और साथ में रखना कल्पता है, तथा उसे अल्पकाल के लिए दिशा या अणुदिक्षा का निर्देश करना या धारण करना कल्पता है ।
खण्डित - यावत्-संक्लिष्ट बाचार वाले अन्य गण से आये हुए निर्मम्य को सेति दोष की आलोचना-पावत्दोषानुरूप प्रायश्चित्त स्वीकार न कराले तब तक निर्ग्रन्थ-निग्रॅन्थियों को उसे पुनः चारित्र में उपस्थापित करना, उसके साथ साम्भोगिक व्यवहार करना और साथ में रखना नहीं कल्पता है। तथा उसे अल्पकाल के लिए दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना या धारण करना नहीं कल्पता है 1
पण्डित - यावत्-संक्लिष्ट आचार वाले अन्य गण से आये हुए निर्ग्रन्थ को यावत्-- दोषानुरूप प्रायश्चित्त स्वीकार करा लें तो निर्ग्रन्थ निन्थियों को उसे पुनः चारित्र में उपस्थापित करना, उसके साथ साम्भोगिक व्यवहार करना और साथ में रखना कल्पता है, तथा उसे अल्पकाल के लिए दिया या अणुदिशा का निर्देश करना या धारण करना कल्पता है ।
जो निर्मन्य-निन्थियां सांभोगिक है और निर्ग्रन्थी के समीप यदि कोई अन्य गण से सति यावत् संक्लिष्ट आचार वाली निर्धन्विनी आए तो निध को पूछे बिना और उसके पूर्व सेवित दोष को बोनापात् दोषानुरूप प्रायवित्त स्वीकार कराये बिना उसकी सुख-शाता पूछना, उसे वाचना देना, चारित्र में पुनः उपस्थापित करना, उसके साथ बैठकर भोजन करना और साथ रखना नहीं कल्पता है। तथा उसे अल्पकाल के लिए दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना या धारण करना नहीं कल्पता है।
जो नियोगिक है और नित्य के समीप यदि कोई अन्य गण से खण्डित - पावत् - संक्लिष्ट आचार वाली निन्दिनी आए दो निर्धन्य को पूछकर वदा नित दोर की आलोचना यावत् दोषानुरूप प्रायश्नित स्वीकार करके उसे
-
खाता पूछना, वाचना देना चारिण में पुनः उपस्थापित करना, सुख-शाता उसके साथ बैठकर भोजन करना और साथ रखना कल्पता है । उसे अल्पकाल के लिए दिशा या अनुदिशा का निर्देश करता या धारण करना कल्पता है ।
जो निनिय सभोगिक है और नियम यदि कोई अन्य से सहित
आचार वानी