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२७० ] चरणानुयोग – २
१७. जारए
१८. अण्णायचरए ।
१२. भोगचरए
२०. लिए।
२१. ए २२. पुलाभिए,
२१. लालिए
२४. क्लाभिए,'
२५. अभिलामिए
२६. अण्णमिलाप, ४
२७.
ए
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भिक्षाचर्या के प्रकार
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(१७) देय पदार्थ से लिप्त हाथ, पात्र या चम्मच द्वारा दिये जाने वाले आहार को लेने का अभिग्रह करना 1
(१८) अशा स्थान (हो) से आहार लेने का अभिग्रह करना ।
(१६) मौन रखकर आहार लेने का का अभिग्रह करना । (२०) दिखता हुआ आहार देने का अभि करना । (२१) नहीं दिखता हुआ आहार लेने का अभि करता। (२२) "तुम्हें क्या चाहिए" इस प्रकार पूछकर देने से आहार लेने का अभिग्रह करना ।
(१३) बिना पूछे देने वाले से आहार लेने का अभि
करना ।
(२४) "मुझे शिक्षा दो" ऐसा कहने पर देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना ।
(२५) “भिक्षा दो" आदि कुछ भी कहे बिना ही स्वतः देने वाले से आहार लेने का अभिग्रह करना ।
(२६) नहीं लेने का अभिग्रह करना। (२७) दाता के समीप में पड़ा हुआ आहार लेने का अभि ग्रह करना ।
(२८) परिमित द्रव्यों के लेने का अभिग्रह करना ।
२०. परिमिय पाए
पिछले पृष्ठ का
यदि कहीं पश्चात कर्म दोष न लगने जैसा ज्ञात हो तो ही इस अभिग्रह वाले बाहार ले सकते हैं। सभी व्याख्याकारों ने यही स्पष्टीकरण किया है।
आपा . २ . १ . १ में भी पहली पहिना (प्रतिज्ञा है-"ष्ठ हाथ, या चम्मच से ही बहार लेना ।" भुने हुए चने, चावल, जौ, ज्वार, मक्की आदि खाद्य पदार्थ अलिप्त आहार है। ऐसे अलेप आहार लेने पर पश्चात कर्म दो जने की सम्भावना नहीं रहती है। भिक्षादाता यदि विवेक से लेग वाले पदार्थ दे तो सेवाले पदार्थ लेने में भी पश्चात कर्म दोष नहीं लगता ।
इस 'संसृष्टचरफ' अभिह में ऐसे ही विवेकपूर्वक आहार लिया जाता है।
१ सय के घर में जिसने साथ पदार्थ सामने दीख रहे हों उनमें से ही अपनी आवश्यकतानुसार आहार लेना "दिला भए" अभिग्रह है।
२ अदिलाभिए गृहस्थ के घर में जो खाद्य पदार्थ सामने न दीखें ऐसे पड़े हों उनमें से ही बहार लेना "बदिट्ठलाभिए” अभि है।
३ भिक्खलाभिए - दाता अपनी ओर से भिक्षा न दे ऐसी स्थिति में भ्रमण स्वयं गृहस्थ से कहे प्रासुक एषणीय शुद्ध आहार हो तो मुझे दो ऐसा कहने पर जो आहार दाता से मिले वही ले, यह “भिक्खलाभिए" अभिग्रह है ।
४ अभिलाभिए - भिक्षु के कुछ भी कहे बिना दाता स्वयं जो कुछ प्रसुक एवं एषणीय आहार दे वही लेना "अभिक्खलाभिए” भ है।
यद्यपि सभी श्रमण भिक्षावृत्ति से ही आहारादि लेते हैं फिर भी भिक्खलाभिए और अभिक्खलाभिए ये दोनों अभिग्रह हैं । अतः यहाँ इनकी यह विशेष व्याख्या की गई है ।
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अष्णगिलायए – जो खाद्य पदार्थ रुचिकर न हो ऐसे खाद्य पदार्थों को या अनेक दिन पहले बने हुए खाद्य पदार्थों को लेना " अण्ण गिलायए" अभिग्रह है ।