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चरणामृयोग-२
रस परित्याग का स्वरूप
सूत्र ५६३-५६५
५. पुठ्ठलाभिए।
(५) पृष्टलामिक–स्या लोगे? यह पूछे जाने पर ही
भिक्षा लेना। पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाबीरेणं समणागं निग्गंधाणं श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निग्रंन्यों के लिए पनि -जाव-अक्षणुलायाई प्रर्वति, जहा---
अभिग्रह स्थान की-यावत् -आज्ञा दी है. यथा१. आयंबिलिए,
(१) भाचासिक-आयंबिल करने वाला। २. णिखिइए,
(२) निविकृतिक-वी आदि विकृतियों का त्याग करने
बाला। ३. पुरिमहिए,
(३) पूर्वाधिक-दिन के पूर्वार्ध में आहार नहीं करने के
नियम वाला। ४. परिमियपिंडवाइए,
(४) परिमितपिष्टपातिक-परिमित द्रव्यों की भिक्षा लेने
वाला। ५. भिष्ण पिशवाइए।
(५) भिन्नपिण्डपातिक-खंड-खंड किये हुए पदार्थों की -ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ३६६ भिक्षा लेने वाला ।
रस-परित्याग-५
रस परित्याग का स्वरूप५६४. दूध, दही, घृत आदि स्निग्ध पान-भोजन और रसों के वर्जन को रसविवर्जन तप कहा जाता है।
रस-परिच्चाय सरूवं५६४. खीर-वहि-सप्पिमाई, पणीयं पाणमोयणं । परिवरजणं रसागंतु, मणिधं रसविवरजणं ॥
-उत्त. अ.३०, मा. २६ रस-परिच्चाय-पचारा५६५. ५०–से कि त रसपरिच्चाए ? उ.-रसपरिच्चाए अणेगविहे पणते, तनहा -
१. निधोइए, २. पणीय-रस-परिच्चाए,
३. आयंबिलिए,
रस-परित्याग के प्रकार५६५, प्र०-रस-परित्याय क्या है ? वह कितने प्रकार का है ?
30-रस-परित्याग अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा-- (१) मिविकृतिक ---विगय रहित आहार करना ।
(२) प्रणीत रसपरित्याग—अतिस्निग्ध और सरस आहार का त्याग करना।
(३) आयंबित-नमक आदि षट्स तथा विगय रहित एक द्रव्य को अचित्त पानी में भिगोकर दिन में एक ही बार पाना ।
(४) आयाम सिक्यमोजी-ओसामन आदि के पानी में रहे हुए अन्न कणों को खाना । अथवा अत्यल्प पदार्थ लेकर आयंबिल करना।
(५) अरसाहार-बिना मिर्च मसाले का आहार करना ।
(६) विरसाहार- बहुत पुराने अन्न से बना हुआ आहार करना ।
(७) अन्ताहार-भोजन के बाद बचा हुआ आहार करना।
४. आयामसित्यमोई,
५. अरसाहारे, ६. विरसाहारे,
७. अंताहारे,