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________________ २७२] चरणामृयोग-२ रस परित्याग का स्वरूप सूत्र ५६३-५६५ ५. पुठ्ठलाभिए। (५) पृष्टलामिक–स्या लोगे? यह पूछे जाने पर ही भिक्षा लेना। पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाबीरेणं समणागं निग्गंधाणं श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निग्रंन्यों के लिए पनि -जाव-अक्षणुलायाई प्रर्वति, जहा--- अभिग्रह स्थान की-यावत् -आज्ञा दी है. यथा१. आयंबिलिए, (१) भाचासिक-आयंबिल करने वाला। २. णिखिइए, (२) निविकृतिक-वी आदि विकृतियों का त्याग करने बाला। ३. पुरिमहिए, (३) पूर्वाधिक-दिन के पूर्वार्ध में आहार नहीं करने के नियम वाला। ४. परिमियपिंडवाइए, (४) परिमितपिष्टपातिक-परिमित द्रव्यों की भिक्षा लेने वाला। ५. भिष्ण पिशवाइए। (५) भिन्नपिण्डपातिक-खंड-खंड किये हुए पदार्थों की -ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ३६६ भिक्षा लेने वाला । रस-परित्याग-५ रस परित्याग का स्वरूप५६४. दूध, दही, घृत आदि स्निग्ध पान-भोजन और रसों के वर्जन को रसविवर्जन तप कहा जाता है। रस-परिच्चाय सरूवं५६४. खीर-वहि-सप्पिमाई, पणीयं पाणमोयणं । परिवरजणं रसागंतु, मणिधं रसविवरजणं ॥ -उत्त. अ.३०, मा. २६ रस-परिच्चाय-पचारा५६५. ५०–से कि त रसपरिच्चाए ? उ.-रसपरिच्चाए अणेगविहे पणते, तनहा - १. निधोइए, २. पणीय-रस-परिच्चाए, ३. आयंबिलिए, रस-परित्याग के प्रकार५६५, प्र०-रस-परित्याय क्या है ? वह कितने प्रकार का है ? 30-रस-परित्याग अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा-- (१) मिविकृतिक ---विगय रहित आहार करना । (२) प्रणीत रसपरित्याग—अतिस्निग्ध और सरस आहार का त्याग करना। (३) आयंबित-नमक आदि षट्स तथा विगय रहित एक द्रव्य को अचित्त पानी में भिगोकर दिन में एक ही बार पाना । (४) आयाम सिक्यमोजी-ओसामन आदि के पानी में रहे हुए अन्न कणों को खाना । अथवा अत्यल्प पदार्थ लेकर आयंबिल करना। (५) अरसाहार-बिना मिर्च मसाले का आहार करना । (६) विरसाहार- बहुत पुराने अन्न से बना हुआ आहार करना । (७) अन्ताहार-भोजन के बाद बचा हुआ आहार करना। ४. आयामसित्यमोई, ५. अरसाहारे, ६. विरसाहारे, ७. अंताहारे,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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