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________________ सूत्र ५६५-१६७ काय-क्लेश का स्वरूप तपाचार (२७३ ८. पंताहारे, (6) प्रान्ताहार-मलिचा आदि तुच्छ धान्यों से बना हुआ आहार करना। ६. सूहाहारे, (६) स्याहार-रूखा-सूखा आहार करना । १०. से तं रसपरिच्चाए। ये रस परित्याग है। -वि. स.२५, उ.७.सु. २०६ पंच ठाणाई समग भगवया महावीरेणं तमणाणं निग्गंधाणं श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निम्रज्यों के लिए पांच -जाव-अम्मणुमायाई भवति, तं जहा-- अभिग्रह स्थान की-यावत्-आज्ञा दी है, यथा१. अरसजीवी, (१) अरमजीवी-जीवन पर्यन्त (या लम्बे समय तक) रस रहित आहार लेना। २. विरसत्रीयो, (२) बिरसजीवी--जीवन पर्यन्त (या लम्बे समय तक) विरस आहार लेना। ३. सजीवी, (३) बस्यजीवी-जीवन पर्यन्त (या लम्बे समय तक) बचा हुना आहार लेना। ४. पंतजीयो, (४) प्रान्तजीवी-जीवन पर्यन्त (या लम्बे समय तक) तुम्छ थाहार लेना। ५. लहजीवी, (५) सक्षजीवी-जीवन पर्यन्त (या लम्बे समय तक) रूखे-ठाणं. म.५, उ.१,सु.३६६ सूखे आहार लेना। काय-क्लेश-६ कायकिलेस सरूवं काय-क्लेश का स्वरूप५६६. ठाणा बोरासणाईया, जीवस्स हावहा । ५६६, आत्मा के लिए सुखकर वीरासन आदि कठिन आसनों का जग्गा जहा परिज्जति, कायकिले तमाहियं ॥ जो सेवन किया जाता है, उसे कायक्लेश तप कहा जाता है। --उत्त.. ३०, मा. २७ अणेगविहे कायकिलेसे काय-क्लेश के प्रकार-- ५६७, ५०-से कि तं फायकिलेसे? ५६७. प्र०-कायक्लेश क्या है-वह कितने प्रकार का है? ज०-कायकिलेसे अगविहे पण्णते, तं जहा ३०-काय-क्लेश अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे१. वाटिदए, (१) स्थानस्थितिक-एक आसन से स्थिर रहना। २. उपकुड्यासपिए, (२) उस्कुटुकासनिक-पृष्ठों को भूमि पर न टिकाते हुए केवल पांवों के बल पर बैठकर मस्तक पर अंजली करना। ३. पडिमाई, (३) प्रतिमास्थायी-एक रात्रि आदि का समय निश्चित कर कायोत्सर्ग करना। ४. बोरासहिए, (४) वीरासनिक-कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के नीचे से कसी निकालने पर जो स्थिति होती है उस आसन से स्थिर रहना । १ याणं. अ.५.उ.१. सु. ३९६ में अरसाहारे आदि पांच प्रकार हैं। २ उव. सु. ३०
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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