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________________ २६४] वरणानुयोग - २ निग्रंथियों के लिए मातापना का विधि-निषेध सूत्र ५६७-५६८ ५. नेसज्जिए, (५) नैवधिक -पुटु टिकाकर पालथी लगाकर बैठना । ६. आयावए, (६) आतापक--धूप आदि की आतापना लेना । ७. अवाजडए, (6) अप्रावृतक--देह को कपड़े आदि से नहीं ढकना । ८. अफरपए, (८) अकण्डूयक-खुजली चलने पर भी देह को नहीं खुजलाना। ६. अणि हए. (e) अनिष्ठोवक-धूक कफ आदि आने पर भी नहीं थूकना । १०. सम्वगाय-परिकम्म-विभूसा य विषमुरके, (१०) सर्व-मात्र परिकर्म एवं विभूषा विप्रमुक्त-देह के सभी संस्कार तथा विभूषा आदि करने से मुक्त रहना । से तं कायकिलेस -वि.स.१५, उ.५, पद काय-क्लेश का विस्तार है। पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाबीरेणं समणामं निम्गंथाणं श्रमण भगवन्त महावीर ने आपण निर्यन्थों के लिए पाप -जाव-अम्भणुमाया भवंतितं जहा-. स्थान सदा आचरण योग्य कहे हैं-यावत्-स्वीकृत किये हैं। यथा१. वंडायतिए, (१) दण्डायतिक-टने के समान सीधे लम्बे पर करके सोना। २. लगंडसाई, (२) लगण्डशायी-शिर और एड़ी को जमीन पर टिकाकर शेष शरीर को ऊपर उठाकर सोना। ३. आतावए, (३) आतापक-सरदी तथा गर्मों सहना । ४. अपाउडए, (४) अप्रावृतक बस्टा न रखना। ५. अकंड्यए, -ठाणं..५, उ. १,सु. ३६६ (५) अकण्डयक-लाज न बुजलाना। पंच णिसिजाओ पण्णताओ, त जहा पाँच बैठने के प्रकार कहे हैं, यथा१. उक्कुडया (१) उत्कटका-नितम्ब टिकाये बिना पैरों को टिकाकर बैठना। २. गोबोहिया, (२) गोदोहिका-गाय दुहने की तरह बैठना । ३. समपायपुत्ता, (३) समपादपुता-दोनों पैरों को और नितम्बों को भूमि पर टिकाकर बैठना। ४. पलियंका, (४) पर्यफा--पालथी लगाकर बैठना । ५. अद्धपलियंका। - ठाणं. अ५, उ.१, सु. ४०० (५) अर्घ पर्यका-आधी पालथी सगाकर बैठना अर्थात् एक पर से पालथी लगाकर और एक पर लम्बा करके बैठना । णिग्गयोणं णिसिद्धा विहियाय आयावणा निन्थियों के लिए आतापना का विधि-निषेध५६८. नो कम्पद निग्गयोए बहियागामस्त वा-जाव-रायहाणिस्त वा ५६८. निन्धी को गांव के बाहर-यावत् -राजधानी के बाहर उनु बाहामओ पगिजिमय-पगिनिमय सुराभिमुहीए एगपार- भजाओं को ऊपर की ओर करके, सूर्य की ओर मुंह करके तया याए ठिम्चा आयावणाए आयावेत्तए। एक पर से खड़े होकर आतापना लेना नहीं कल्पता है। १ (क) उव. सु. ३० (ख) पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाटीरेणं समणार्ण निग्गंथाण-जावन्मभणुनायाई भवंति तं जहा - (१) ठाणातिए, (२) उक्कुर आसणाए, (३) पडिभट्ठाई, (४) वीरामणिए, (५) णेसज्जिए । -ठाण.. ५स. १, सु. ३६६ (ग) सतविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, त जहा (१) ठाणातिए, (२) उपकुड्यामणिए, (३) परिमट्ठाई, (४) वीरासणिए, १५) सजिए, १६) दंडायलिए, (७) सगंडसाई। --ठा. अ.. सु. १५४
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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