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________________ सूत्र ५६८-५७० निन्थियों के लिए निविध कायक्लश तपाचार २७५ कप्पाद से उबस्सयस्स अंतोवगडाए संघाडिया परिवाए किन्तु उपाश्रय के अन्दर पर्दा लगाकर के भुजाएं नीची पसंवियवाहयाए समतलपाइयाए ठिच्चा आयावणाए माया- लटकाकर दोनों पैरों को समतल कर तथा खड़े होकर आतापना बेसए। -कप्प. उ. ५, सु. २२ लेना कल्पता है।। णिग्गयोणं णिसिद्ध कायकिलेसे निर्गन्थियों के लिए निषिद्ध कायक्लेश५६६. नो कम्पा निग्गंथोए ठाणाझ्याए होतए। ५६६. नियंन्थी सात्री को बड़े रहकर कायोत्सर्ग करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कप्पद निर्गपीए पडिमट्ठाइयाए होतए । निम्रन्थी साध्वी को एक रात्रि आदि का समय निश्चित करके कायोत्सर्ग करने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कमा निग्गथीए उपकुड्यासणियाए होत्तए । निर्गन्थी साध्वी को उस्कुटुकासन से स्थित रहने का अभि ग्रह करना नहीं करूपता है। नो कप्पा निग्गंधीए निसज्जियाए होत्तए । निम्रन्थी साध्वी को निषद्याओं से स्थित रखने का अभिग्रह करना नहीं कल्पसा है। नो कप्पह निग्गंभीए पौराणियाए होलए । निर्मन्धी साध्वी को बीरासन से रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कप्पड़ निगथीए बण्डासणियाए होत्तए । निन्थी साध्वी को दण्डासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कप्पइ निग्गंथीए लगण्डसाइयाए होसए। निर्ग्रन्यी साध्वी को लकुटासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कप्पह निगयोए ओमंथियाए होत्तए। निर्ग्रन्थी साध्वी को अधोमुखी सोकर स्थित रहने का अभि ग्रह करना नहीं कल्पता है । नो कम्पा निग्गंगोए उत्तासणियाए होशए। निग्रंथी साध्वी को उत्तानासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं करूपता है। नो कप्पइ निग्गंधीए अम्बज्जियाए होत्तए। निग्रंथी साध्वी को आम्र-कृब्जिकासन से स्थित रहने का अभिग्रह करना नहीं कल्पता है। नो कप्पद निग्गंधीए एगपासियाए होत्तए। निग्रंथी साध्वी को एक पाश्र्व से प्रायन का अभिग्रह करना -कप्प. उ. ५, सु, २३-३३ नहीं कल्पता है। नो कम्पा निग्गयीए अचेलियाए होत्तए । निर्ग्रन्थी साध्वी को वस्त्र रहित होना नहीं कल्पता है । नो कप्पइ निम्मेवीए अपाइयाए होत्तए । निर्ग्रन्थी साध्वी को पात्र रहित होना नहीं काल्पता है । नो कम्पह निग्गीए बोसट्टकाइयाए होसए । निम्रन्थी साध्वी को निश्चित समय के लिए शरीर को -~-कप्प. उ.५, सु. १९-२१ वोसिरा कर रहना नहीं कल्पता है। प्रतिसंलीनता-७ पडिसलोणयाए भेया-- ५७०. प.-से कि त पडिसलीणया? उ.-पडिसंतीणया चरविहा पणता, तं जहा - १. इंदियपरिसंसोणया, २. कसायपडिसलीणया, प्रतिसंलोनता के भेद५७०. प्र०-~-प्रतिसलीनता क्या है ----वह कितने प्रकार की है ? उ-प्रतिसंलीनता चार प्रकार की कही गई है, यथा(३) इन्दिय प्रतिसलीनता, (२) कषाय प्रतिसलीनता,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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