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वरणानुयोग - २
निग्रंथियों के लिए मातापना का विधि-निषेध
सूत्र ५६७-५६८
५. नेसज्जिए,
(५) नैवधिक -पुटु टिकाकर पालथी लगाकर बैठना । ६. आयावए,
(६) आतापक--धूप आदि की आतापना लेना । ७. अवाजडए,
(6) अप्रावृतक--देह को कपड़े आदि से नहीं ढकना । ८. अफरपए,
(८) अकण्डूयक-खुजली चलने पर भी देह को नहीं
खुजलाना। ६. अणि हए.
(e) अनिष्ठोवक-धूक कफ आदि आने पर भी नहीं थूकना । १०. सम्वगाय-परिकम्म-विभूसा य विषमुरके,
(१०) सर्व-मात्र परिकर्म एवं विभूषा विप्रमुक्त-देह के
सभी संस्कार तथा विभूषा आदि करने से मुक्त रहना । से तं कायकिलेस -वि.स.१५, उ.५,
पद काय-क्लेश का विस्तार है। पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाबीरेणं समणामं निम्गंथाणं श्रमण भगवन्त महावीर ने आपण निर्यन्थों के लिए पाप -जाव-अम्भणुमाया भवंतितं जहा-.
स्थान सदा आचरण योग्य कहे हैं-यावत्-स्वीकृत किये हैं।
यथा१. वंडायतिए,
(१) दण्डायतिक-टने के समान सीधे लम्बे पर करके
सोना। २. लगंडसाई,
(२) लगण्डशायी-शिर और एड़ी को जमीन पर टिकाकर
शेष शरीर को ऊपर उठाकर सोना। ३. आतावए,
(३) आतापक-सरदी तथा गर्मों सहना । ४. अपाउडए,
(४) अप्रावृतक बस्टा न रखना। ५. अकंड्यए,
-ठाणं..५, उ. १,सु. ३६६ (५) अकण्डयक-लाज न बुजलाना। पंच णिसिजाओ पण्णताओ, त जहा
पाँच बैठने के प्रकार कहे हैं, यथा१. उक्कुडया
(१) उत्कटका-नितम्ब टिकाये बिना पैरों को टिकाकर
बैठना। २. गोबोहिया,
(२) गोदोहिका-गाय दुहने की तरह बैठना । ३. समपायपुत्ता,
(३) समपादपुता-दोनों पैरों को और नितम्बों को भूमि
पर टिकाकर बैठना। ४. पलियंका,
(४) पर्यफा--पालथी लगाकर बैठना । ५. अद्धपलियंका। - ठाणं. अ५, उ.१, सु. ४०० (५) अर्घ पर्यका-आधी पालथी सगाकर बैठना अर्थात् एक
पर से पालथी लगाकर और एक पर लम्बा करके बैठना । णिग्गयोणं णिसिद्धा विहियाय आयावणा
निन्थियों के लिए आतापना का विधि-निषेध५६८. नो कम्पद निग्गयोए बहियागामस्त वा-जाव-रायहाणिस्त वा ५६८. निन्धी को गांव के बाहर-यावत् -राजधानी के बाहर
उनु बाहामओ पगिजिमय-पगिनिमय सुराभिमुहीए एगपार- भजाओं को ऊपर की ओर करके, सूर्य की ओर मुंह करके तया याए ठिम्चा आयावणाए आयावेत्तए।
एक पर से खड़े होकर आतापना लेना नहीं कल्पता है। १ (क) उव. सु. ३० (ख) पंच ठाणाई समणेणं भगवया महाटीरेणं समणार्ण निग्गंथाण-जावन्मभणुनायाई भवंति तं जहा - (१) ठाणातिए, (२) उक्कुर आसणाए, (३) पडिभट्ठाई, (४) वीरामणिए, (५) णेसज्जिए ।
-ठाण.. ५स. १, सु. ३६६ (ग) सतविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, त जहा
(१) ठाणातिए, (२) उपकुड्यामणिए, (३) परिमट्ठाई, (४) वीरासणिए, १५) सजिए, १६) दंडायलिए, (७) सगंडसाई।
--ठा. अ.. सु. १५४