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२४६ ] चरणानुयोग- २
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जवणीततरस्स ताइनो, भयमाणस्स विविसमासणं । सामाइयमाह तस्स नं, जो अप्पार्ण भए प्प बंसए ।
एकाकी बिहारी का गम में पुनरागमन
उदितत्तभोगो, धम्मगुणस्स होमतो संगराव, असमाही उ तहानवस्त्र वि ॥
- सूम. सु. १, अ. २, उ. २, गा. १२२-१२५
अपसस्यादिर चरण
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गायी ५०० इमे एरिया भवति से बहुको बहुमाने बहुमाए बहुलोमे, बहरते, बहुगडे, बहुसते बहुसंफप्पे, आसवसक्की, पलिओछये उट्टितबारं पवरमाणे मा मे केइ अवक्खु, अण्णाज-पथायोगं तं मुठे धम्मं नाभिजागति -आ. सु. १, न. ५, उ. १, सु. १५१
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एकल विहारिस गणे पुणरायमण ५०. भिनव गायक एपसविहारपनि उपजि साबिरेज्जा से इसमे गणंजय संपाविरतए ।
पुणो आलोएक्जा, पुणो पडिमकभेज्जा । पुगी परिहार उबट्टाएमा ।
गगावच्छेदए य गणाओ अववकम्म एगल्लविहारपडिगं ढव संपविता बिरेजा से वह शेवं पितमेवगर्ण उपहरिए
पुगो आलोएवा पुगोपा गोपपरिहारस्स उट्ठाएमा ।
आयरिय-उवज्झाए थ गणाओ अवककम्म एगल्लविहारपडिमं उपसंपविता विहरिए ।
पुणो आलोएज्जा, पुणो एडिक्कमेज्जा, पुणो परिहारस्साए
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---वच. उ. १, सु. २३-२५
एगाविस समाहि
५१०. एतमेव अधिपत्यएर एवं पमोक्यो मुति पास एसप्पमोक्सो अमुसे परे बी अकोहने सच्चरए तपस्सी । सूप. सु. १. अ. १०, १२
गा.
सूत्र ५०७०५१०
जो संयम सम्पन्न छह काय रक्षक भिक्षु विविक्त- एकान्त स्थान का सेवन करता है तथा जो भयभीत नहीं होता है उस साधु को तीर्थंकरों ने सामायिक परिधान कहा है।
गर्म जल पीने वाले तथा अग्निपत्र अचित्त आहार करने वाले धर्म में स्थित संयमवान् मुनि को राजा आदि से संसर्ग करना अच्छा नहीं है । क्योंकि उससे शास्त्रोक्त आचार- पालक मुनि की समाधि भी भंग हो सकती है। एकाकी भिक्षु की अप्रशस्त बिहार चर्या - ५००. इस संसार में कुछ साधक विषय कषाय के कारण अकेले विचरण करते हैं वे अत्यन्त क्रोध, अतीव मान, अत्यन्त माया, अति लोभ करने वाले अनि आसक्त नट के समान रूप बदलने राजे मधूर्त और बहुत संकल्प करने वाले होते हैं। वे हिमादि आम्रवों में आसक्त, कमों में लिप्त होते हैं, वे अपने को धर्म के लिए उद्यत बताते हुए भी "मुझे कोई न देख ले इस आशंका से छिप छिपकर अनाचार सेवन करते हैं अज्ञान और प्रमाद के दोष से सतत मूढ बने वे धर्म को नहीं जानते हैं । एकाकी बिहारी का गण में पुनरागमन
५०९. यदि कोई भिक्षु राम से निकलकर एकल बिहार चर्या धारण करके विचरण करे और बाद में वह पुनः उसी गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो
उस विचरण काल सम्बन्धी पूर्ण आलोचना प्रतिक्रमण करे । तथा बाचार्य उसकी बालोचना सुनकर जो छेद या तप रूप प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकार करे ।
यदि कोई गणावच्छेदक गण से निकलकर एकल बिहार चर्या को धारण करके विचरण करे और बाद में वह पुन: उसी में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो
उस विचरण काल सम्बन्धी पूर्ण मालोचना प्रतिक्रमण करे । तथा आचार्य उसकी आलोचना सुनकर जो छेद या त रूप प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकार करे ।
यदि कोई आचार्य या उपाध्याय गण से निकलकर एकल बिहार प्रतिशा को धारण करके विचरण करे और बाद में वे पुनः उसी मग में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो
उस विचरण काल सम्बन्धी पूर्ण आलोचना प्रतिक्रमण करे । तथा आचार्य उसकी आलोचना सुनकर जो छेद या तप रूप प्रायश्चित दे उसे स्वीकार करे । एकाकी बिहारी को समाधि
१०. साधु एक की इच्छा करे। ऐसा करने से भी मोक्ष होता है इसे मिथ्या नहीं समझना चाहिये। यह एकत्व से मुक्ति मिथ्या नहीं, सत्य और पेष्ट भी है जो संयम में साधु रत एवं तपस्वी है । ( वहीं समाधि भाव को प्राप्त करता है ।)