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चरणानुयोग-२
कदापही के साथ सेन-देन करने के प्रायश्चित्त सूत्र
सूत्र ५३६-५३७
बगह ययकताणं आयाण-पयाण करण पायच्छिस सुत्ताई- कदाग्रही के साथ लेन-देन करने के प्रायश्चित सूत्र५३६. जे भिषलू वगह बताणं असणं वा-जाव-साइमं वा देड, ५३६. जो भिक्ष बदामही भिक्षुओं को अशन-यावत्-स्वाद्य वेंतं वा साइजद।
देता है, दि वाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बुग्गह अक्कंतरणं असणं ना-जात-साइमं ा को शिम् स्वामी शिशुओं का अशन यावत्-स्वाद्य पडिच्छा, पडिच्छंतं वा साइजई ।
लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। अ भिक्खू बुग्गह वक्कतागं वस्थं वा-जाव-पाथपुंछणं वा देइ, जो भिक्षु कदाग्रह से अलग विचरने वाले (निन्दव आदि) देवा साइजह ।
को वस्त्र-यावत्-- पादपोंछन देता है, दिलवाता है या देने
वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बुग्गह वक्ताणं वाचं वा-जाव-पायपुंछगं वा जो भिक्षु कदाग्रही से वस्त्र-यावत्- पादपोंछन लेता है, परिच्छाइ परिच्छतं वा साइज्जइ ।
लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्यू बुममह वक्ताणं वसहिं देह, देंतं वा साइज्जइ। जो भिक्षु कदाग्रह से अलग विधरने वाले (निन्हव आदि) को
उपाश्रय देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्य युगगह यक्कताणं वहि पडिकछाड, पडिच्छत वा जो भिक्षु कदाग्रही से उपाश्रय लेता है, लिवाता है या लेने साइजड़।
वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्षू वगह वक्ताणं यसहि अणुपविसइ, अणुपविसंतं जो भिक्षु कदाग्रही के उपाश्रय में प्रवेश करता है, करवाला या साइज्जइ।
है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बुग्गह बक्ताणं समायं देह, देते वा साइज्जइ। जो भिक्षु कदाग्रही को वाचना देता है, दिलवाता है या
देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू बुग्गह बक्कसाणं सजना परिच्छ, पडिकछत वा जो भिक्षु कदाग्रही से वाचना लेता है, लिवाता है या लेने साइज्जइ ।
__ वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जा चाजम्मासियं परिहारट्ठाण उग्घाइयं। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. र. १६, सु. १७-२५ आता है। आगमाणुसारी पायच्छित दाण गहण बिहाणो
आगम के अनुसार प्रायश्चित्त देने व ग्रहण करने का विधान५३७. भिक्खू य अहिगरण कट्ट, तं अहिगरणं अविओसवेत्ता, ५३७. यदि कोई भिक्षु फलह करके उसे उपशान्त न करे तो---
मो से कप्पड़ गाहाबहकुल भत्ताए वा पाणाए वा निक्ख- उसे गृहस्थों के घरों में भक्त-पान वा लिए निष्क्रमण-प्रवेश मिसए वा पविसित्तए श,
वरना नहीं कल्पता है। नो से कप्पड़ बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्य- उसे उपाश्रय से बाहर स्वाध्याय भूमि में या उच्चार-प्रस्रवण मित्तए वा पविसित्तए या,
भूमि में जाना आना नहीं काल्पता है। नो से कपड़ गाभाणुगामं वा दुइजित्तए,
उसे ग्रामानुग्राम बिहार करना नहीं कल्पता है। उसे एक गण गणामो वा गणं संकमित्तए, वासावासं यश वत्थए। से गण न्तर में संक्रमण करना और वर्षावास रहना नहीं कल्पता है । जस्येव अपणो आयरिय-उवज्झायं पासेज्जा बहुस्सुयं, बन्मा- किन्तु जहाँ अपने बहुश्रुत और बहुआगमज्ञ आचार्य और गम, कप्पड़ से तस्संतिए आलोएसए. पडिक्कमित्तए, निन्दि- उपाध्याय हों उनके समीप आलोचना करे, प्रतिक्रमण करे, तए, गरिहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहितए, अकरणाए, निन्दा करे, गर्दा करे, पाप से निवृत्त होवे, पाप फल से शुद्ध असद्वितए, अहारिहं तवोकामं पायच्छित पडिव जित्तए। होवे, पुनः पाप कर्म न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होवे और यथा
योग्य तप रूप प्रायश्चित्त स्वीकार करे। से ब सुएणं पट्टविए आइयवे सिया, से य सुएण नो पठ्ठ- वह प्रायश्चित्त यदि श्रुतानुसार दिया जावे तो ग्रहण करना विए नो आइयब्ये सिया।
चाहिए । श्रुतानुसार न दिया जावे तो ग्रहण नहीं करना वाहिए। से य सुएणं पढविज्जमाणे नो आइयह से निज्जूहियध्वे यदि श्रुतानुसार प्रायश्चित्त दिये जाने पर भी जो स्वीकार सिया।
-कप्प. उ. ४, सु. ३० न करे तो उसे गण से निकाल देना चाहिए।