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सूत्र ५१७-५२१
पार्श्वस्थ बिहारी का गण में पुनरागमन
संघ-व्यवस्था
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पासत्थ विहारिस्त गणे पुणरागमण -
पार्श्वस्थ विहारी का गण में पुनरागमन५१७ भिक्खू य गणाओ अवश्यम्म पासत्यविहारपटिम उपसंप- ५१७. यदि कोई भिक्ष गण से निकलकर पार्श्वस्थ चर्या को
जित्ताणं विहरेजजा से य इच्छेज्जा दोच्च पि तमेव गणं अंगीकार करके विचरे और बाद में वह पाश्वस्थ बिहार छोड़कर उपसंपज्जित्ताणं विहरिसए अस्थि य इस्थ सेसे । पुणो असो- उसी गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो- यदि उसका एज्जा, पुणो परिक्कमेम्जा, पुणो छयपरिहारस्स उबटुाएग्जा। पारित्र कुछ शेष हो तो पूर्व अवस्था की पूर्ण आलोचना एवं
-वव. उ. १, सु. २६ प्रतिक्रमण करे । तथा भाचार्थ उसकी आलोचना सुनकर दीक्षा
छेव तप रूप प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकार करे । अहाछंद विहारिस्स गणे पुणरागमण
ययाच्छन्दविहारी का गण में पुनरागमन५१८. भिक्खू य गणाओ अवाम्म महाछंद विहार परिमं उव- ५१८. यदि कोई भिक्षु गण से निकलकर ययाछन्द चर्या को
संपज्जित्ताण बिहरेज्जा, से य इच्छज्जा बोच्च पितमेव गणं अंगीकार करते विचरे और बाद में वह मथाछन्द विहार छोड़कर उपसंपजिजसा विहरिलए, अस्थि य इत्य सेसे पुणो आलो- उसी गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो-यदि उसका एक्जा, पुणो पहिस्कायेज्जा, पुणो छेयपरिहारम्स उबढाएज्जा। चारित्र कुछ शेष हो तो वह उस पूर्व अवस्था की पूर्ण आलोचना
-वव. उ. १, सु. २७ एवं प्रतिक्रमण करे। तथा आचार्य उसकी आलोचना सुनकर
दीक्षा छेद या तप रूप जो प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकार करे। कुसील बिहारिस्स गणे पुणरागमण
कुशील विहारी का गण में पुनरागमन५१९. भिक्खू य रणाओ अवकम्म कुसीलविहारपडिम उपसंपज्जि- ५१६. यदि कोई भिक्ष गण से निकलकर कुशील चर्या को अंगी
साणं विहरेज्जा से य इच्छेज्जा दोच्च पि तमेव गणं उप- कार करके विचरे और बाद में वह कुशील विहार छोड़कर उसी संपम्जित्तागं विहरित्तए अत्यि व इत्य सेसे, पुणो आलो- गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो-यदि उसका पारित्र एज्जा, पुणो परिक्कमेज्जा, पुणो छयपरिहारस्स उबढाएजा। कुछ शेष हो तो वह उस पूर्व अवस्था की पूर्ण आलोचना एवं
-बव. उ.१, मु.२८ प्रतिक्रमण करे। तथा आचार्य उसकी आलोचना सुनकर दीक्षा
छेद या तप का जो प्रायश्चित्त दे उसे स्वीकार करे। ओसन्न विहारिस्स गणे पुणरागमण
___ अवसन्नचिहारी का गण में पुनरागमन५२०. भिक्खू य गणाओ अबक्कम्म ओसन विहारपडिमं उपसंपज्जि- ५२०, यदि कोई भिक्ष गण से निकलकर अबसन्न चर्या को
साणं विहरेज्जा, से य इस्छज्जा दोच्चं पि तमेव गगं उब- अंगीकार करके विघरे और बाद में वह अवसान विहार छोड़कर संपज्जित्ताण चिहरिलए, अस्थि व इत्य सेसे, पुणो आलो- उसी गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो-यदि उसका एज्जा, पुणो परिमकमेजा, पुषो छेय परिहारस्स उबढाएज्जा। चारित्र कुछ शेष हो तो वह उस पूर्व अवस्था की पूर्ण आलोचना
---यव. उ. १, सु. २९ एवं प्रतिक्रमण करे तथा आचार्य उसकी बालोचना सुनकर जो
दीक्षा छेद या तप रूप जो प्रायश्चित्त दें उसे स्वीकार करे। संसत्त विहारिस्स गणे पुणरागमण
संसत्तविहारी का गण में पुनरागमन - ५२१. मिक्खू य गणाओ अवस्कम्म संसत्तविहारपडिमं उबसंपज्जि- ५२१. यदि कोई भिक्ष गण से निकलकर संसक्त चर्या को अंगीसाणं विहरेज्जा, से य इच्छज्जा दोच्चं पि समेव गणं उब- कार करके विचरे और बाद में वह संसक्त विहार को छोड़कर
- (शेष टिप्पण पिष्ठले पृष्ट का) ६. काथिक-जो स्वाध्याय आदि आवश्यक कार्यों की उपेक्षा करके देश कथा आदि विकथाओं में समय लगाता है वह "कायिक" कहा जाता है। ७. प्राश्निक प्रेक्षणिक-जो नाटक, नुत्य आदि दृश्य देखने की अभिलाषा रखता है व प्रवृत्ति करता है वह "प्रेक्षणिक" कहा जाता है । अथवा जो लौकिक प्रश्नों का समस्याओं का समाधान करता रहता है वह "प्राश्निक" कहा जाता है। . ८. मामक-जो थिष्य, क्षेत्र, उपाधि आदि में "ममत्व" रखता है वह "मामक" कहा जाता है। ६. साम्प्रसारिक-जो लेन-देन, गमनागमन आदि लौकिक कायों के मुहूतों का कथन करता है या उनमें विशेष पचि रखता है वह “साम्प्रसारिक" कहा जाता है। १०. यथाछंद--जो भागम विपरीत मनमाना प्ररूपण या आचरण करता है वह "यथाछंद" कहा जाता है।