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वरणामुयोग-२
विविध प्रकार के गण की वैयावृत्य करने वाले
सूत्र ४२५
अत्तारि पुरिसजाया पणता, तं जहा
(पुनः) चार प्रकार के (साधु) पुरुष कहे गये हैं । जैसे१. गणटुकरे नाम एगे, नो माणकरे,
(१) कोई गण का काम करता है, परन्तु मान नहीं
करता है। २. माणको नाम एगे, नो गणनुकरे,
(२) कोई मान करता है, परन्तु गण का काम नहीं
करता है। ३. एगे गगटुकरे वि, मागकरे वि,
(३) कोई गण का काम भी करता है मौर मान भी
करता है। ४. एगेनो गणटुकरे, नो मागकरे।
(४) कोई न गण का काम करता है और न मान ही
करता है। चत्तारि पुरिसजाया पणता, तं जहा
(पुनः) चार प्रकार के (साधु) पुरुष कहे गये हैं। जैसे१. गणसंगहकरे नाम एगे, नो माणकरे,
(१) कोई गण के लिए संग्रह करता है, परन्तु मान नहीं
करता है। २. माणकरे नाम एगे, नो गगसंगहकरे,
(२) कोई मान करता है, परन्तु गण के लिए संग्रह नहीं
करता है। 1. ए गणसंगहकरे वि, माणकरे वि,
(३) कोई गण के लिए संग्रह भी करता है और मान भी
करता है। ४. एगे नो गणसंगहकरे, नो माणकरे ।
(४) कोई न गण के लिए संग्रह करता है और न मान ही
करता है। पत्तारि पुरिसमाया पण्णता, तं जहा
(पुनः) चार प्रकार के (साधु) पुरुष कहे गये हैं । जैसे१. गणसोहकरे नाम एगे, नो मागकरे,
(१) कोई मण की शोभा करता है, किन्तु मान नहीं
करता है। २. माणकरे नाम एगे, नो गगसोहकरे,
(२) कोई मान करता है, किन्तु गण की शोभा नहीं
करता है। ३. एगे गणसोहकरे वि, माणकरे कि,
(३) कोई गण की शोभा भी करता है और मान भी
करता है। ४. एगे नो गणतोहकरे, नो माणकरे ।
(४) कोई न गण की शोभा करता है और न मान ही
करता है। बत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा
(पुनः) चार प्रकार के (साधु) पुरुष कहे गये हैं। जैसे१. गणसोहिकरे नाम एगे, नो माणकरे,
(१) कोई गण की शुद्धि करता है, परन्तु मान नहीं
करता है: २. माणकरे नाम एगे, नो गणसोहिकरे,
(२) कोई मान करता है, परन्तु गण की शुद्धि नहीं
करता है। ३. एगे गणसोहिकरे वि, माणकरे वि.
(३) कोई गण की शुशि भी करता है और मान भी
करता है। ४. एगे नो गगसोहिकरे, नो माणकरे ।
(४) कोई न गण फी शुद्धि करता है और न मान ही –यव. उ. १०, सु. ६-१० करता है।