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पत्र ४.३२-४३४
वचन सम्पबर
संघ-व्यवत्वा
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वयण संपया४३२.५० सेकं तं बयण-संपया ? उ०-वयग-संपया चविहा पणता, तं जहा
१. आवेय-बयणे यावि मत्रह, २. महर-ययगे यावि भनाइ ३. अणिस्लिय-वपणे यावि मवह, ४. अविश पावि भवद।
से तं वयण-संपया। -दना. द. ४, सु. ६ बायणा संपया ४३३. १०-से कि तं वायणा-संपया ? जा-बायगा-पमा मसिहा पण मा.तं जहा
१. विजयं उद्दिसा, २. विजयं वाएक ३. परिनिवाधियं वाएड, ४, अत्यनिज्जावए यावि भवा,
वचन-सम्पदा४३२. ६०--भगवन् ! बचन सम्पदा कितने प्रकार की है?
उ०-वचन सम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे(१) सर्वजन-आदरणीय वचन वाला होना । (२) मधुर वचन वाला होना । (३) राग-दोष रहित वचन वाला होना । (४) मन्देह-रहित वचन वाला होना ।
यह वचन-सम्पदा है। याचना सम्पदा४६३. प्र. भगवन् ! वाचना-सम्पदा कितने प्रकार की है।
30-वाचना सम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे---- (१) शिष्य की योग्यता का निश्चय करने वाला होना । (२) विचार पूर्वक अध्यापन कराने वाला होना । (३) योग्यतानुसार उपयुक्त पढ़ाने वाला होना। (४) अर्थ संगति पूर्वक नय-प्रमाण से अध्यापन कराने वाला
होना।
से तं वायणा संपया। -दसा. द. ४, सु.७ मइ संपया४३४. ५०-से कितं मइ-संपया? 7-मह-संपया चउभिषहा पणता, तं जहा
१. जग्गह-मइ-संपया, २. ईहा-मह-संपया,
३. अवाय-मा-संपया,
४. धारणा-मह-संपया। प०-से कि तं उम्गह-मह-संपया ? उ.--.उम्मह-मह-संपया छविहा पाणसा, तं जहा
यह वाचना सम्पदा है। मति-सम्पदा४३४. प्र०-भगवन् ! मति-सम्पदा कितने प्रकार की है ?
उ०-मतिसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे{१) अवग्रह-सामान्य रूप से अर्थ को जानना।
(२) ईहा मतिसम्पदा-सामान्य रूप से जाने हुए अर्थ को विशेष रूप से जानने की इच्छा होना।
(३) ईहित वस्तु का विशेष रूप से निश्चय करना । (४) शांत वस्तु का कालान्तर में स्मरण रखना। प्र०-भगवन् ! अबमह-मतिसम्पदा कितने प्रकार की है?
उ०-अवग्रह-मत्तिसम्पदा छह प्रकार की कही गई है। जैसे
(१) प्रश्न आदि को शीघ्र ग्रहण करना । (२) बहुत प्रपनों को ग्रहण करना । (३) अनेक प्रकार के प्रश्नों को ग्रहण करना । (४) निश्चित रूप से ग्रहण करना।
(५) किसी के आधीन न. रहकर अपनी प्रतिभा से ग्रहण करना ।
(६) सन्देह रहित होकर ग्रहण करना। इसी प्रकार ईहा- मतिसम्पदा भी छह प्रकार की होती है। इसी प्रकार अवाय-मतिसम्परा भी छह प्रकार की होती है। प्र.-भगवन् ! धारण'-मतिसम्पदा कितने प्रकार की है?
१. सिप्पं उगिहेड, २. बहुं उगिरहेछ, ३ बहुविहं उगिम्हेइ, ४. धुवं उगिण्हेइ, ५. अणिस्सिय उगिम्हे,
६, असंदिवं उगिरहेह। एवं ईहा-मई वि।
एवं अवाय-मई वि। १०--से कि संघारणा-महसंपया।