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परमाणुयोग--२
प्रयोग-सम्पदा
सूत्र ४३४-४३७
उ~धारणा-महसंपया छविहा पण्णता, तं जहा
१. गहुं घरेह, २. विहं घरेड, ३. पोराणं धरेड, ४. दुसरं घर, ५. अणिस्सिय घरेड ६. असंविदं धरे।
से सं मह-संपया। -दसा.द. ४ सु.-१२ पओग संपया४३५. ५० --से कितं पओग-संपया ? 30-पओग-संपया बउबिहा पण्णता, तं जहा
१. आय विदाय वायं पउंजिअसा भवा २. परिसं विवाय वायं पउंजित्ता भवर, ३.खेत विवाय वायं पज्जित्ता भवइ, ४. पत्यु विवायं वायं पउंज्जित्ता भव,
१०-धारणामतिसम्पदा छह प्रकार की कही गई है। जैस
(१) बहुत अर्थों को धारण करना । (२) अनेक प्रकार के अर्थों को धारण करना। (३) पुरानी बात को धारण करना। (४) कठिन से कठिन बात को धारण करना । (५) अनुक्त अर्थ को अपनी प्रतिभा द्वारा धारण करना। (६) शाल अर्थ को सन्देह-रहित धारण करना ।
यह मतिसम्पदा है। प्रयोग-सम्पदा-... ४३५. प्र.-भगवन् ! प्रयोग-सम्पदा कितने प्रकार की है ?
उ०—प्रयोग सम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे-- (१) अपनी शक्ति को जानकर वाद-विवाद करना । (२) परिषद् के भावों को जानकर वाद-विवाद करना । (३) क्षेत्र को जानकर वाद-विवाद करना।
(४) वस्तु के (प्रतिपाय) विषय को जानकर वाद-विवाद करना।
यह प्रयोग सम्पदा है। संग्रह-परिज्ञा-सम्पदा--- ४३६. प्रत - भगवन ! संग्रहपरिज्ञा नामक सम्पदा कितने प्रकार
से त पयोग-संपया । -दसा. द. ४, सु १३ मंगह परिण्णा संपया-- ४३६. ५०-से कि तं संगह-परिष्णा जाम संपया?
उ.. - संग्रह-परिणा णामं संपया चउम्विहा पण्णता, -संग्रहपरिशा नामक सम्पदा चार प्रकार की कही गई तं जहा---
है। जैसे१. बहुजण · पाउग्गयाए वासावासेसु खेत्तं पडिले- (१) वर्षावास में अनेक मुनिजनों के रहने योग्य क्षेत्र का हिता भवड,
प्रतिलेखन करना। २. बहुमण-पाउग्गयाए पाहिहारिय-पीत-फलग- (२) अनेक मुनिजनों के लिए प्राप्तिहारिक-पीठ-पलक-शय्या सेज्जा संचारयं उग्गिरिहत्ता भवद ।
और संस्तारक ग्रहण करना। ३. कालेग कासं समायरित्ता भवड,
(३) समयानुसार कार्य करना । ४. अहागुरु संपूएता भव ।
(४) गुरुजनों का यथायोग्य पूजा-सस्कार करना। से तं संगह-परिषणा णाम संपया ।
यह संग्रह परिज्ञा नामक सम्पदा है ।
-दसा. द. ४, सु.१४ सत्त संगह-असंगहाणा .
सात संग्रह-असग्रह स्थान४३७. आयरिय-उवमायस्स जंगणसि सस संगहठाणा पण्णता, ४३. आचार्य तथा उपाध्याय के लिए गाण में सात संग्रह स्थान तं जहा
कहे हैं । यथा१. आयरिय-उवाए गं गणसि आण या धारणं वा सम्म (१) आचार्य तथा उपाध्याय गण में आशा व धारण का जिता भवति,
सम्यक् प्रयोग करते हैं। २. आयरिय-उवमाए पं गणं सि आधारातिणियाए किति (२) आचार्य तथा उपाध्याय गण में बड़े छोटे के क्रम से कम्म सम्म पउँजित्ता भवति,
वन्दना का सम्यक् प्रयोग करते हैं।