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परगानुयोग-२
आचार्यादि के नेतृत्व के बिना निन्थी के रहने का निषेध
सूत्र ४५६-४५०
सा य "संठवेस्सामिति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पड यदि वह आचारप्रकल्प को पुनः कण्ठस्थ कर लेने का कह पवत्तिणितं वा गणावच्छेइणित वा-उद्दिसित्तए या कर भी कपटस्थ न करे तो उसे प्रतिनी या गणाच्छादिनी पद धारेसए वा।
-बब. उ. ५, सु. १६ देना या धारण करना नहीं कल्पता है। आयरियाइ अणिस्साए जिग्गंधीए विहार णिसेहो- आचार्यादि के नेतृत्व के बिना निर्ग्रन्थी के रहने का
निषेध-- ४५७. निगंथीए णं नव-उहर-तरुणीए आयरिय-उषज्शाए, पव- ४५७. नवदीक्षिता, बालिका या तरुणी निम्रन्थी के आचार्य,
त्तिणीय वीसं भेज्जा नो से कप्पह अणायरिय-उवज्झाइयाए उपाध्याय और प्रवर्तिनी की यदि मृत्यु हो जाये तो उसे आचार्य अपत्तिणियाए होसए।
उपाध्याय और प्रवनिनी के बिना रहना नहीं कल्पता है। कप्पड़ से पुवं आयरियं उहिसावता तो उवायं तो उसे पहले आचार्य की, बाद में उपाध्याय की और बाद में पच्छा पत्तिण।
प्रतिनी की निथा आधीनता स्वीकार करके ही रहना चाहिये। ५०-से किमाह मंसे ?
प्र. - - हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है? उ०—ति-संगहिया समणी निगंथी, तं जहा
उ.- श्रमणी निर्ग्रन्थी तीन के नेतृत्व में ही रहती है। १. आयरिएणं, २. उवजनाएणं, ३. पत्तिणीए । यथा---(१) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) प्रवतिनी।
- बन. उ. ३, सु. १२ गण पमुहाए कालगयाए समाणीए णिग्गंथोए किसचाई- अग्रणी साध्वी के काल करने पर साध्वी का कर्तव्य४५८, गामाणुगाम दूइग्जमागी णिगंथी में जं पुरओ का ४५८. ग्रामानुग्राम बिहार करती हुई साध्वियां जिस को अग्रणी
विहरई, सा य आहाथ वीसभेज्जा अत्यि य इत्य काइ अन्ना मानकर बिहार कर रही हों उनके कालधर्म प्राप्त होने पर शेष उपसंपाजणारिहा सा उपसंपम्मिपन्ना।
साध्वियों में जो साध्वी योग्य हो उसे अग्रणी बनाना चाहिए। नरिथ य इस्य काह अन्ना उपसंपणारिहा लोप्ते य अपाणो यदि अन्य कोई साध्वी अग्रणी होने योग्य न हो और स्वयं कप्पाए असम एवं से कप्पड एगराइयाए पडिमाए अण्णं ने भी निशीय आदि का अध्ययन पूर्ण न किया हो तो उसे मार्ग जण्णं विसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरति तणं तप में एक-एक रात्रि ठहरते हुए जिस दिशा में अन्य सामिणी विसं उवलित्तए।
साध्यिा विचरती हों उस दिशा में जाना कल्पता है। नो से कप्पइ तत्य विहारवत्तिय बत्थए ।
मार्ग में उसे विचरने के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता है। कम्पइ से तस्य कारणवसिय वत्थए ।
यदि रोगादि का कारण हो सो ठहरना कल्पता है। तसि च गं कारणसि निट्टियंसि परो वएग्जा
रोगादि के समाप्त होने पर यदि कोई कहे कि"वसाहि अजे! एगरायं वा दुरावं या" एवं से कप्पड हे आयें ! एक या दो रात और ठहरो" तो उन्हें एक या एगरायं वा दुरायं वा वस्थए । नो से कप्पट परं एगरायाओ दो रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से बाबुरायामओ या बस्थए । जा तस्य एगरायाओ वा दुरा- अधिक रहरना नहीं कल्पता है जो साध्वी एक या दो रात से यामो वा परं वसइ सा सन्तरा छए वा परिहारे वा। अधिक ठहरती है वह मर्यादा उल्लंघन के कारण दीक्षा-छेद या
परिहार प्रायश्चित्त की पात्र होती है। वासावासं पम्जोसविया निगथी यजं पुरमओ का विहर वर्षावास में रही हुई साध्वियां जिसको अग्रणी मानकर रह सा आहाच वीस भेज्जा, अस्थि य इत्थ काइ अधा उपसंप- रही हों उनके कालधर्म प्राप्त होने पर शेष साध्वियों में जो ज्जणारिहा सा उपसंपरिजयया ।
साध्वी योग्य हो उसे अग्रणी बनाना चाहिए। नस्थि य इत्य काह अन्ना उपसंपाजणारिहा तीसे य अप्पणो यदि अन्य कोई साध्वी अग्रणी होने योग्य न हो और स्वयं
पाए असमते एवं से कप्पड एगराध्याए पडिमाए जष्णं ने भी आचार प्रकल्प का अध्ययन पूर्ण न किया हो तो उसे मार्ग जष्णं दिसं मनाओ साहम्मिणीओ विहरति तण्णं तण्णं विसं में एक-एक रात्रि ठहरते हुए जिस दिशा में अन्य सामिणी उपलितए।
साध्वियां विचरती हों उस दिशा में जाना काल्पता है। नो से कप्पद तत्व विहारवत्तिय वस्थए ।
मार्ग में उसे विचरने के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता है। कप्पई से तत्य कारणवत्तिय वस्थए।
यदि रोगादि का कारण हो तो ठहरना कल्पता है।