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चरणानुयोग--2
अलग के समिका के साथ रहने के कारण
सूत्र ४०४-४७५
१. अत्येगया जिग्गंथा गणिग्गंर्थःो य एग महं अगामियं (१) यदि कदाचित् कुछ निन्ध और रिश्रन्थियां किसी छिम्मावार्य दोहमद्धमविमणुपविट्ठा तरथ एगयो ठाणं वा, बड़ी भारी, ग्रामशून्य, आवागमन रहित लम्बे मार्ग बाली अटबी सेज्ज वा, जिसीहियं वा चेतेमाणा जातिषकमति । भे' अनुप्रविष्ट हो जावें तो वहां एक स्थान पर अवस्थान, शयन
ओर स्वाध्याय करते हुए जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं । २. अरगइया णिम्गंधा य णिग्गयोभो य गामंसि वा-जाव- (२) यदि कुष्ठ निग्रंप या निग्रन्थियाँ किसी ग्राम-यावत्रायहाणिसि वा वासं उवागता एगइया लस्थ उबस्सयं लभति, राजधानी में पहुँचे, बहां दोनों में से किसी एक वर्ग को उपाश्रय एगहया णो लमंति, तत्थ एगपओ ठाणं वा, सेज्ज बा, मिला और एक को नहीं मिला तो वहाँ वे एक स्थान पर अबमिसीहियं वा चेतेमाणा णातिक्कमति ।
स्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए जिनाज्ञा का अतिक्रमण
नहीं करते हैं। ३. अत्गइया णिग्गया य णिग्गंधीमो य णागकुमारावासंसि (२) कदाचित् कुछ निर्गन्ध-निर्ग्रन्थियाँ नागकुमार या सुवर्णसा, सुवष्णकुमारावासंसि वा वासं उवागता तत्य एमयओ कुमार आदि देवालय में निवाग के लिए एक साथ पहुंचे तो ठाणं वा सेज्ज वा, णिसोष्ट्रिय वा, चेतेमाणा णातिषक मंति। वहां एक स्थान पर अबस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए
जिनाजा का अतिक्रमण नहीं करते हैं। ४ आमोसगा दोसति, ते इच्छति णिग्गंधीओ चीवरपडियाए (४) जहाँ चोरों का उपद्रव दिखाई देवे और वे निग्रन्थियों पजिगाहिसए तस्य एगयो ठाणं वा सेज्ज वा, मिसीहियं वा के वस्त्रों को चुराना चाहते हों तो वहीं साधु-साध्वी एक स्थान चैतेमाणा णातिक्कमति ।
पर अवस्थान, शयन और स्वाध्याय करते हुए जिनाज्ञा का अति
क्रमण नहीं करते हैं। ५ जुवाणा दीसंति, ते इच्छति । णिग्गंथोत्रो मेहुणपडियाए (५) जहाँ गुंडे युवक दिखाई देखें और वे निन्थियों के पडिमाहितए, तत्व एगयो ठाणं वा सेज वा पिसोहियं वा साथ मैथुन सेवन की इच्छा से उन्हें पकड़ना चाहते हो तो वहाँ तेमाणा णातिक्कमंति।
निम्रन्थ और निर्गन्थियां एक स्थान पर अवस्थान, शयन और
स्वाध्याय क्रिया करें तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं । हचतेहि पंचहि ठाणेहि णिगंधा णिगंभीओ य एगयओ इन पांच कारों से निग्रंन्थ एवं निर्गन्धियाँ एक स्थान पर ठाणं या सेज वा णिसोहियं वा चेतेमाणा णातिककर्मति । अवस्थान, गायन एवं स्वाध्याय करते हुए जिनाजा का अतिक्रमण
-याणं. अ. ५, उ. २, सु. ४१७ नहीं करते हैं । सचेलिया सह अचेलस्स संवसणं कारणाई-
अचेलक के सचेलिका के साथ रहने के कारण४७५. पंचहि ठाहिं सभणे-णिगषे अचेलए, सचेलियाहिं निम्गंथोहिं ४७५. पाँच कारणों से वस्परहित थमण निन्य सचेलक निर्गन्थियों सडि संवसमाणे णातिक्कमति, सं जहा
के साथ रहता हुआ जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। जैसे१. खित्तचित्ते समणे-णिग्गंधे णिग्यहि अविजमाणेहि (१) शोक आदि से विक्षिप्त चित्त वाला अचेलक श्रमण"अचेलए सचेलियाहि" णिगंथीहि सखि संवसमाणे पातिषक- निग्रंन्य' अन्य निर्ग्रन्थों के अभाव में सचेलक निर्ग्रन्थियों के साथ मति।
रहता हुआ जिनामा का अतिक्रमण नहीं करता है। २. वित्तचित्ते समणे-णिग्गथे णिग्गंधेहि अबिजमाणेहि "अचे- (२) हर्षातिरेक से उन्मत्तचित्त बाला अचेलक यमण-निर्ग्रन्थ सएसचे लियाह"णिधोहि सद्धि सवसमाणे णातिक्कमति । अन्य निग्रन्थों के अभाव में सचेलक निग्रन्थियों के साथ रहता
हुवा जिनाशा का अतिक्रमण नहीं करता है। ३. जक्खाइ8 समणे-मिग थे, णिगहि अविजमाणे "अचे. (३) यशाविष्ट कोई अचेलक श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्य निग्रन्थों लए सचेलियाहि णिगंधीहि सादि संबसमाणे गातिक्कमति। के अभाव में सचेलक निग्रंन्धियों के साथ रहता हुआ जिनाजा
का अतिक्रमण नहीं करता है। ४. उम्मायपसे समणे-णिग्गंधे, जिग्गंथेहि अविजमाणेहि (४) वायु के प्रकोपादि से उन्माद को प्राप्त कोई अचेलक "अचेलए सचेलियाहि" णिग्गंधीहि सति संवसमाणे णाति- श्रमण-निर्घन्य अन्य निर्ग्रन्थों के अभाव में सचेलक निग्रंथियों के एकमति ।
साय रहता हुआ जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है।