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________________ २०८] परमाणुयोग--२ प्रयोग-सम्पदा सूत्र ४३४-४३७ उ~धारणा-महसंपया छविहा पण्णता, तं जहा १. गहुं घरेह, २. विहं घरेड, ३. पोराणं धरेड, ४. दुसरं घर, ५. अणिस्सिय घरेड ६. असंविदं धरे। से सं मह-संपया। -दसा.द. ४ सु.-१२ पओग संपया४३५. ५० --से कितं पओग-संपया ? 30-पओग-संपया बउबिहा पण्णता, तं जहा १. आय विदाय वायं पउंजिअसा भवा २. परिसं विवाय वायं पउंजित्ता भवर, ३.खेत विवाय वायं पज्जित्ता भवइ, ४. पत्यु विवायं वायं पउंज्जित्ता भव, १०-धारणामतिसम्पदा छह प्रकार की कही गई है। जैस (१) बहुत अर्थों को धारण करना । (२) अनेक प्रकार के अर्थों को धारण करना। (३) पुरानी बात को धारण करना। (४) कठिन से कठिन बात को धारण करना । (५) अनुक्त अर्थ को अपनी प्रतिभा द्वारा धारण करना। (६) शाल अर्थ को सन्देह-रहित धारण करना । यह मतिसम्पदा है। प्रयोग-सम्पदा-... ४३५. प्र.-भगवन् ! प्रयोग-सम्पदा कितने प्रकार की है ? उ०—प्रयोग सम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे-- (१) अपनी शक्ति को जानकर वाद-विवाद करना । (२) परिषद् के भावों को जानकर वाद-विवाद करना । (३) क्षेत्र को जानकर वाद-विवाद करना। (४) वस्तु के (प्रतिपाय) विषय को जानकर वाद-विवाद करना। यह प्रयोग सम्पदा है। संग्रह-परिज्ञा-सम्पदा--- ४३६. प्रत - भगवन ! संग्रहपरिज्ञा नामक सम्पदा कितने प्रकार से त पयोग-संपया । -दसा. द. ४, सु १३ मंगह परिण्णा संपया-- ४३६. ५०-से कि तं संगह-परिष्णा जाम संपया? उ.. - संग्रह-परिणा णामं संपया चउम्विहा पण्णता, -संग्रहपरिशा नामक सम्पदा चार प्रकार की कही गई तं जहा--- है। जैसे१. बहुजण · पाउग्गयाए वासावासेसु खेत्तं पडिले- (१) वर्षावास में अनेक मुनिजनों के रहने योग्य क्षेत्र का हिता भवड, प्रतिलेखन करना। २. बहुमण-पाउग्गयाए पाहिहारिय-पीत-फलग- (२) अनेक मुनिजनों के लिए प्राप्तिहारिक-पीठ-पलक-शय्या सेज्जा संचारयं उग्गिरिहत्ता भवद । और संस्तारक ग्रहण करना। ३. कालेग कासं समायरित्ता भवड, (३) समयानुसार कार्य करना । ४. अहागुरु संपूएता भव । (४) गुरुजनों का यथायोग्य पूजा-सस्कार करना। से तं संगह-परिषणा णाम संपया । यह संग्रह परिज्ञा नामक सम्पदा है । -दसा. द. ४, सु.१४ सत्त संगह-असंगहाणा . सात संग्रह-असग्रह स्थान४३७. आयरिय-उवमायस्स जंगणसि सस संगहठाणा पण्णता, ४३. आचार्य तथा उपाध्याय के लिए गाण में सात संग्रह स्थान तं जहा कहे हैं । यथा१. आयरिय-उवाए गं गणसि आण या धारणं वा सम्म (१) आचार्य तथा उपाध्याय गण में आशा व धारण का जिता भवति, सम्यक् प्रयोग करते हैं। २. आयरिय-उवमाए पं गणं सि आधारातिणियाए किति (२) आचार्य तथा उपाध्याय गण में बड़े छोटे के क्रम से कम्म सम्म पउँजित्ता भवति, वन्दना का सम्यक् प्रयोग करते हैं।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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