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________________ सूत्र ४३७-४३८ आचार्य उपाध्याय पद योग्य निर्ग्रन्थ संघ-व्यवस्था [२०९ ३. आरिय-उचक्माए गणंसि जे सुत्तपज्जबजाते धारेति (३) आचार्य तथा उपाध्याय जिन-जिन सूत्र पर्यबजातों को ते काले काले सम्ममणुप्पयाइत्ता भवति । धारण करते हैं, उनकी उचित समय पर गण को सम्पन् बाचना देते है। ४. आयरिय-उबमाए णं गर्णसि गिलाणसेहवेयावाचं सम्भ- (४) आपायं तथा उपाध्याय गण के ग्लान तथा नवदीक्षित मम्मुट्टित्ता भवति । माधओं की मथोचित सेवा के लिए सतत जागरूक रहते हैं। ५. आयरिय-उबनाए गं गणंसि आपुच्छियचारी यावि (५) आचार्य तथा उपाध्याय गण को पूछकर अन्य प्रदेश में भवति, पो अणाणपुच्छियचारी। बिहार करते हैं, उन्हें पूछे बिना बिहार नहीं करते हैं। ६. आयरिय-उवमाए णं गणसि अणुप्पणाई उवगरणाई (६) आचार्य तथा उपाध्याय गण के लिए अनुपलब्ध उपसम्म उत्पाइसा भवति । करणों को यथाविधि उपलब्ध करते हैं। ७. आयरिय-उबज्माए गं गणसि पुम्बुप्पणाई अवकरणाई (s) आचार्य तथा उपाध्याय गण में प्राप्त उपकरणों का सम्म सारक्सेत्ता संगोविसा भवति, णो असम्म सारक्खेता सम्यक प्रकार से संरक्षण तथा संगोपन करते हैं, असम्यक प्रकार संगोवित्ता प्रयति । से संरक्षण और संगोपन नहीं करते हैं । आयरिय-उक्जमायस्स गं गणसि सत्त असंगठाणा पण्णता, आचार्य तथा उपाध्याय के लिए गण में सात असंग्रह स्थान तं जहा-- है, यथा१. आयरिय-उबज्माए गं गणसि आणं वा धारणं वा थो (१) आचार्य तथा उपाध्याम गण में आज्ञा व धारणा को सम्म पउंज्जित्ता भवति । सम्यक प्रयोग नहीं करते हैं । २. आयरिय-उज्शाए गं गर्णसि आधारातिणियाए किति- (२) आचार्य तथा उपाध्याय गण में यथारानिक कुतिकर्म कम्मं णो सम्म पउज्जित्ता मवति । का सम्यक् प्रयोग नहीं करते हैं। ३. आपरिय-उपमाए णं गणसि जे सुत्तएज्जवजाते धाति (३) आचार्य तथा उपाध्याय जिन-जिन सूत्र-पर्यवजातों को ते काले काले गो सम्ममणप्पवाहत्ता भवति । धारण करते हैं, उनकी उचित समय पर गण को सम्यक् वाचना नहीं देते हैं। ४. आरिय-उवमाए गं गणसि गिलाणसेहयावच्च णो (४) आचार्य तथा उपाध्याय ग्लान तथा नवदीक्षित साधुओं सम्मगमट्टिता भवति । की यथोचित सेवा के लिए सतत जागरूक नहीं रहते हैं। ५. आयरिय-उवाए गं गणसि अणापुच्छियचारी यावि (५) आचार्य तथा उपाध्याय गण को पूछे बिना अन्य प्रदेशों भवइ, गो अणाणपुच्छियचारी । में बिहार करते हैं, उसे पूछकर विहार नहीं करते हैं। ६. आयरिय-उवझाए गं गणसि अणुप्पणाई उवगरणाई (६) आचार्य तथा उपाध्याय गण के लिए अनुपलब्ध उपणो सम्म उप्पाइत्ता भवति । करणों को यथाविधि उपलब्ध नहीं करते हैं। ७. आपरिय-उवमाए गं गणसि पच्चुप्पण्णाण उवगरणागं (७) आचार्य तथा उपाध्याय गण में प्राप्त उपकरणों का णो सम्म सारक्खेता संगोवेत्ता, भवति । सम्यक् प्रकार से संरक्षण और संगोपन नहीं करते हैं । --ठाण. अ.७,मु. ५४४ RIN निर्ग्रन्थ पद-व्यवस्था-४ आयरिय उवमाय पदारिहा णिग्गंथा४३८, पंचवास परियाए समणे जिथे -- आयार-कुसले. सजम कुसले, पवयण-फुसले, एण्णत्ति कुसले, संगह-कुसले, उवग्गह-कुसले, आचार्य उपाध्याय पद योग्य निर्ग्रन्थ - ४३८. पाँच वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निम्रन्थ . यदि आचारकुशल, संगमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, मंग्रहकुशल और उपग्रहकुशल हो ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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