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वरणामुयोग-२
आचार्य उपाध्याय पद के अयोग्य निर्गन्य
सूत्र ४३८-४३६
अवख्यायारे, अमिनायारे, असबलायारे, असं किलिट्ठायारे, अक्षत चारित्र वाला, अभित्र चारित्र बाला, अपाबल बहुस्सुए, बम्मागमे ।
चारित्र वाला और असंक्लिष्ट आचार वाला हो, बहुश्रुत एवं
बहु आगमज्ञ हो, जहणणं वसा-काप-ववहारघरे, कप्पड आयरिय-उवनसाय एवं जघन्य दशा, कल्प एवं व्यवहार का धारक हो तो उसे साए उहिसित्तए।
आचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। अटुवास-परियाए समणे निम्गथे--
आठ वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थआयारसमे, संजमकुसले, पवयणकुसले, पणत्तिकुमले, यदि आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, संगहकुसले, जवाहकुसले, अक्खयायारे, अभिन्नायारे, संग्रहकुशल और उपग्रहकुशल हो। अक्षप्त चारित्र बाला, अभिन्न असमलायारे, असंकिलिङ्कायारे, बहुस्सुए, वळमागमे, चारित्र दाला, अणबल चारित्र वाला और अफ्लिष्ट आचार
वाला हो, बहुश्रुत एवं वहुआयमज्ञ हो, जहणणं ठाणं-समवाय-धरे, कप्पड आयरियलाए उज्झाय. एवं जघन्य स्थानांग-समवायांग का धारक हो तो उसे अचार्य साए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।
उपाध्याय और गणावच्छेदक पद दंना कल्पता है। निवपरियाए समणे निम्नथे कप्पद तहियसं वायरिय- निरुद्ध पर्याय बाला श्रमण नियन्थ जिस दिन दीक्षित हो उपक्षायत्ताए उद्दिसित्तए ।
उसी दिन उसे आचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। ५०--से किमान मंते !?
प्र०-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है? उ०-अस्थि गं राणं तहारूवाणि कुलाणि कहाणि, पति- ०-स्थविरों के द्वारा तथारूप से भावित प्रीति युक्त,
पाणि, थेज्जाणि वेसासियाणि, सम्मयागि, सम्मुइ- स्थिर, विश्वस्त सम्मत, प्रमुदित, अनुमत और बहुमत अनेक
कराणि, अणुमयाणि बहुमयाणि भवति । कुल होते हैं। तेहि कोहि, तेहि पत्तिरहि, तेहि बेज्जेहि,
उन भावित प्रीतियुक्त स्थिर विश्वस्त मम्मत प्रमुदित, तेहिं वेसासिएहि, तेहि सम्मएहि, तेहि सम्मुइकरेहि, अनुमत और बहुमत कुल मे दीक्षित जो निरुद्ध पर्याय वाला तेहि अणमएहि, तेहि बमएहिं ।
श्रमण निर्गन्थ है उसे उसी दिन आचार्य या उपाध्याय पद देना जं से निवपरियाए समणे किग्गंधे,
करूपता है। कप्पा आयरिय-उवमाथताए उहिसित्तए तहिवतं ।
-वव.उ. ३, सु.५,७,६ आयरिय उवमायपदाऽणरिहा णिग्गंथा
आचार्य उपाध्याय पद के अयोग्य निग्रन्थ-- ४३९. सच्चेव से पंधवासपरियाए समर्ग निर्माथे--
४३६. बह पांच बर्य की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थ - मो आयार कुसले, नो संजम-कुसले, नो पवयग-कुसले, यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्रजाप्ति, संग्रह और उपग्रह में नो एण्णत्ति-कुसले, नो संगह-कुसले, नो उपग्गह-कुसले, कुशल न हो तथा क्षत, भित्र, शवल और संक्लिष्ट आचार वाला बयायारे भिन्नाबारे, सबलायारे,
हो, अल्पश्रुत और अल्प आगमज्ञ हो तो उसे आचार्य या उपासंकिसिद्वायारे, अप्पमुए, अप्पागमे,
ध्याय पद देना नहीं कल्पता है। नो कप्पा आयरिय-उवमायत्ताए उहिसिलए। सच्चेष णं से अटुवासपरियाए समणे जिग्गंथे
वह आठ वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निन्थनो आयारकुसले, नो संजमफुसले, नो पक्षयणकुसले,
यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञप्ति, संग्रह और उपग्रह में मो पतिकुसले, नो संगहकुसले, नो सवगहकुसले, कुशल न हो तथा क्षत, भिन्न, शबल और संक्लिष्ट आवार सवायारे, मिनायारे, सखलायारे,
वाला हो, अल्पश्रुत और अल्प आगमज्ञ हो तो उसे प्राचार्य, संफिलिवामारचित्त, अप्पसुए, अप्पागमे,
उपाध्याय और गणावच्छेदक पद देना नहीं कल्पता है । नो कप्पा आयरियताए, उवजमायताए, गणावच्छेइयत्ताए दिसित्तए।