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सूत्र ४४६-४४७
संयम त्याग कर जाने बालों को पत्र देने का विधि-निषेध
संघ-व्यवस्था
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ओहावियाणं पद-दाण विहि-णिसेहो
संयम त्याग कर जाने वालों को पद देने का विधि-निषेध४४६. भिक्खु य गणाओ अबक्कम्म ओहाएज्जा, तिष्णि संघच्छ- ४४६. यदि कोई भिक्षु गण व संयम का परित्याग कर वेप को
राणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड़ जायरियत वा-जाव- गणा- छोड़कर चला जावे और बाद में पुनः दीक्षित हो जाए तो उसे वच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धाराए वा ।
उक्त कारण से तीन बर्ष पर्यन्त आचार्य -- यावत-गणावच्छेदक
पद दे । या धारण करता नहीं कल्पता है । तिहिं संवच्छरेहि वीएक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पहि- तीन वर्ष व्यतीत होने पर और चौथे वर्ष में प्रवेश करने पर यंसि ठियस्स उक्स तस्स, उबरयस्स, पडिविरयम्स, निवि- यदि वह उपशान्त, उपरत, प्रतिविरत और निविकार हो जाए गारस्स एवं से कप्पड आयरियस्तं वा-जाबाणावच्छेइयत्तं तो उसे आचा-यावत् · गणावच्छेदक पद देना या धारणा था उद्दिसित्तए वा धारेशए वा।।
करना कल्पता है। गणावच्छेदए गणावच्छोइयत्तं अनिक्लियित्ता मोहाएज्जा, यदि कोई गणावच्छेदक अपना पद छोड़े बिना संयम का जाबम्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पर आयरियत्तं वा-जाव- परित्याग कर चला जावे और बाद में पुन: दीक्षित हो जाये तो गणावग्छेदयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेशए वा। उसे उक्त कारण से यावहीवन वाचार्य-यावत्-गणावच्छेदक
पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। गणावच्छंइए गणावशेषहत्तं निक्खिविशा ओहागउजा, यदि कोई गणावचोदन अगना पद छोड़कर नया संवम का तिविण संवच्छराणि तरूस तप्पत्तियं नो कप्पद आयरियरी परित्याग कर चला जादे और बाद में पुनः दीक्षित हो जाए तो बा-जावनाणावच्छे इयत्तं या उद्दिसित्तए वा धारेत्तए था। उसे उक्त कारण से तीन वर्ष पर्यन्त आचार्य यावत् --गणाव
मोदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। तिहिं संवचछरेहि वीहवकतेहि, चउस्थगंसि संबन्छ रंसि पट्रि- तीन वर्ष व्यतीत होने पर और चौथ नपं में प्रवेश करने पर पंसि व्यिस्स, वसंतस्स, उबरयस्स. पडिविरयस्म, निस्वि. यदि वह उपशान्त, उपरत, प्रतिविरत और निर्विकार हो जाए गारस्स एवं से कप्पा आयरिया बाजाब-गणापन्छेइया तो उसे आमर्य-यावत्-गणावच्छेदक पद देना या धारण बा उद्दिसितए वा धारेत्ता वा।।
करना कल्पता है। अयरिय-विज्याए आयरिय-उवउहायतं अनिखिविता यदि कोई आचार्य या उपाध्याय अपना पद छोड़े बिना ओहाएजा, जाधज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड आय- संचन का परित्याग कर चला जावे और बाद में पुनः दीक्षित हो रियां वा-जात-गणावच्छेदयनरी बा उद्दिसित्तए वा धारेत्ताए जाए तो उसे उक्त कारण से यावज्जीवन आचार्य ---यावत . वा।
गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है । आयरिय उवज्झाए मायरिय-उवमायतं निक्यिविशा ओहा- यदि कोई आचार्य या उपाध्याय अपना पद छोड़कर तथा एज्जा, तिरिण संवच्छराणि तस्स तपशिय नो कप्पा आय- संयम का परित्याग कर चला जावे और बाद में पुप. दीक्षित हो रियत वा-जाव-गणावच्छेदयता वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए जाए तो उसे उक्त कारण से तीन वर्ष पर्यन्त आचार्ग-यावत्--
गणावच्छेदका पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। तिहि संबच्छरेहिं वीइक्कतेहि उत्यगसि संबछरंसि पट्टि- नीन वर्ष व्यतीत होने पर और चौथे वर्ष में प्रवेश करने पर यंसि ठियस्स, उथसंतस्स, उवरयस्स. पटिबिरयस्स, निखि• यदि वह उपशान्त, उपरत, प्रतिविरत और निर्विकार हो जाई मारस्स एवं से कप्पर आयरियर्स वा-जाव-गणावमइयां तो उसे आचार्य - यावत्-गणापच्छेदक पद देना या धारण
वा उद्दिसित्तए या धारेत्तए था। बब. न. ३, गु. १८-२२ करना पाल्पता है। उवज्झाय पद-दाण विहि-णिसेहो-.
उपाध्याय पद देने के विधि-निषेध४४४. तिवासपरियाए समणे निगथे -
४४७. तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निग्रन्थआयारकुसले, संजमफुसले, पवयणकुसले, पणसिकुसले. यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्राप्ति, संग्रह और उपग्रह संगनकुसले. उवग्नहकुसले. अक्त्रयायारे, अभिन्नामारे, करने में कुपाल हो तथा अक्षत. अभित्र, अजवल और अमक्लिष्ट असबलायारे, अमकिलिदायारे, बहुस्सुए बसमागमे, जहणं आचार वाला हो, बहुश्रुत एवं बहु भागमज हो और नघभ्य आयारपकम्प-धरे, कप्पइ उपजलायत्ताए अदिलिताए । आचार प्रकल्पधर हो तो उसे उपाध्याय पद देना कल्पना है।
बा।