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सूत्र ४५१-४५२
अग्रणी के काल करने पर भिक्ष का कर्तव्य
संघ-व्यवस्था
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मगच से पलिछन्ने,
यदि वह भिक्षु सूत्र ज्ञान आदि योग्यता से युक्त हो तो उसे एवं से कम्पह गणं धारेतए,
गणधारण करना कल्पता है। भिक्खू य इच्छेज्जा गर्ष धारेत्तए, नो से कप्पा थेरे अणापु- यदि योग्य भिक्षु गणधारण करना चाहे तो उसे स्थविरों को मिछसा गणं धारेत्तए।
पूछे बिना गणधारण करना करना नहीं कल्पता है । कप्पा से मेरे आगुन्छिसा गणं धारेत्तए ।
स्थविरों को पूछ करके ही गणधारण करना कल्पता है। थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कम्पा गण धारेसए ।
यदि स्थविर अनुज्ञा प्रदान करें तो गणधारण करना
कल्पता है। राम नो वियरेक्जा, एवं से नो कप्पड़ गणं धारेत्तए। यदि स्थविर अनुज्ञा प्रदान न करें तो गणधारण करना
नहीं कल्पता है। जंग थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा से सन्तरा छेए वा यदि स्थविरों की अनुज्ञा प्राप्त किये बिना ही गणधारण परिहारे वा।
करता है तो वह उक्त कारण से दीक्षा छेद या परिहार प्रायश्चित्त जे साहम्मिया उडाए विहरति, नरिय ण तेसि के छेए या का पात्र होता है, किन्तु उसके साथ जो सामिक साधु विचरते परिहारे वा।
-बब. उ. ३, सु १-२ हैं वे दीक्षा वेद या परिहार प्रायश्चित्त के पात्र नहीं होते हैं। गणं पमुहस्स कालगए समाणे भिक्खुस्स किसचाई- अग्रणी के काल करने पर भिक्षु का कर्तव्य - ४५२. गामागुगामं दूग्नमाणे भिक्खु जे पुरओ कटु विहरइ, से ४५.२. ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ भिक्षु जिन को अपणी
य आहच्च वीसं भेज्जा, अस्थि य हत्य अग्ने केह उपसंपज्ज- मानकर बिहार कर रहा हो उनके कालधमं प्राप्त होने पर शेष णारिहे से उपसंपज्जियवे ।
भिक्षुओं में जो भिक्षु योग्य हो उसे अग्रणी बनाना चाहिए। मथि य इस्थ अन्ने के उपसंपाजणारिहे तस्स अप्पणो यदि अन्य कोई भिक्षु अग्रणी होने योग्य न हो और स्वयं ने कप्याए असमते कापड से एगराइयाए पडिमाए जगणं अण्णं भी आचार प्रकल्प का अध्ययन पूर्ण न किया हो तो उसे मार्ग में विसं अन्ने साहमिया विहरति तं गं तं गं दिसं उवलितए। विश्राम के लिए एक एक रात्रि ठहरते हुए जिस दिशा में अन्य
स्वधर्मी विचरते हों उस दिशा में जाना कल्पता है। नो से कप्पड़ तत्य विहारवत्तियं बस्थए।
मार्ग में उसे विधरने के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता है। कप्पड़ से तस्य कारणलियं वत्थए ।
यदि रोगादि का कारण हो तो अधिक ठहरना कल्पता है । तसि च णं कारणसि निद्विमि परो वएपमा --
रोगादि के समाप्त होने पर यदि कोई कहे कि"बसाहि अज्जो! एगरायं वा दुराय या" एवं से कप्पह हे आये ! एक या दो रात और ठहरों" तो उसे एक या एगरायं वा तुरायं वा बत्यए । नो से कप्पइ परं एगरायाओ दो रात ठहरना कल्पता है किन्तु एक या दो रात से अधिक वा दुरायामो वा बस्थए । जे तत्ष एपराबाओ या बुरायाओ ठहरना नहीं कल्पता है। जो भिक्षु वहाँ (कारण समाप्त होने के वा परं बसद से संतरा छेए वा परिहारे वा ।
बाद) एक या दो रात से अधिक ठहरता है वह मर्यादा उल्लंघन
के फारण दीक्षा छद या परिहार प्रायश्चित्त का पात्र होता है। वासावासं पज्जोसविओ भिक्खू यजं पुरओ कटु विहा वर्षावास में रहा हुआ मिन जिन को अग्रणी मानकर रह से य आहाच वीस भेजा अस्थि य इत्य आने केइ उपसंप रहा हो उनके कालधर्म प्राप्त होने पर शेष भिक्षुओं में जो जगारिहे से उबसंपज्जियन्ये ।
भिक्षु योग्य हो उसे बमणी बनाना चाहिए। नरिथ य इत्य अन्ने के उपसंपज्जणारिहे तस्स अप्पणो यदि अन्य कोई भिक्षु अग्रणी होने योग्य न हो और स्वयं ने कप्पाए असमत्ते कप्पाद से एगराइयाए पडिमाए जणं जगण भी निशीथ आदि का अध्ययन पूर्ण न किया हो तो उसे मार्ग में विसं अन्ने साहम्मिमा विहरति तं गं विसं उलितए। विश्राम के लिये एक एक रात्रि ठहरते हुए जिस दिशा में अन्य
स्वधर्मी विचरते हों उस दिशा में जाना कल्पता है । नो से कप्पाइ तत्थ विहारवत्तियं वस्थए ।
मार्ग में उसे विचरने के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता है। कप्पड़ से तत्थ कारणवत्तिय वस्थए।
यदि रोगादि का कारण हो नो अधिक ठहरना कल्पता है । तसिचणं कारणसि निदिसि परो वएज्जा
रोगादि के ममाप्त होने पर यदि कोई कहे कि