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धरणामुयोग-२
सूर्य सहश महर्षि
सूत्र ६०-६५
सूरियसरिसो महेसो -
सूर्य सदृश महर्षि६०. सन्नाणनाणीवगए महेसी, अणुसरं चरि धम्मसंचयं । ६०. अनुत्तर चारित्र धर्म का आचरण करने वाला, सम्यग्ज्ञान अणुत्तरमाणघरे जसंसी, आमासई सूरिए वन्तलिखे ।। से युक्त तथा अनुत्तर ज्ञानधारी, यशस्वी, महर्षि, अन्तरिक्ष में
-उत्त. अ. ६१, गा. २३ मूर्य की भांति धर्म-संघ में प्रकाशमान होता है। पवखी विव लहुभूविहारी--
पक्षी की तरह लघु-भूत विहारी६१. भोगे भोच्चा पमित्ता य, लाभूपविहारिणो ।
६१. जो भौगों को भोगकर तथा यथावरार उनका त्याग करके आमोयमाणा गच्छन्ति, दिया कामकमा इव ।।
लघुभूत होकर विचरण करते हैं। वे अपनी इच्छानुसार विचरण -उत्त. अ. १४, गा. ४४ करने वाले पक्षियों की तरह साधुचर्या में प्रसत्रतापूर्वक विवरण
करते हैं। विहग इव अपडिबद्ध विहारी--
पक्षीवत् अप्रतिबन्धविहारी१२. हयरो विगणसमिद्धो, तियत्तिगुत्तो तिवंडविरओ य । ६२. गुणों से समृद्ध तीन गुप्तियों मे गृप्त. तीन दण्डों से विरत विहग इव विप्पमुक्को, विहरइ वह विगयमोहो । मुनि पक्षी की तरह प्रतिवन्धमुक नया मोह रहिन होकर .
--उत्त. अ, २०, गा. ६० मण्डल पर विचरण करता है । कंजर इब धोरो
हाथी के समान धैर्यवान१३. परीसहा कुच्चिसहा अणेगे, सोयन्ति जस्था बहुकायरा नरा। ६३. अनेक असह्य परीषह होने पर बहुत से कायर व्यक्ति वेद से तत्व पत्तं न बहेज मिक्खू, संगामसीसे इष नागराया ॥ का अनुभव करते हैं किन्तु भिक्षु परीपह होने पर संग्राम में आगे
-उत्त, अ. २१, गा. १७ रहने वाले हाथी की तरह व्यथित नहीं होता है । मेरु इव अकम्पो
मेरु के समान अकम्पमान१४. पहाय रागं च तहेव दोसं, मोहं च भिक्खू सययं वियपणो। १४. विलक्षण भिक्षु सतत राग-द्वेष और मोह को छोड़कर मेरुन वाएण अकंपमाणो, परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ।। वायु से अकषित मे की भांति आत्नगुप्त बनकर परीषहों को
-वत्त. अ. २१, मा. १६ सहन करे। वसह इव संसार कतार पारगामी
वृषभ सम भवाटवी पारकर्ता६५. बहणे वहमाणम्स, कन्तारं अइवत्तई ।
६५. शकटादि वाहन को ठीक तरह वहन करने वाला बैल जैसे जोए बहमाणस्स, संसारो अइयत्तई ।।
अटवी को सुखपूर्वक पार करता है, उसी तरह संयम भार का -उत्त, अ. २७, गा.२ वहन करने वाला मुनि संसार को पार कर जाता है।
१ बहुश्रुत भिक्षु की उपमाएँ मानाचार
१ बहुश्रुत भिक्षु की उपमाएँ ज्ञानाचार (चरणानुयोग भाग १) पृ. १०६. सु. १६१ में देखें।