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पत्र ३१७-३१८
विरग्धक मा प्रकृति मनुष्य
आराधक-विराधक
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४०. गिरिपडियगा,
(४०) जो पर्वत से दृश्यमान स्थान में गिरकर मरते हैं, ४१. तापडियगा,
(४१) जो वृक्ष से गिरकर मरते हैं, ४२. मक्पडियगा,
(४२) जो पर्वत से अदृश्य स्थान पर गिरकर मरते हैं, ४३. पिरिपक्खोलगा,
(४३) जो पर्वत से छलांग लगाकर मरते हैं, ४४. तरूपसंदोलगा;
(४४) जो वृक्ष से छलांग लगाकर मरते हैं, ४५. मश्परसंबोलगा;
(४५) जो पर्वत से अदृश्य स्थान पर छलांग लगाकर
मरते हैं, ४६. असोसिस
(४६) जो जल में प्रवेश कर मरते हैं, ४७. जलणपवेसिया,
(४७) जो अग्नि में प्रवेश कर मरते हैं, ४६. विसक्लियगा,
(४८) जो जहर खाकर मरते हैं, ४६. सत्योवाडियगा,
(४६) जो शस्त्रों से अपने आप को विदीर्ण कर मरते है, ५७. बेहाणसिया,
(५०) जो वृक्ष की डाली आदि से लटककर फांसी लगाकर
मरते हैं, ५१. निषिद्धगा,
(५१) जो मरे हुए मनुष्य, हाथी, ऊँट, गधे आदि को देह
में प्रविष्ट होकर गीधों की चोंचों से विदारित होकर मरते हैं, ५२. तारभयगा,
(५२) जो जंगल में खोकर मरते हैं, ५३. दुरिभक्खमयगा,
(५३) जो दुभिक्ष में भूम प्यास आदि से मर जाते हैं, असंफिलिट्रपरिणामा से कालमासे कालं किच्चा अण्णवरेसु यदि उनके परिणाम संक्लिष्ट - अर्थात् आत रौद्र ध्यान वाणमंतरेसु देवलोएम देवताए उबवत्तारो भवति । तहि युक्त न हों तो उस प्रकार से मृत्यु प्राप्त कर वे वानव्यन्तर देवतेसि गई-जाय-वारसवास सहस्सा लिई-जाय-परलोगस्स लोकों में से किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते है। वहाँ दिराहगा।
-उव. सु. ७० उस लोक के अनुरूप उनकी गति होती है-थावत-उनकी
स्थिति बारह हजार वर्ष की होती है-थावतचे परलोक के
विराधक होते हैं। विराहगा भद्दपगह जणा
विराधक भद्र प्रकृति मनुष्य३१५. से जे इमे गामागर-जाय-सण्णिवेसेतु मणुया भवति, तं ३१८. जो ये ग्राम, आकर-पावत्-सन्निवेश में मनुष्य होते
है, यथा-- १. पगडमगा, २. पगइउवसंता,
(१) प्रकृति भद्र,
(२) शान्त, ३. पगायतणुकोहमाणमावालोहा,
(३) स्वभावतः क्रोध, मान, माया एवं लोभ की उपता से
रहित, ४. मित्रमहपसंपन्या,
(४) मृदु मार्दवसम्पन्न, ५. अल्लोणा, ६. विणीया,
(५) गुरुजन के आज्ञापालक, (६) विनयशील, ७. अम्मापिउसुस्सुसगा,
(७) माता-पिता की सेवा करने वाले, ८ अम्मापिजणं अणइक्कमणिरजवपणा.
(4) माता-पिता के वचनों का उल्लंघन नहीं करने वाले, ९. अप्पिच्छा,
(8) बहुत कम इच्छाएं रखने वाले, १०. अप्पारम्मा,
(१०) कम से कम हिंसा करने वाले, ११. अप्पपरिगहा,
(११) परिग्रह के अल्प परिमाण से परितुष्ट, १२. अप्पेण आरम्मेणं,
(१२) अल्पारम्भ, १३. अप्पेणं समारम्मेणं,
(१३) अल्पसमारम्भ और १४. अप्पेनं भारम्भसमारस्मेणं वितिं कापेमाणा।
(१४) अल्प आरम्भ समारम्भ से आजीविका चलाने वाले।