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चरणानुयोग -२
मरण के प्रकार
सूत्र ३४२-३४३
२. तम्भवमरणे चैव,
(२) तभव मरण-वर्तमान भव को पुनः प्राप्त करने के
संकल्प से मरना। १. गिरिपरणे चेब,
(१) गिरिपतन भरण--- पहाड़ से गिरकर मरना । २. तपणे चेय,
(२) तरुपतन मरण-वृक्ष से गिरकर मरना । १. जसप्पवेसे चैव,
(१)जल प्रवेश मरण-जल में प्रवेश करके भरना । २. जलगप्पवेसे चेब,
(२) ज्वलन प्रवेश भरण-अग्नि में प्रवेश करके मरना । १. विसभर
(१) विषमक्षण मर---जहर खाकर मरना । २. सत्योपाडणे वेव,
(२) शस्त्रोत्पाटन मरण-शस्त्र से कट कर मरना । वो मरणाइ-जावणो गित्वं अम्मणुनाया भवति, कारणेण दो भरण-यावत्- सदा अनुमत नहीं हैं किन्तु कारण से वे पुर्ण अप्पडिकुटाई, तं जहा
निषिद्ध भी नहीं हैं यथा-- १. बेहाणसे चेय,
(१) वेहानस मरण-ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए फाँसी लगा
कर मरना। २. गिडपुढे वेव। अणं. अ. २, उ.४, सु. ११३ (२) गृद्ध स्पृष्ट मरण:-हाथी आदि के बड़े बालेवर में
प्रवेश करके गिद्धों से अपना मांस नुचबाकर मरता । मरणस्सप्पगारा--
मरण के प्रकार३४३. तिविहे मरणे पण्णते, तं जहा
३४३. मरण के तीन प्रकार हैं । यथा१. बालमरणे, २. पंडिपमरणे, ३, बालरियमरगे। (१) बालमरण, (२) पण्डितमरण, (३) बालपंडितमरण । बालमरणे लिविहे पण्णते; त अहा
बालमरण तीन प्रकार का कहा गया है, यथा१. ठितलेस्से,
(१) स्थिर संक्लिष्ट लेश्यावाला, २. संकिलिसेस्से,
(२) संक्लेश वृद्धि से युक्त लेश्यावाला, ३. पज्जबजातलेस्से।
(३) प्रवर्धमान लेश्यावाला। पंडियमरणे तिविहे पग्णसे, तं जहा
पण्डितमरण तीन प्रकार का कहा गया है१. ठितसेस्से,
(१) विशुद्ध स्थिर लेश्यावाला, २. असंफिलिटुलेस्से,
(२) संक्लेश रहित लेश्यावाला, ३. पज्जवजातलेस्से।
(३) प्रवर्धमान विशुद्ध लेण्यावाला। बालपंडियमरणे तिविहे पाणसे, तं जहा..
बाल-एण्डित मरण के तीन प्रकार हैं, जैसे१. ठितलेस्से,
(१) स्थितलेश्य-स्थिर विशुद्ध लेश्यावाला, २. असंफिलिटुलेस्से,
(२) असंक्लिष्टलेश्म-संवलेश से रहित लेश्यावाला, ३. अपज्जवजातसेस्से। -ठाणं. ३, उ. ४, सु. २२२ (३) अपर्यवजातलेश्य --अप्रवर्धमान विशुद्ध लेश्यावाला । अपणवसि महोहंसि, एगे तिग्गे दुरुत्तरे।
इस महा-प्रवाह वासे दुस्तर संसार समुद्र से कई महापुरुष तत्व एगे महापन्ने, म पन्हमुवाहरे।।
तिर गए है उनमें से एक महाप्रज्ञ श्रमण भगवान महावीर स्वामी
ने यह उपदेश दिया है किसन्तिमे य दुवे ठाणा, अक्खाया मारणम्तिया ।
मृत्यु के समय होने वाले दो स्थान कहे गये हैं, यथाअकाम-मरणं चेव, सकाम-मरणं तहा॥
(१) अकाम-मरण, (२) सकाम-मरण । बालाणं अकार्म , मरणं असा' भवे ।
बाल जीवों के अकाम-मरण बार-बार होते हैं किन्तु पंडितों पण्डियाणं सकामं तु, उक्कोसेगं सई भने।
का सकाम-मरण उत्कृष्ट एक बार ही होता है। -उत्त.अ. ५, गा. १-३