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सूत्र ३५२
७ गंध मल्ल - सिणाणं च ११-१२ परिभाहित्यिकम्मं च
भिक्षु के विविध अनावरणीय स्थान
भिक्स विवि अनावरणीय ठाणा
३५२. १ श्रीयणं २ रमणं व ३ बत्थीकम्म ४ विरेयणं । तं विज्जं परिजाणिया ||
५ भ्रमणं ६ जणं पतिमंथं
अनाचार परिहार उपवेश - २
१३ १४ १७१०
१० दंतपक्वलर्ण तहा तं विषमं परिजानिया ॥
(७) शरीर में सुगन्धित पदार्थ लगाना ( स ) पुष्पमाला धारण करना, (e) स्नान करना, (१०) दांतों को धोना, (११) परिग्रह रखना, (१२) स्त्री के साथ मैथुन सेवन करना, इत्यादि को पाप का कारण जानकर विद्वान मुनि इनका परित्याग करे । (१३), (१४) (१५) (१६) मात को संसार का
(१७) पूर्तिकर्म तथा (१८) अनंषणीय आहार कारण जानकर विद्वान् मुनि इनका त्याग करे ।
१९-२० आणिविराम च २१ विजय २२ (१६) शक्तिवर्धक रमायन आदि का सेवन करना, ( २० ) २३ उच्छोलणं च २४ कक्कं च तं विजयं परिजाणिया । आंखों में रंग लगाना, (२१) विषयों में आसक्त होना, (२२) प्राणियों का पाना (२३) हायर आदि धोना (२४) शरीर पर कल्क आदि से उबटन करना इस सबको कर्मबन्ध के कारण जानकर विद्वान् मुनि इनका परित्याग करें।
१५ १६ च तं विश्वं परिमाणया ।
२५ संसारी २६ किरिए २७ परिणाक्तणाणि य । २५ सामारियपि च, तं विज्जं परिजाणिया ||
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२६ अट्टापदं ण सिक्वेज्जा ३ हाईयं णो वये २१२२ विवाद विजं परिजानिया |
३३ पाणहाओ य ३४ छतं च ३५ णालियं ३६ वालवीयणं । ३७ परि२८ पराणिया
३६ उच्चार पासवणं हरितेसु ण करे मुणी ।
४० वियडेण वा वि साह, नायमेज्ज कयाह वि ॥ ४१ अपणं पापादवि ४२ परिशाि ॥
अचर [१७५
भिक्षु के विविध अनावरणीय स्थान
३५२. (१) हाथ पैर और वस्त्र आदि धोना, तथा (२) उन्हें रंगना, (३) वस्तिकर्म करना, (४) जुलाब लेना, (५) अमन करना, (६) आँखों में अंजन लगाना इत्यादि संयम को नष्ट करने वाले कार्यों को जानकर विद्वान साधक इनका त्याग करे 1
(२५) गृहस्थांसारिक कार्य करना, (२६) असंयम से किये जाने वाले कामों की प्रशंसा करना, (२७) ज्योतिष सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर देना और (२८) सामारिक का आहार ग्रहण करना इन सदको संसार का कारण जानकर विद्वान मुनि इनका त्याग करे।
(२१) वा आदि बेलना सीखे (३०) धर्म के विरुद्ध वचन न बोले (३१) हस्तकर्म करे (३२) व्यर्थ का विवाद न करे। इन सबको संसार भ्रमण का कारण जानकर विद्वान् मुनि इनका त्याग करे ।
(३३) जूता पहनना, खेलना, (२६) पंखे से हवा दबचाना, (३८) साधुओं का सबको विद्वान साधक कर्मबन्ध के त्याग करे |
(२४) छात्रा जनाना (३५) जुआ करना, (३०) गृहस्थ आदि से पैर परस्पर शरीर परिकर्म करना इन कारण जानकर इनका परि
(३१) मूर्ति हरी वनस्पति वा स्वानों में मल-मूत्र विसर्जन न करे और वहाँ
(४०) अति जल से भी कदापि आचमन न करे ।
(४१) गृहस्थ के बर्तन में आहार पानी न करे ।
(४२) न हो वो भी गृहस्थ का वस्त्र काम में न ले इन सबको कबन्ध का कारण जानकर विद्वान् मुनि इनका परित्याग करे |