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सूत्र ३३०
निग्रन्थ का मनुष्य सम्बन्धी मोगों के लिए निदान करना आराधक-विराधक
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निदान-अनिवान से आराधना-विराधना-४
(१) गाथस्स माणसणा-योगहा णिवाणं करणां- (१) निर्ग्रन्थ का मनुष्य सम्बन्धी भोगों के लिए निदान
करना३३०. एवं खलु समकाउसो! मए धम्मे पणते, इगमेव निग्न ३३०. हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का निरूपण किया है।
पात्रयगे सच्चे, अणुतरे, परिमुष्णे, केवले, संसुद्ध, आजए, यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, श्रेषठ है, प्रतिपूर्ण है, अद्वितीय है, सल्लकसणे, सिद्धिमग्गे, मुत्तिमगे, निजाणमगे, निव्वाण- शुद्ध है, न्यायसंगत है, शल्यों का संहार करने वाला है, सिद्धि मग्गे, अवितहमविसंदिवं, सम्बनुक्षप्पहीणमग्गे ।
मुक्ति, निर्याण एवं निर्वाण का यही मार्ग है, यही यथार्थ है, सदा
शाश्वत है और राब दुःखों से मुक्त होने का यही मार्ग है। इत्यं ठिया जीवा, सिति, बुज्नति, मुश्चंति, परिनिष्वा- इस सर्दश प्रज्ञप्त धर्म के आराधक सिद्ध बुद्ध मुक्त होकर यंति, सम्वदुक्खागमतं करेंति ।
निर्वाण को प्राप्त होते हैं और सब दुःखों का अन्त करते हैं। अस्स गं धम्मस्स निगये सिक्लाए उदिए विहरमाणे, इस धर्म की आगधना के लिए उपस्थित होकर आराधन पुरा विगिरुछाए, पुरा पिवासाए, पुरा सीताऽऽतहिं पुरा करते हुए निग्रंथ के भूख-प्यास सर्दी गर्मों आदि अनेक परीषह पुहिं बिरूबसवेहि परीसहोवसहि उविण्णकामनाए यावि उपसगों से पीड़ित होने पर काम वासना का प्रबल उदय हो विहरेज्जा से 4 परक्कमेज्जा, से य परक्कमाणे पासेम्जा मे जाए और साथ ही संयम साधना में पराक्रम करते हुए वह इमे उग्गपुस्ता महा-माउया भोगपुत्ता महा-माउमा । विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष त्राले उपवंशीय या भोमवंशीय राजकुमार
को देखे। तेसि ण अग्णयरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स उनमें से किसी के घर में प्रवेश करते या निकलते समय वा पुरमो महं दास-दासी-किकर-कम्मकर-पुरिसा, उत्त छत्र, झारी आदि ग्रहण किये हुए अनेक दास दासी किंकर और भिमारं महाय निग्गच्छति ।।
कर्मकर पुरुष आगे-आगे चलते हैं। तयाणंतरं च में पुरओ महाआसा आसवरा, उमओ तेसि उसके बाद राजकुमार के आगे उत्तम अश्व, दोनों ओर नागा नागवरा पिडओ रहा रहवरा रहसंल्लि पुरिस गजराज और पीछे-पीछे श्रेष्ठ सुसज्जित रथ चलते हैं और वह पदाति परिक्षितं ।
अनेक पैदल चलने वाले पुरुषों से घिरे हुए रहता है। से यं उबरिय-सेय-छत्ते, अ०भुगये भिगारे, पग्गहिय तालि- जो कि श्वेत छत्र ऊँचा उठाये हुए, झारी लिय हुए, ताड़पंटे, पवीयमाण-सेय-चामर-बालवीयणीए।
पत्र का पंखा लिए, श्वेत चामर डुलाते हुए बलते हैं । इस प्रकार अभिक्खणं अभिक्षणं अतिजाइ य निज्जाइ य सप्यमा 1 के वैभव से बह बारम्बार गमनागमन करता है। स पुश्यावरं च णं हाए-जाव- सव्यालंकारविमूसिए, महति बह राजकुमार यथासमय स्नान कर-यावत्-सब अलं. महालियाए कागारसालाए, महति महालयंसि सयणिज्जंसि कारों से विभूषित होकर विशाल कुटागारशाला (गजाप्रासाद) बुहओ उण्णतेमाले पतग मोरे वणओ सम्म रातिणिएग में दोनों किनारों से उन्नत और मध्य में अवनत एवं गम्भीर जोइणा झियायमाणेणं, इस्थि-गुम्म-परिवरे महयाहत-नट्ट- इत्यादि वर्णन जानना) ऐसे सर्वोच्च शयनीय में सारी रात दीप गीय-वाइय-संती-तल-ताल-तुग्यि घग मुइंग मुद्दाल-पप्प- ज्योति जगमगाते हुए वनिताबुन्द से घिरा हुआ कुशम नतंकों याइय-रवेणं उरालाई माणसगाई कामभोगाई मुंजमागे का नृत्य देखता है. गायकों का गीत सुनता है और वाद्ययंत्र, विहरति ।
तंत्री, तल-ताल त्रुटित, घन, मृदंग मादल आदि महान शब्द करने वाले वाधों की मधुर ध्वनियाँ सुनता है-इस प्रकार वह
उत्तम मानुषिक कामभोगों को भोगता हुआ रहता है। सस्स गं एगमवि आणवेमाणस्स-जाव अत्तारि पंच अवुत्ता उसके द्वारा किसी एक को बुलाये जाने पर चार-पांच बिना घेव अमुट्ठति
बुलाये ही उपस्थित हो जाते हैं और वे पूछते हैं कि
१ ज्ञाता. अ. १, सु. ४७, पृ.१० (अंगसुत्ताणि)