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श्रमणोपासक होने के लिए निदान करना
आराधक-विराधक
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अन्नयरसि कुलसि पुमत्ताए पश्चायामि, तत्य णं समगो. वंशी कुल है वहाँ पुरुष रूप में उत्पन्न होऊँ और श्रम गोपामक बासए भविस्सामि
बनूं।" अभिगय-"जीवाजीवे-जाव-1 अहापरिग्गहिएणं तत्रोफम्मेणं "जीवा-जीब के स्वरूप को जानूं -- यावत्-ग्रहण किये हुए अप्पाणं माबेमाणे विहरिस्सामि. से तं साह ।" ___ तप में आत्मा को भाबित करते हुए विचरण करू तो यह श्रेष्ठ
होगा।" एवं खलु समणाउसो! निगंयो वा निमाथी वा णिदागं हे आयुष्मान् धमणो ! इस प्रकार निर्गन्ध या निर्ग्रन्थी किच्चा-जाव-2 वेवे भवन महिडिए-जान- विश्वाई भोगाई (कोई भी) निदान करके-यावत्-देवरूप में उत्पन्न होता है। मुंजमाणे बिहरह-जाव- से गं ताओ देवलोगाओ आउक्त- वह वहाँ महाऋद्धि बाला देव होता है --यावत्-दिव्य भोगों एणं-जाव-५ पुमत्ताए पच्चायाति-जावतस्स नं एगमवि को भोगता हुआ विधरता है यावत् । वह देव उस देवलोक से आणवे-माणस्स-जाव-घसारि-पंच-अवुत्ता चेव अम्भुट्ठति भण आयु क्षय होने पर-यावत् --पुरुष रूप में उत्पन्न होता है देवासुप्पिया ! किक मो-जाव- कि ते आसगस्स सयइ ।' -यावत्- उपके द्वारा किसी एक को बुलाने पर चार-पांच
बिना बुलाये ही उठकर खड़े हो जाते है और पूछते हैं कि 'हे देवानु प्रिय ! कहो हम क्या करें - यावत् आपके मुख को कोन
से पदार्थ अच्छे लगते हैं ?" प०–तस्स गं सहप्पगारस पुरिसजायस्स तहारूये समणे प्र०--इस प्रकार की ऋद्धि युक्त उस पुरुष को तप-संयम
बा माहणे वा उमओ कासं केवलि-पणतं म्ममा- के मूर्त रूप श्रमण माहन उभय-काल केवलि-प्रज्ञप्त धर्म कहते हैं ?
हपखेजा? 3–हता ! आइपोग्णा।
उ... हाँ रहते हैं। पल-से गं परिसुणेज्मा?
प्र. क्या वह सुनता हैं? उ.-हता! पडिसणेजा।
उ. -हाँ सुनता है। प०-से गं सहहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएना?
प्र०" . क्या वह श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि करता है ? उ.-हंता ! सद्दोज्जा, पत्तिएजा. रोएज्जा ।
उ० . हा वह श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि करता है । पल-से गं सील-बय-जाव- पोसहोवयासाइ पविजेज्जा? प्र०-क्या वह शीलवत-यावल-पोषधोपवास स्वीकार
करता है ? ३०-हंता ! पविजेम्जा।
उ०-नां वह स्वीकार करता है । १०-से में मरे वित्ता आगाराओ अगगारियं पावएम्जा? प्रा-क्या वह गृहवाम को छोड़कर मुण्डित होता है एवं
अनगार प्रवज्या स्वीकार करता है ? ज... गो तिण? सम? ।
उ०--यह सम्भव नहीं है । से गं समणोवासए भवति अभिगय-जीवाजीवे-जाव- पडि- वह प्रमणोपासक होता है, जीवाजीव का ज्ञाता-यावत्लामेमाणे विहराइ ।
प्रतिलाभित करता हुमा विचरता है। से पं एयारवेणं विहारेण विहरमाणे बहणि वासाणि इस प्रकार के आचरण से वह अनेक वर्षों तक श्रमणोपासक समणोवासग परियागं पाउणा पाणित्ता आधाहसि उप- पर्याय का पालन करता है, पालन करके रोग उत्पन्न होने या न शसि वा अणुप्पन्न सि वा मत्तं पञ्चपखाएइ, मत्त पसा - होने पर भक्त-प्रत्याख्यान करता है, भक्त-प्रत्याख्यान करके अनेक इत्ता यहूई मसाई अणसणाई छेदेड, बहू भत्ताइ अणसणाई भक्तों का अनशन से छेदन करता है, बहुत से भक्तों का अनशन
१ विया. श. २, उ. ५. सु. ११ २. सातवें निदान में देखें। १ विद. श. २. उ. ५, मु. ११